समन जारी करने से पहले या कैविएट दायर किये बिना उपस्थित बचाव पक्ष को वाद के निरस्त होने पर सुना जा सकता है : दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2021-08-01 08:30 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के ऑर्डर-VII नियम 11 के तहत वाद को निरस्त करने के लिए समन से पहले के चरण में उस प्रतिवादी को सुनने में कोई रोक नहीं है, जिसे न तो समन जारी किया गया है और न ही वह कैविएट पर पेश हुआ है।

चूंकि न्यायालय को समन पूर्व चरण में ऑर्डर VII नियम 11 के तहत वादपत्र की अस्वीकृति के आधारों की जांच करने का अधिकार है, इसलिए वह एक प्रतिवादी को सुन सकता है जो अदालत में शारीरिक रूप से उपस्थित है, भले ही उसे कोई समन जारी नहीं किया गया हो या उसने सीपीसी की धारा 148ए के तहत कैविएट दायर नहीं किया हो।

सीपीसी की धारा 148 ए की व्याख्या करते हुए, न्यायमूर्ति सी हरि शंकर ने इस प्रकार कहा:

"... यह प्रावधान, मेरे विचार में, सीपीसी के ऑर्डर –VII नियम 11 के तहत एक मुकदमे में समन जारी करने से पहले आपत्तियां दर्ज कराने के लिए स्पष्ट रूप से या आवश्यक निहितार्थ से, प्रतिवादी को सुने जाने के अधिकार से वंचित नहीं कर सकता है।"

"प्रावधान की पेचीदगियों में जाये बिना, यह स्पष्ट है कि यह याचिका भी प्रतिवादी को उसे सुने जाने के अधिकार से वंचित नहीं करती है, यदि प्रतिवादी मौजूद है और यह आग्रह करना चाहता है कि आदेश VII नियम 11 के तहत भी वाद को खारिज कर दिया जाना चाहिए, यहां तक कि समन जारी होने से पहले।"

यह टिप्पणी उस दीवानी मुकदमे में आयी, जिसमें प्रतिवादियों में से एक ने आपत्ति जताई थी कि आदेश VII नियम 11 (डी) के अनुसार मुकदमा खारिज किये जाने के लायक था और इस मामले में समन जारी करने की आवश्यकता नहीं थी।

वादी ने इस दलील का यह कहते हुए विरोध किया था कि चूंकि प्रतिवादी के पास उसे सुने जाने का कोई अधिकार नहीं था और उसे तब तक नहीं सुना जा सकता जब तक कि प्रतिवादी को समन जारी नहीं किया जाता है या प्रतिवादी ने खुद कैविएट दायर न किया हो।

इसके अलावा, यह दलील दी गयी थी कि उस प्रत्येक मामले में न्यायालय द्वारा समन जारी किया जाना आवश्यक है जिसमें विधिवत मुकदमा शुरू किया गया हो और इस तरह के मुकदमे को जारी रखने के लिए अन्य सभी आपत्तियों को प्रतिवादी द्वारा समन का जवाब देने के बाद के एक चरण तक दूर रखना होगा।

हालांकि, अदालत ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि विधिवत शुरू किये गये प्रत्येक मुकदमे में समन जारी किया जाना चाहिए।

'ब्राइट इंटरप्राइजेज प्राइवेट लिमिटेड बनाम एम जे बिजक्राफ्ट एलएलपी' मामले में दिल्ली हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच द्वारा दिये गये फैसले का हवाला देते हुए कोर्ट ने एक बार फिर कहा कि जहां मुकदमा ऑर्डर VII नियम 10 के तहत वापस किेये जाने या ऑर्डर VII नियम 11 के तहत खारिज किये जाने लायक है तो समन जारी करने की आवश्यकता नहीं होती है।

कोर्ट ने कहा,

"स्पष्ट तौर पर, समन जारी करने से पहले भी कोर्ट के लिए यह जांच करने का रास्ता खुला है कि क्या मुकदमे को ऑर्डर VII नियम 10 के तहत वापस किया जाना या ऑर्डर VII नियम 11 के तहत प्रदत्त किसी भी आधार पर खारिज किया जाना जरूरी है?"

दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के ऑर्डर-VII नियम 11 के तहत वाद को निरस्त करने के लिए समन से पहले के चरण में उस प्रतिवादी को सुनने में कोई रोक नहीं है, जिसे न तो समन जारी किया गया है और न ही वह कैविएट पर पेश हुआ है।

चूंकि न्यायालय को समन पूर्व चरण में ऑर्डर VII नियम 11 के तहत वादपत्र की अस्वीकृति के आधारों की जांच करने का अधिकार है, इसलिए वह एक प्रतिवादी को सुन सकता है जो अदालत में शारीरिक रूप से उपस्थित है, भले ही उसे कोई समन जारी नहीं किया गया हो या उसने सीपीसी की धारा 148ए के तहत कैविएट दायर नहीं किया हो।

सीपीसी की धारा 148 ए की व्याख्या करते हुए, न्यायमूर्ति सी हरि शंकर ने इस प्रकार कहा:

"... यह प्रावधान, मेरे विचार में, सीपीसी के ऑर्डर –VII नियम 11 के तहत एक मुकदमे में समन जारी करने से पहले आपत्तियां दर्ज कराने के लिए स्पष्ट रूप से या आवश्यक निहितार्थ से, प्रतिवादी को सुने जाने के अधिकार से वंचित नहीं कर सकता है।"

"प्रावधान की पेचीदगियों में जाये बिना, यह स्पष्ट है कि यह याचिका भी प्रतिवादी को उसे सुने जाने के अधिकार से वंचित नहीं करती है, यदि प्रतिवादी मौजूद है और यह आग्रह करना चाहता है कि आदेश VII नियम 11 के तहत भी वाद को खारिज कर दिया जाना चाहिए, यहां तक कि समन जारी होने से पहले।"

