दिल्ली विधानसभा चुनाव: कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल, प्रकाश जारवाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग वाली याचिका खारिज की

Update: 2022-10-14 05:34 GMT

दिल्ली की एक अदालत ने हाल ही में दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 के संबंध में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, आम आदमी पार्टी के नेता गोपाल राय और प्रकाश जरवाल और अन्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग को लेकर सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत दायर आवेदन खारिज कर दिया।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश वृंदा कुमारी ने 1000 रुपये के जुर्माना लगाते हुए शिकायत खारिज कर दी। कोर्ट ने आवेदन खारिज करते हुए कहा कि शिकायतकर्ता ने किसी संज्ञेय अपराध का खुलासा नहीं किया।

न्यायाधीश ने 27 सितंबर के आदेश में कहा,

"एफआईआर दर्ज करने या संज्ञान लेने का कोई आधार नहीं है। इसलिए सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत आवेदन को 1000 रूपये के जुर्माना के साथ खारिज किया जाता है। जुर्माना राशि डीएलएसए में जमा कराई जाए।"

शिकायत अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय के सदस्य दल चंद कपिल ने दर्ज की है, जिन्होंने 2015 और 2020 में देवली (एससी) निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा। कपिल ने आरोप लगाया कि 2020 में आरक्षित सीट से चुनाव जीतने वाले जारवाल बैरवा/बेरवा समुदाय से संबंधित है, जो दिल्ली में ओबीसी की श्रेणी में आता है।

शिकायत में आरोप लगाया गया कि निर्वाचन क्षेत्र से उनके चुनाव ने दिल्ली विधानसभा में एससी समुदाय के प्रतिनिधित्व एक सीट से कम कर दिया।

यह कहते हुए कि जारवाल सीट से चुनाव लड़ने के योग्य नहीं है, कपिल ने आरोप लगाया कि भारत के चुनाव आयोग के अधिकारियों को गलत सूचना देने और धोखा देने के लिए झूठा और जाली सर्टिफिकेट जारी किया गया। उन्होंने आगे कहा कि केजरीवाल और राय संयुक्त रूप से और गंभीर रूप से "गैर एससी उम्मीदवार" को पार्टी का टिकट देकर विधानसभा में एससी प्रतिनिधित्व को कम करने की "साजिश" के लिए उत्तरदायी हैं।

कपिल ने अदालत को बताया कि कथित तौर पर उसने तत्कालीन उप-मंडल मजिस्ट्रेट द्वारा जारी किया गया 11 मई, 2006 का एससी सर्टिफिकेट जाली दस्तावेज है, जिसने रिटर्निंग अधिकारी से भी शिकायत की थी। कपिल ने अप्रैल, 2021 में पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई, लेकिन कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई। संबंधित डीसीपी के पास भी शिकायत दर्ज कराई गई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

अदालत के समक्ष यह प्रस्तुत किया गया कि एफआईआर दर्ज नहीं करने से पुलिस अधिकारी एससी/एसटी एक्ट की धारा 4 और एससी/एसटी नियम 1995 के नियम 5 (1) के तहत उत्तरदायी है। शिकायत में प्रस्तावित प्रतिवादियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई। रिटर्निंग ऑफिसर के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट, 1989 की धारा 3 (1) (क्यू), 3 (2) (वी), 3 (2) (वीए) और 3 (2) (vii) के तहत भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 420, 468, 471 और 120बी,166, 167, 190, 193, 196, 197, 198, 199 और 217 शिकायत दर्ज करने की मांग की गई।

जारवाल के नाम से जारी एससी सर्टिफिकेट पर गौर करते हुए कोर्ट ने कहा कि यह एसडीएम द्वारा "ऐसे एससी / एसटी व्यक्ति की श्रेणी के तहत जारी किया गया था, जो दूसरे राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के प्रशासन से पलायन कर गए थे।"

न्यायाधीश ने केंद्र द्वारा जारी 2018 के निर्देशों का न्यायिक नोटिस भी लिया, जिसमें सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेश प्रशासनों के अधिकारियों से अनुरोध किया गया कि वे वास्तविक सर्टिफिकेट जारी करने पर दूसरे राज्य से पलायन करने वाले व्यक्ति को एससी/एसटी सर्टिफिकेट जारी कर सकते हैं। अपने मूल को दर्शाने के लिए उसके पिता को जारी किया गया, सिवाय इसके कि जहां प्राधिकरण को लगता है कि इस तरह के प्रमाण पत्र जारी करने से पहले विस्तृत जांच आवश्यक है।

अदालत ने कहा,

"भारत सरकार के उपरोक्त निर्देशों के साथ-साथ अनुसूचित जाति सर्टिफिकेट दिनांक 11.05.2006 की सामग्री को देखते हुए न्यायालय प्रथम दृष्टया यह मानने में असमर्थ है कि अनुसूचित जाति सर्टिफिकेट दिनांक 11.05.2006 जाली या झूठा दस्तावेज या झूठी सूचना प्रस्तुत करके तैयार किया गया है। यह आईपीसी की धारा 420/465/468/471 के तहत दंडनीय कोई अपराध नहीं बनता है।"

इसमें कहा गया,

"यह भी प्रतीत होता है कि शिकायतकर्ता ने किसी तरह से वर्तमान मामले को आईपीसी की धारा 120बी के तहत अनुसूचित अपराध के दायरे में लाने के लिए साजिश की है। नतीजतन, एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(2)(v)(va) & (vii) के तहत कोई अपराध दंडनीय नहीं है।"

अदालत ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता ने चुनावी याचिका के माध्यम से 2020 में दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष जारवाल के चुनाव को भी चुनौती दी थी, जो अभी भी लंबित है। अदालत ने कहा कि यह मामला अभी भी माननीय दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष विचाराधीन है।

यह भी नोट किया गया कि अदालत के समक्ष शिकायत हाईकोर्ट के समक्ष चुनाव याचिका दायर करने के दो साल बाद और पुलिस में शिकायत दर्ज करने के एक साल बाद दायर की गई, जिसमें कहा गया कि देरी के लिए कोई ठोस कारण नहीं दिया गया।

अदालत ने कहा,

"भले ही यह इस स्तर पर मान लिया गया हो (भले ही मामला अभी भी दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष विचाराधीन है) कि प्रतिवादी नंबर 6 राजस्थान में एससी/एसटी समुदाय का व्यक्ति है, लेकिन दिल्ली में ओबीसी समुदाय का है। दिल्ली में आरक्षित विधानसभा क्षेत्र से विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए योग्य नहीं है। ऐसी आरक्षित सीट से दिल्ली राज्य विधानसभा चुनाव 2020 लड़ने का कार्य एससी/एसटी एक्ट, 1989 की धारा 2 (ए) सपठित धारा 3 (1) (क्यू) आर / डब्ल्यू में परिभाषित अर्थ 'अत्याचार' के अंतर्गत नहीं आता है।"

अदालत ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता द्वारा जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की विषय वस्तु को एससी/एसटी एक्ट के दायरे में लाने का प्रयास "प्रक्रिया का दुरुपयोग" है।

केस टाइटल: दल चंद कपिल बनाम राज्य और अन्य

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