पुलिस को रिपोर्ट करते समय गर्भपात की मांग करने वाली नाबालिगों की पहचान का खुलासा न किया जाएः हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को डॉक्टरों को सर्कुलर जारी करने का निर्देश दिया

Update: 2023-01-23 14:45 GMT

Delhi High Court

दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को दिल्ली सरकार को एक सर्कुलर जारी करने का निर्देश दिया, जिसमें यह निर्देश दिया जाए कि अपनी गर्भावस्था की चिकित्सा समाप्ति की मांग करने वाली एक नाबालिग लड़की और उसके परिवार की पहचान का पंजीकृत चिकित्सकों (आरएमपी) द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट (पुलिस को भेजी जाने वाली) में खुलासा न किया जाए।

पाॅक्सो अधिनियम की धारा 19(1) में प्रावधान है कि बाल यौन अपराधों की विशेष किशोर पुलिस इकाई या स्थानीय पुलिस को अनिवार्य रिपोर्टिंग की जाए।

जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने यह देखते हुए निर्देश पारित किया है कि नाबालिगों और उनके परिवारों को गैर-पंजीकृत और अयोग्य चिकित्सकों, दाइयों और अदालतों से गर्भपात की अनुमति लेने के लिए मजबूर किया जा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप नाबालिग के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

अदालत ने एक्स बनाम प्रधान सचिव स्वास्थ्य और परिवार कल्याण सरकार, दिल्ली सरकार व अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा किया, जिसमें पंजीकृत चिकित्सकों को पाॅक्सो अधिनियम के तहत ‘‘सहमति से यौन संबंध बनाने के मामलों’’ के अपराधों की अनिवार्य रूप से रिपोर्ट करने से छूट दी गई है।

यह देखते हुए कि वर्तमान स्थिति के अनुसार, चिकित्सक नाबालिग और उसके परिवार की पहचान का खुलासा किए बिना और पुलिस रिपोर्ट दर्ज किए बिना ‘‘गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए आम तौर पर अनिच्छुक’’ होते हैं, अदालत ने निर्देश दियाः

‘‘इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेश के संदर्भ में, जीएनसीटीडी को इस आशय का एक सर्कुलर जारी करने का निर्देश दिया जाता है कि अगर कोई नाबालिग स्वयं या अपने परिवार के साथ किसी भी आरएमपी से गर्भपात के लिए संपर्क करती है तो उस स्थिति में उस नाबालिग की पहचान, अभिभावक या परिवार,जो भी उचित समझा जाए,का खुलासा पुलिस को भेजी जाने वाली आरएमपी की रिपोर्ट में न किया जाए।’’

अदालत ने आगे कहा कि प्रासंगिक प्रक्रियाओं के संदर्भ में गर्भावस्था का समापन किया जाएगा।

अदालत ने कहा, ‘‘पुलिस यह भी सुनिश्चित करेगी कि ऐसे मामलों में, जो रिपोर्ट दर्ज की गई है उसमें नाबालिग या उसके परिवार की पहचान का खुलासा न किया गया हो।’’

अदालत एक महिला द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें स्थानीय पुलिस को मामले की सूचना दिए बिना उसकी 14 वर्षीय लड़की के गर्भ को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की मांग की गई थी,अन्यथा इससे उनका सामाजिक कलंक, बहिष्कार और उत्पीड़न होगा।

6 जनवरी को भ्रूण 15 सप्ताह और 4 दिन का था। याचिका के अनुसार, गर्भावस्था लड़की और एक नाबालिग लड़के के बीच आपसी सहमति से बने संबंधों का परिणाम थी।

गौरतलब है कि अदालत द्वारा पारित एक आदेश के बाद नाबालिग की गर्भावस्था को पहले ही समाप्त कर दिया गया था। जस्टिस सिंह ने कहा कि याचिका में ‘‘एक नाबालिग लड़की के गर्भवती होने की दुर्भाग्यपूर्ण घटना’’ के मामले में गर्भावस्था को समाप्त करने के संबंध में ‘‘चिंता का एक जरूरी और तत्काल कारण’’ उठाया गया।

मां ने अपनी दलील में तर्क दिया था कि नाबालिग बेटी गर्भावस्था को जारी नहीं रखना चाहती थी क्योंकि वह बच्चे को पालने के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार नहीं थी और इसे जारी रखने से उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को भारी नुकसान होता।

गर्भपात की मांग करने के अलावा, याचिका में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आलोक में (स्थानीय पुलिस को उनके मामले की सूचना दिए बिना) दिल्ली सरकार को सरकारी और निजी अस्पतालों, पंजीकृत केंद्रों और पंजीकृत चिकित्सा चिकित्सकों के लिए एक सर्कुलर या अधिसूचना पारित करने का निर्देश देने की भी मांग की गई है, ताकि नाबालिग लड़कियों को उन अनचाहे गर्भ के चिकित्सकीय समापन की सेवाएं प्रदान की जा सकें,जो आपसी सहमति से बनाए गए संबंधों का परिणाम होती हैं।

सुनवाई के दौरान, दिल्ली सरकार की ओर से पेश वकील ने नाबालिगों के बीच सहमति से यौन संबंध बनाने के मामलों और पुलिस को मामले की रिपोर्ट करने के परिणामस्वरूप लड़के को प्रदान की गई सुरक्षा की कमी के एक और मुद्दे पर प्रकाश डाला।

वकील ने कहा,“इसका एक और पहलू है अब जब हम इसके बारे में बात कर रहे हैं तो यह केवल लड़की को ध्यान में रखकर ही है। अब उसका असर लड़के पर भी पड़ने लगा है। वहीं सहमति से यौन संबंध बनाने के मामले में जैसा कि वर्तमान मामले में हुआ हैं जहां लड़का और लड़की दोनों शामिल हैं, लेकिन पुलिस ने पाॅक्सो अधिनियम के तहत आवश्यक मामला दर्ज कर लिया। लड़के के परिवार को प्रताड़ित किया गया है, अधिनियम के तहत व निर्णय के द्वारा उनको संरक्षण नहीं दिया गया है।’’

उसी का जवाब देते हुए जस्टिस सिंह ने मौखिक रूप से कहाः ‘‘पूरी समस्या यह है कि लड़के के मामले में, अगर वह नाबालिग है तो एक मुद्दा है। दूसरा मुद्दा यह है कि यह सहमतिपूर्वक है या नहीं। तीसरा यह है कि अगर यह बालिग है तो फिर इन तीनों स्थितियों को देखना होगा।’’

हलफनामे में उठाए गए मुद्दे को हल करने के लिए दिल्ली सरकार को निर्देश देते हुए अदालत ने मामले को अगली सुनवाई के लिए 10 मार्च को सूचीबद्ध किया है।

अदालत ने कहा,“आप अपने हलफनामे में इस पर विचार करें। अगली तारीख पर कोर्ट विचार करेगी।’’

याचिकाकर्ता के वकील ने उन मामलों की स्थिति पर प्रकाश डाला जहां नाबालिग लड़की और उसका परिवार मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहते हैं और लड़के के खिलाफ जांच नहीं चाहते हैं, जैसा कि वर्तमान मामले में हुआ है। इसलिए कोर्ट ने कहा कि,

‘‘क्या हमें इसकी अनुमति देनी चाहिए, सवाल यह है। फिर लड़के को दूसरे संबंध बनाने से क्या रोकता है?...क्या इस पर कुछ जांच नहीं होनी चाहिए?”

केस टाइटल-एन बनाम प्रमुख सचिव स्वास्थ्य और परिवार विभाग जीएनसीटीडी व अन्य

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