'सुनिश्चित करें कि इलाज के अलावा किसी और उद्देश्य से हाथी को बंदी न बनाया जाए': मद्रास हाईकोर्ट ने राज्य को निर्देश दिया

Update: 2021-09-27 09:02 GMT

मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने शुक्रवार को दोहराया कि राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे हाथियों को छोड़कर, जिन्हें उपचार के लिए और जो खुद जंगल में अपनी देखभाल करने में सक्षम नहीं है, आगे किसी भी हाथी को कैद में न रखा जाए।

चीफ जस्टिस संजीब बनर्जी और जस्टिस पीडी ऑद‌िकेसवालु ने एक जनहित याचिका पर उक्त निर्देश जारी किए। याचिका कार्यकर्ता रंगराजन नरसिम्हन ने दायर की थी, जिन्होंने राज्य भर में मंदिरों में रखे बंदी हाथियों के साथ कथ‌ित क्रूरता का मुद्द उठाया था।

कोर्ट ने कहा, "राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे हाथी जो जंगल में खुद की देखभाल कर पाने में सक्षम नहीं है, उनके इलाज के अलावा किसी और हाथी को बंदी न बनाया जाए। कोई व्यक्ति किसी भी हाथी को नहीं पकड़ नहीं सकता है...।"

शुक्रवार को सरकारी वकील सी हर्ष राज ने कोर्ट को अवगत कराया कि राज्य के मंदिरों में 32 हाथी हैं और 31 हाथ‌ियों केे निजी तौर पर रखा गया है, इसके अलावा 64 हाथी वन विभाग की हिरासत में हैं।

इस मामले में एक हस्तक्षेपकारी के रूप में एल्सा फाउंडेशन ने कोर्ट में कहा कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग को जनवरी, 2019 दिए अपने रिपोर्ट में राज्य वन विभाग ने दावा किया था कि 86 हाथियों मंदिरों में और निजी तौर पर कब्जे में हैं। हालांकि अब यह बताया गया है कि केवल 63 हाथी ही मंदिरों और निजी व्यक्तियों के कब्जे में हैं। इस प्रकार, रिकॉर्ड के अनुसार, 23 हाथी कथित तौर पर लापता थे।

शिकायत को ध्यान में रखते हुए बेंच ने निर्देश दिया, "राज्य को हाथियों की संख्या और हाथियों से जुड़ी अन्य सामग्री के संबंध में पिछले पांच वर्षों में पर्यावरण और वन मंत्रालय को दिए गए बयान, यदि कोई हो, प्रस्तुत करना चाहिए ।"

तदनुसार, अदालत ने अपने निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए मामले को 21 अक्टूबर तक के लिए स्थगित कर दिया ।

केस शीर्षक: रंगराजन नरसिम्हन बनाम मुख्य सचिव और अन्य

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