दिल्ली हाईकोर्ट ने समान न्यायिक संहिता बनाने के संबंध में विधि आयोग को निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार किया

Update: 2023-04-18 06:49 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने समान न्यायिक संहिता बनाने के संबंध में विधि आयोग को निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया है।

वकील और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने याचिका में कहा है कि दिल्ली हाई कोर्ट और इलाहाबाद हाई कोर्ट में उपयोग किए जाने वाले न्यायिक शब्दों, संक्षिप्त रूपों, मानदंडों, वाक्यांशों, अदालती शुल्क और केस पंजीकरण प्रक्रियाओं की तुलना में भारी अंतर है।

चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस यशवंत वर्मा की डिवीजन बेंच ने उपाध्याय से सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित एक आदेश के संबंध में स्पष्टीकरण मांगने को कहा, जिसने उनके द्वारा दायर एक समान याचिका को खारिज कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि याचिकाकर्ता के वकील याचिका वापस लेने की स्वतंत्रता मांगी। वापस लेने के साथ याचिका खारिज हुई थी।

शुरुआत में, मुख्य न्यायाधीश शर्मा ने कहा कि शीर्ष अदालत ने उनकी याचिका खारिज कर दी है और इस प्रकार, उन्हें आदेश पर स्पष्टीकरण मांगना चाहिए।

जैसा कि उपाध्याय ने अदालत को दलील सुनने के लिए मनाने का प्रयास किया, मुख्य न्यायाधीश ने मौखिक रूप से कहा,

"थोड़ी अंग्रेजी हम भी समझते हैं। आप इस पर स्पष्टीकरण चाहते हैं।”

इसके साथ ही उपाध्याय द्वारा जनहित याचिका वापस ले ली गई। हालांकि, अदालत ने उन्हें सुप्रीम कोर्ट के आदेश के स्पष्टीकरण की मांग करने की स्वतंत्रता दी।

पीठ ने कहा,

''याचिका स्वतंत्रता के साथ वापस ली जाती है।''

उन्होंने इसमें एकरूपता लाने और अन्य उच्च न्यायालयों के परामर्श से रिपोर्ट तैयार करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति के गठन की मांग की है।

याचिका में बाम्बे हाई कोर्ट और राजस्थान हाई कोर्ट की पीठों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली अलग-अलग शब्दावली का उदाहरण देते हुए कहा कि इससे भ्रम पैदा होता है।

याचिका में कहा गया था कि यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि न्यायिक समानता संवैधानिक अधिकार का मामला है, अदालतों के अधिकार क्षेत्र के आधार पर इसका भेदभाव अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 15 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है। इसके अलावा, यह क्षेत्रवाद को बढ़ावा देता है, इसलिए यह अनुच्छेद 14 और 15 का स्पष्ट उल्लंघन है।

याचिका में कहा गया था कि विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा विभिन्न प्रकार के मामलों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली शब्दावली एक समान नहीं है, जिससे न केवल आम जनता बल्कि वकीलों और अधिकारियों को भी असुविधा होती है।

केस टाइटल: अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ और अन्य


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