भले ही वह गलत ट्रेन में सवार हुआ और ट्रेन से उतरते हुए उसकी मौत हो गई , तब भी मृतक मुआवजे का हकदार, बॉम्बे हाईकोर्ट ने रेलवे को दिया 8 लाख रुपए देने का निर्देश 

Update: 2020-02-21 08:10 GMT

बॉम्बे हाई कोर्ट ने पिछले शुक्रवार को रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल, नागपुर के आदेश के खिलाफ दायर एक अपील को स्वीकार कर लिया और केंद्रीय रेलवे को निर्देश दिया था कि वह बडनेरा स्टेशन पर ट्रेन से उतरते समय मरने वाले एक अर्जुन गवांडे के परिवार को मुआवजे के तौर पर 8 लाख रुपये दे। 

नागपुर पीठ के न्यायमूर्ति एम.जी गिरतकर ने सुप्रीम कोर्ट और बॉम्बे हाईकोर्ट के उन फैसलों पर भरोसा किया,जिनका हवाला अपीलकर्ता के वकील आर.जी बागुल ने दिया था।

साथ ही पीठ ने माना कि भले ही मृतक गलत ट्रेन में सवार हुआ था, जो बडनेरा स्टेशन पर नहीं रुकती थी, परंतु ट्रिब्यूनल का यह निष्कर्ष स्वीकार करने योग्य नहीं है कि मृतक अपनी मौत के लिए स्वयं जिम्मेदार था। 

केस की पृष्ठभूमि

अर्जुन गवांडे ने मुर्तिजापुर जाने के लिए अकोला रेलवे स्टेशन पर दो रेलवे टिकट खरीदे थे। एक टिकट अकोला से मुर्तिजापुर का और दूसरा टिकट अकोला से शेगाँव का था। जब वह रेलवे स्टेशन बडनेरा में ट्रेन से उतर रहा था, तब वह दुर्घटनावश गिर गया और उसकी मौत हो गई। 

ट्रिब्यूनल के समक्ष मृतक के कानूनी उत्तराधिकारियों ने दावा याचिका दायर की थी। ट्रिब्यूनल ने इस आधार पर उनके दावे को खारिज कर दिया कि मृतक ने अकोला से मुर्तिजापुर और अकोला से शेगाँव के लिए एक जनरल ट्रेन के लिए टिकट खरीदे थे।  लेकिन वह कुर्ला से भुवनेश्वर एक्सप्रेस में सवार हो गया, जो एक जनरल ट्रेन नहीं थी और बडनेरा या मुर्तिजापुर पर नहीं रुकती थी।

ट्रिब्यूनल ने निष्कर्ष निकाला कि मृतक बडनेरा रेलवे स्टेशन पर उतरा था, जहां ट्रेन का स्टॉप नहीं था,  इसलिए अपनी लापरवाही के कारण उसकी मौत हो गई। 

कोर्ट का फैसला 

अधिवक्ता एन.पी लाम्बत केंद्रीय रेलवे के लिए और वकील आर.जी बागुल अपीलकर्ताओं के लिए उपस्थित हुए।

लाम्बत ने दलील दी कि मृतक जानता था कि बडनेरा या मुर्तिजापुर में कोई स्टॉप नहीं है। उसने जानबूझकर दो टिकट खरीदे ताकि वह मुर्तिजापुर या बडनेरा में उतर सके। 

बडनेरा में कोई ठहराव या स्टोपेज नहीं था, तब भी मृतक बडनेरा में उतरा था।  इसलिए, यह रेलवे अधिनियम, 1989 की धारा 123 (सी) के तहत परिभाषित एक अप्रिय घटना नहीं थी। उन्होंने आगे कहा कि रेलवे ने अधिनियम की धारा 124 ए के परंतुक (ए) से (ई) के तहत दिए गए अपवादों के अनुसार अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन किया है, और इसलिए, रेलवे किसी भी मुआवजे का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं है। 

दूसरी ओर, बागुल ने अपीलकर्ता के मामले के समर्थन में निम्नलिखित निर्णयों पर भरोसा किया।

जमीला व अन्य बनाम भारतीय संघ ,2010 एआईआर(एससी)  3705,मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि-

''जब अपनी ही लापरवाही के कारण ट्रेन से उतरते समय मृतक की मृत्यु हो जाती है, तो भी यह एक आपराधिक कृत्य नहीं है और इसलिए, रेलवे इसकी जिम्मेदारी से इनकार नहीं कर सकता है।'' 

भारतीय संघ बनाम प्रभाकरण विजया कुमार व अन्य, 2008 (5) एएलएल एमआर 917, मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि-

''रेलवे अधिनियम, 1989 की धारा 124ए में रेलवे पर सख्त दायित्व ड़ाला गया है। यहां तक कि मृतक की मौत अपनी गलती के कारण हुई हो, फिर भी, रेलवे मुआवजे की राशि का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है।'' 

भारतीय संघ बनाम रीना देवी 2018,एआईआर (एससी) 2362 मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि-

 '' ट्रेन में बोर्डिंग या डी-बोर्डिंग (चढ़ते या उतरते हुए) के दौरान मौत होना या चोट लगना ''अप्रिय घटना''होगी। पीड़ित मुआवजे का हकदार होगा और सिर्फ पीड़ित की लापरवाही के कारक के कारण के आधार पर धारा 124ए के परंतुक के तहत नहीं आएगा।'' 

भारतीय संघ बनाम अनुराधा व अन्य, 2014 एसीजे 856, मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना था कि-

''भले ही मृतक एक गलत ट्रेन में चढ़ा था, परंतु उसके पास वैध यात्रा टिकट था और ट्रेन से उतरने के दौरान उसकी मौत हुई है। इसका मतलब यह नहीं है कि वह एक वास्तविक यात्री नहीं था और इस आधार पर उसका दावा खारिज नहीं किया जा सकता है।'' 

इस प्रकार, उपरोक्त निर्णयों के मद्देनजर, पीठ ने माना कि ट्रिब्यूनल का यह तर्क कि मृतक एक गलत ट्रेन में सवार हुआ और उसकी अपनी गलती/ लापरवाही के कारण उसकी मौत हो गई,  कायम रखने योग्य तर्क नहीं है।

पीठ ने उक्त अपील को स्वीकार कर लिया और रेलवे को निर्देश दिया कि वह इस आदेश की तारीख के बारह सप्ताह के भीतर अपीलकर्ताओं को 8 लाख रुपये का भुगतान करे। 

आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें





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