यौन शोषण के बाद पीड़िता और आरोपी के शादी कर लेने या बच्चे का जन्म हो जाने मात्र से बलात्कार का अपराध कम नहीं होता: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2022-07-23 05:59 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि यौन शोषण के बाद पीड़िता और आरोपी के बीच शादी हो जाने या बच्चे का जन्म हो जाने मात्र से बलात्कार का अपराध कम नहीं हो जाता। इसने आगे कहा कि नाबालिग की सहमति अर्थहीन है और कानून की नजर में इसका कोई महत्व नहीं है।

जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने यह भी कहा कि नाबालिग को बहला-फुसलाकर और शारीरिक संबंध बनाने के बाद आरोपी द्वारा नाबालिग की सहमति का दावा करने के कृत्य को उचित नहीं माना जा सकता है, क्योंकि बलात्कार केवल पीड़िता के खिलाफ ही नहीं बल्कि पूरे समाज के खिलाफ अपराध है, जो नाबालिग लड़की के लिए कम विकल्प छोड़ता है, बल्कि उसे "आरोपी की अनुरूप चलने को मजबूर करता है।"

कोर्ट ने आईपीसी की धारा 363, 366 और 376 तथा पॉक्सो एक्ट की धारा चार और छह के तहत दर्ज प्राथमिकी में आरोपी एक व्यक्ति को जमानत देने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की।

प्राथमिकी पीड़िता की मां ने दर्ज कराई थी, जिसमें उसने आरोप लगाया था कि किसी अज्ञात व्यक्ति ने उसकी करीब 15 साल की बेटी का अपहरण कर लिया है। पीड़िता कथित तौर पर जुलाई 2019 से लापता थी। आखिरकार, मोबाइल तकनीकी निगरानी और सीडीआर लोकेशन के आधार पर, नाबालिग पीड़िता को याचिकाकर्ता के घर से उसकी आठ महीने की बच्ची के साथ पांच अक्टूबर, 2021 को बरामद किया गया।

इस प्रकार अभियोजन पक्ष का मामला था कि पीड़िता को लगभग 27 वर्ष की आयु के याचिकाकर्ता द्वारा राजी किया गया और उस वक्त अपहरण कर लिया गया, जब वह अपनी उस सहेली की प्रतीक्षा कर रही थी, जो उसी मकान में किराए पर रहती थी, जहां याचिकाकर्ता केयरटेकर के रूप में काम करता था। यह आरोप लगाया गया था कि याचिकाकर्ता ने पीड़िता को बहकाया और कथित तौर पर एक मंदिर में उससे शादी कर ली।

दूसरी ओर, याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने कहा कि वह छह अक्टूबर, 2021 से हिरासत में था और दोनों पक्षों के बीच संबंध स्वैच्छिक थे।

यह आग्रह किया गया था कि पीड़िता की उम्र कानून के अनुसार सत्यापित नहीं की गई थी और वह याचिकाकर्ता की कैद के कारण परेशान हो रही है।

कोर्ट ने कहा,

"कानून की व्यवस्थित स्थिति के मद्देनजर, नाबालिग के साथ यौन संबंध निषिद्ध है और कानून स्पष्ट रूप से इसे अपराध मानता है, भले ही वह नाबालिग की कथित सहमति पर आधारित हो। यह भी देखा जा सकता है कि एक बालिका को कई प्रतिकूल चुनौतियों का सामना करना पड़ता है यदि उसकी शादी 18 साल से कम उम्र में हुई है।"

इसमें कहा गया है,

"धारा 375 का खंड छह यह स्पष्ट करता है कि अगर महिला 18 साल से कम उम्र की है तो उसके साथ सहमति या बिना सहमति के यौन संबंध "बलात्कार" है। यहां तक कि 18 साल से कम उम्र की पत्नी के साथ भी उसकी इच्छा या सहमति के बावजूद संभोग 'बलात्कार' है, जैसा कि इंडिपेंडेंट थॉट बनाम भारत सरकार (2017) 10 एससीसी 800 में धारा 375 के अपवाद-2 को धारा 375 के लिए एक सार्थक अर्थ प्रदान करता है।"

बेंच ने यह भी देखा कि बच्चों का यौन उत्पीड़न और यौन शोषण जघन्य अपराध हैं, जिन्हें प्रभावी ढंग से निपटने की आवश्यकता है।

कोर्ट ने कहा,

"सिर्फ यौन शोषण के बाद पीड़िता और कानून के प्रावधानों करने वाले आरोपी के बीच शादी हो जाने या बच्चे का जन्म हो जाने मात्र से याचिकाकर्ता के खिलाफ बलात्कार का अपराध कम नहीं हो जाता, क्योंकि नाबालिग की सहमति अर्थहीन है और कानून की नजर में इसका कोई महत्व नहीं है।''

कोर्ट ने इस प्रकार निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता द्वारा यौन शोषण पॉक्सो अधिनियम की धारा के अंतगर्त पेनेट्रेटेड असॉल्ट की परिभाषा के तहत आता है, भले यह दावा किया गया हो कि यौन संबंध सहमति से बनाया गया था।

कोर्ट ने कहा,

"केवल इसलिए कि याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि पीड़िता के साथ एक मंदिर में विवाह किया गया था, उससे यौन-उत्पीड़न का अपराध पवित्र नहीं हो सकता क्योंकि पीड़िता नाबालिग थी और घटना के समय 15 वर्ष से कम उम्र की थी। शादी का दावा भी अभी तक रिकॉर्ड में साबित होना बाकी है। यह ध्यान में रखना अनिवार्य है कि बच्चों के अधिकारों से संबंधित क़ानून विशेष कानून हैं और बच्चों के लाभ को सुनिश्चित करने के लिए इसे लागू करना चाहिए और मिसाल कायम करना चाहिए।''

कोर्ट ने यह भी कहा कि चूंकि घटना के समय पीड़िता नाबालिग थी, यहां तक कि यह दावा भी मायने नहीं रखता कि संभोग उसकी सहमति से किया गया था, क्योंकि परिस्थितियों ने स्पष्ट रूप से इंगित किया कि उसे संभोग करने के इरादे से बहकाया गया था।

कोर्ट ने कहा,

"यहां तक कि कथित अपहरणकर्ता के साथ नाबालिग लड़की के मोह को भी वैध बचाव के रूप में अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि यह आईपीसी की धारा 361 के तहत विधायी उद्देश्य के सार की अनदेखी की तरह होगा।"

तदनुसार याचिका खारिज कर दी गई।

केस का शीर्षक: जगबीर बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली सरकार

उद्धरण: 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 697

ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



Tags:    

Similar News