भारतीय और यूरोपीय संघ के उपयोगकर्ताओं के लिए व्हाट्सएप की भेदकर नीति चिंता का प्रमुख कारणः दिल्ली हाईकोर्ट में केंद्र ने कहा
व्हाट्सएप की हालिया गोपनीय नीति के अपडेट को चुनौती देते हुए एडवोकेट चैतन्य रोहिला की तरफ से दिल्ली हाईकोर्ट में दायर याचिका पर अपना जवाब दायर करते हुए केंद्र ने आज अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा के माध्यम से प्रस्तुत किया कि व्हाट्सएप की भारत और यूरोपीय संघ के उपयोगकर्ताओं के लिए अपडेट पाॅलिसी की स्वीकृति के संबंध में अपनाई जा रही भेदकर नीति चिंता का एक प्रमुख कारण है।
उन्होंने कहा कि,''भारतीय उपयोगकर्ता व्हाट्सएप के उपयोगकर्ता बेस का एक बड़ा हिस्सा हैं, फिर भी यूरोपीय संघ के उपयोगकर्ताओं को तरजीही उपचार दिया गया है, जो चिंता का एक प्रमुख कारण है। व्हाट्सएप द्वारा उचित और ठोस नीतियों को अपनाया जाना चाहिए।''
फिर उन्होंने पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल का भी उल्लेख किया, जो संसद के समक्ष लंबित है और प्रस्तुत किया कि यह बिल वर्तमान याचिका में उठाई गई अधिकांश चिंताओं को संबोधित करता है, और इस मामले के संबंध में एक नीति भी प्रदान करता है।
न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा की एकल पीठ ने मामले की सुनवाई की और फिर पूछा, ''तो सरकार इस मामले को देख रही है?''
एएसजी शर्मा ने तब सकारात्मक जवाब दिया और आगे बताया कि नई नीति के संबंध में मंत्रालय की चिंता बताने के लिए मंत्री पहले ही रिकॉर्ड पर विचार कर चुके हैं। इन सबमिशन को ध्यान में रखते हुए कि, इस मामले को पहले से ही उच्चतम स्तर पर देखा जा रहा है और सरकार के संचार के संबंध में व्हाट्सएप का जवाब अभी भी आना बाकी है, अदालत ने मामले पर सुनवाई करने के लिए एक मार्च की तारीख तय की है।
जिस याचिकाकर्ता ने नीति को चुनौती दी है, उससे पिछली बार कोर्ट के प्रश्न किया था कि उनको नीति के किस भाग पर आपत्ति है। इस सवाल का जवाब देते हुए याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि उनकी मुख्य दलील तीसरे पक्ष की सेवाओं के संबंध में थी,जो देश की सुरक्षा और लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा है क्योंकि जानकारी को विश्व स्तर पर साझा किया गया था।
पिछली बार का अपना रुख दोहराते हुए, अदालत ने कहा कि ऐप का उपयोग स्वैच्छिक है और इतना ही नहीं अन्य ऐप में भी समान नियम और शर्तें हैं, इसलिए यह समझाया जाना चाहिए कि इस ऐप ने याचिकाकर्ता को कैसे पूर्वाग्रहित किया।
दिल्ली हाईकोर्ट ने पूछा, ''वह कौन सी राहत है जो आप मांग रहे हैं?'',इस पर याचिकाकर्ता ने कहा कि केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह ऐसे दिशा-निर्देश तय करें ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि व्हाट्सएप तीसरे पक्ष के साथ डेटा साझा न कर पाए और व्हाट्सएप की गोपनीयता नीति पर रोक लगा दी जाए। कोर्ट ने सवाल किया कि क्या वह सरकार को कानून बनाने के लिए ऐसे निर्देश जारी कर सकती है?
इस बिंदु पर, लाल ने बताया कि इस विषय पर कानून बनाने के संबंध में हाईकोर्ट का एक निर्णय है।
अदालत ने कहा कि उस निर्णय में कहा गया है कि मामले में विचार करना संसद का विवेक था और अदालत निर्देश नहीं दे सकती है।
इस बिंदु पर हस्तक्षेप करते हुए फेसबुक की तरफ से पेश सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने कहा कि सरकार पहले ही उनसे कुछ स्पष्टीकरण मांग चुकी है और वे उनका जवाब देंगे।
उन्होंने कहा कि,''फैसले में, डेटा संरक्षण विधेयक पर सरकार द्वारा सक्रिय रूप से विचार किया जा रहा है। वहीं मामला अभी उच्चतम न्यायालय के समक्ष लंबित है।''
व्हाट्सएप के लिए पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने रोहतगी का समर्थन किया और कहा कि,''नियामक अधिकारियों को मामले को तय करना होगा। यह कानून लागू होने के बाद हो पाएगा।''