यह टिप्पणी उस दीवानी मुकदमे में आयी, जिसमें प्रतिवादियों में से एक ने आपत्ति जताई थी कि आदेश VII नियम 11 (डी) के अनुसार मुकदमा खारिज किये जाने के लायक था और इस मामले में समन जारी करने की आवश्यकता नहीं थी।

वादी ने इस दलील का यह कहते हुए विरोध किया था कि चूंकि प्रतिवादी के पास उसे सुने जाने का कोई अधिकार नहीं था और उसे तब तक नहीं सुना जा सकता जब तक कि प्रतिवादी को समन जारी नहीं किया जाता है या प्रतिवादी ने खुद कैविएट दायर न किया हो।

इसके अलावा, यह दलील दी गयी थी कि उस प्रत्येक मामले में न्यायालय द्वारा समन जारी किया जाना आवश्यक है जिसमें विधिवत मुकदमा शुरू किया गया हो और इस तरह के मुकदमे को जारी रखने के लिए अन्य सभी आपत्तियों को प्रतिवादी द्वारा समन का जवाब देने के बाद के एक चरण तक दूर रखना होगा। हालांकि, अदालत ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि विधिवत शुरू किये गये प्रत्येक मुकदमे में समन जारी किया जाना चाहिए।

'ब्राइट इंटरप्राइजेज प्राइवेट लिमिटेड बनाम एम जे बिजक्राफ्ट एलएलपी' मामले में दिल्ली हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच द्वारा दिये गये फैसले का हवाला देते हुए कोर्ट ने एक बार फिर कहा कि जहां मुकदमा ऑर्डर VII नियम 10 के तहत वापस किेये जाने या ऑर्डर VII नियम 11 के तहत खारिज किये जाने लायक है तो समन जारी करने की आवश्यकता नहीं होती है।

कोर्ट ने कहा,

"स्पष्ट तौर पर, समन जारी करने से पहले भी कोर्ट के लिए यह जांच करने का रास्ता खुला है कि क्या मुकदमे को ऑर्डर VII नियम 10 के तहत वापस किया जाना या ऑर्डर VII नियम 11 के तहत प्रदत्त किसी भी आधार पर खारिज किया जाना जरूरी है?"

कोर्ट ने कहा,

"श्री दास (वादी) की यह दलील कि विधिवत तरीके से शुरू किये गये प्रत्येक वाद में समन जारी किया जाना चाहिए, बगैर किसी तथ्य के है और तदनुसार इसे खारिज किया जाता है। यहां तक कि इस चरण में भी कोर्ट यह जांच करने के लिए स्वतंत्र है कि क्या वाद सीपीसी के ऑर्डर VII नियम 10 या ऑर्डर VII नियम 11 द्वारा प्रतिबंधित है?"

वादी की इस दलील पर कि प्रतिवादी को शारीरिक रूप से उपस्थित होने पर भी सुना नहीं जा सकता, कोर्ट ने कहा:

"धारा 27 में कहा गया है कि, एक बार मुकदमा विधिवत स्थापित हो जाने के बाद, प्रतिवादी को पेश होने और दावे का जवाब देने के लिए समन जारी किया जाएगा और निर्धारित तरीके से तामील किया जा सकता है। मेरी राय में इसका मतलब यह नहीं है कि यदि प्रतिवादी समन जारी करने से पहले ही मौजूद है, और यह दलील देना चाहता है कि आदेश VII नियम 11 के तहत वाद को खारिज करना आवश्यक है, तो अदालत मामले में उसकी सुनवाई करने से प्रतिबंधित है।"

इसके अलावा, कोर्ट ने कहा:

"ऑर्डर V नियम 1 समन जारी करने की प्रक्रिया से संबंधित है। प्रावधान की पेचीदगियों में जाये बिना यह स्पष्ट है कि यह याचिका भी प्रतिवादी को दर्शकों के अधिकार से वंचित नहीं करती है, यदि प्रतिवादी मौजूद है और चाहता है आग्रह है कि समन जारी होने से पहले ही आदेश VII नियम 11 के तहत वाद को खारिज कर दिया जाए।"

अदालत ने कहा कि कोर्ट को प्रतिवादी की सुनवाई के अवसर से वंचित करना तुच्छ व बेतुका होगा, भले ही वह मौजूद हो।

"मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि सीपीसी को ब्रेकिंग पॉइंट पर और अपनी वैध सीमा से काफी दूर दबाव बनाया जा रहा है।"

"इतना ही नहीं, अनुभवजन्य रूप से, यह उपलब्धता के बावजूद सक्षम कानूनी सहायता के कोर्ट के अधिकार को वंचित करेगा, जो न्याय का प्रशासन मौलिक तत्व है।"

इसलिए अदालत ने वादी के तर्क को खारिज कर दिया और आदेश VII नियम 11 के तहत मुकदमे की स्वीकार्यता पर प्रतिवादी की आपत्तियों पर संबंधित पक्षों की सुनवाई करने का निर्णय लिया।

वकील अभय नरुला के साथ वरिष्ठ वकील अनुपम लाल दास वादियों के लिए पेश हुए, जबकि वरिष्ठ वकील रवि गुप्ता ने वकील महिप दत्ता पराशर, सचिन जैन और सान्या लाम्बा के साथ प्रतिवादी का पक्ष रखा। (कोटक महिंद्रा बैंक लिमिटेड)

शीर्षक : तालुनिसा एवं अन्य बनाम विशाल शर्मा एवं अन्य



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