न्यायाधीशों को चुनाव का सामना नहीं करना पड़ता, लेकिन लोग उन्हें देख रहे हैं: कानून मंत्री किरेन रिजिजू
कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने सोमवार को कहा कि न्यायाधीशों को उनकी नियुक्ति के बाद चुनाव या जनता की परख (Public Scrutiny) का सामना नहीं करना पड़ता है, लेकिन लोग उन पर नजर रख रहे हैं क्योंकि सोशल मीडिया के युग में कुछ भी छिपा नहीं है।
रिजिजू दिल्ली बार एसोसिएशन द्वारा तीस हजारी कोर्ट में 74वें गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे।
रिजिजू ने कहा,
“न्यायाधीश एक बार नियुक्त किए जाते हैं और उन्हें चुनाव का सामना नहीं करना पड़ता। न्यायाधीशों की जनता द्वारा परख भी नहीं की जा सकती। जनता न्यायाधीशों को नहीं बदल सकती, लेकिन वह उन्हें, उनके निर्णयों को, उनके काम करने के तरीके और न्याय देने के तरीके को देख रही है। जनता सब देख रही है और आकलन कर रही है। सोशल मीडिया के युग में कुछ भी छिपा नहीं है।"
रिजिजू ने सार्वजनिक बहस के संदर्भ में बोलते हुए याद किया कि जब वह विपक्ष के नेता थे तो सार्वजनिक चर्चाओं में शामिल होने के लिए बहुत अवसर नहीं थे और केवल लोकप्रिय और बहुत कम सांसद टेलीविजन बहस में भाग लिया करते थे।
रिजिजू ने कहा कि अब जनता के पास सरकार से सवाल करने का एक मंच है और सोशल मीडिया के उदय के साथ देश का प्रत्येक व्यक्ति और नागरिक आज सरकार से सवाल करता है।
रिजिजू ने कहा,
"प्रश्न भी पूछे जाने चाहिए। अगर आप चुनी हुई सरकार पर सवाल नहीं उठाएंगे तो और किससे सवाल करेंगे?”
कानून मंत्री ने कहा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने उनसे न्यायाधीशों के खिलाफ सोशल मीडिया पोस्ट के संबंध में कुछ ठोस कदम उठाने का अनुरोध किया था। हालांकि उन्होंने कहा कि जब यह बड़े पैमाने पर होता है तो क्या कार्रवाई की जा सकती है।
उन्होंने कहा, “हम न्यायाधीशों सहित दैनिक आधार पर सार्वजनिक आलोचना का भी सामना कर रहे हैं। इसलिए आपको यह देखने को मिलेगा कि आजकल जज सावधान रहते हैं।'
रिजिजू ने यह भी कहा कि भारत में लोकतंत्र की प्रगति के लिए 'मजबूत स्वतंत्र न्यायपालिका' जरूरी है।
उन्होंने कहा, 'अगर न्यायपालिका की गरिमा और सम्मान को कमजोर किया जाता है, तो लोकतंत्र सफल नहीं हो सकता।'
कानून मंत्री ने यह भी कहा कि जब वह और सीजेआई चंद्रचूड़ नियमित रूप से मिलते हैं और एक-दूसरे के बीच "लाइव कॉन्टैक्ट" करते हैं तो दोनों के बीच मतभेद हो सकते हैं क्योंकि हर छोटे या बड़े मुद्दे पर चर्चा होती है।
रिजिजू ने आगे इस खबर का खंडन किया कि उन्होंने 6 जनवरी को सीजेआई को एक पत्र लिखकर कॉलेजियम में एक सरकारी प्रतिनिधि रखने के लिए कहा था। यह कहते हुए कि रिपोर्ट का कोई आधार" नहीं है।
रिजिजू ने कहा,
“मैंने 6 जनवरी को सीजेआई को एक पत्र लिखा था। यह मेरा कर्तव्य है। किसी को बताने की जरूरत नहीं, यह काम है। यह एक सार्वजनिक घोषणा नहीं है। यह एक नियमित प्रक्रिया है। दो-तीन दिन तक किसी को पता नहीं चला। कहीं से किसी को इसके बारे में पता चला और यह सुर्ख़ी बन गईं कि सरकार कॉलेजियम में एक प्रतिनिधि चाहती है। इसमें कोई सिर और पैर नहीं, कोई सचाई नहीं।”
“किसी ने खबर चला दी और लोगों ने चर्चा शुरू कर दी। मुझे इसके बारे में पता भी नहीं था। मैं दौरे पर था और किसी ने मुझे बताया कि आपके पत्र के बारे में लोग चर्चा कर रहे हैं, समाचारों पर बहस हो रही है। [किसी ने न्यूज चला दिया, और लोग बयानबाजी कर रहे हैं। मुझे तो पता भी नहीं है। मैं टूर पर था। मुझ किसी बताया कि आपके पत्र को लेकर यहां चर्चा हो रहा है, न्यूज में बहस हो रही है]।”
रिजिजू ने कहा, 'यह संवेदनशील मामला है। कॉलेजियम में पांच लोग होते हैं - चीफ जस्टिस और चार जज। मैं किसी को कहीं से लाकर वहां कैसे रख सकता हूं? कोई ना कोई तो रास्ता होगा? इसी झूठ पर पूर्व जजों और सीनियर वकीलों ने बयान दिया था।
उन्होंने आगे स्पष्ट किया कि पत्र में उन्होंने NJAC मामले में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच के 2015 के फैसले द्वारा दिए गए एक निर्देश का हवाला दिया था और कहा था कि इसे आगे बढ़ाया जाना चाहिए।
अब अगर मैंने पत्र नहीं लिखा होता तो लोग कहते कि कानून मंत्री सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं कर रहे हैं। जब मैंने पत्र लिखा है तो वे कह रहे हैं कि मैंने ऐसा क्यों लिखा है। मुझे क्या करना चाहिए? मैं बस इतना कहना चाहता हूं कि बिना किसी आधार के कोई चर्चा नहीं होनी चाहिए. बहस या चर्चा किसी आधार पर ही होनी चाहिए।
उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि लोगों को दूसरों से लड़ने में मज़ा आता है। हम लड़ना नहीं चाहते... जिस बात का कोई आधार ही नहीं उस पर मैं क्या जवाब दूं?'