'प्रत्येक महिला को बच्चा पैदा करने का अधिकार है, चाहे वह प्राकृतिक रूप से हो या सरोगेसी से हो' : यूएसए से भ्रूण लाने की अनुमति देने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका
बॉम्बे हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें लगभग 40 साल की उम्र के दंपति ने 2016 से संयुक्त राज्य अमेरिका में एक लैब में संग्रहीत अपने क्रायो-संरक्षित भ्रूण ( cryo-preserved embryo) को भारत लाने की मांग करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां और न्यायमूर्ति माधव जामदार की खंडपीठ ने सोमवार को याचिकाकर्ता के वकील की दलीलों के बाद केंद्र, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद और अन्य विभागों को नोटिस जारी किया।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी याचिका में दंपति ने 2015 की एक अधिसूचना पर सवाल उठाया है, जिसके द्वारा विदेश व्यापार महानिदेशक ने वैज्ञानिक अनुसंधान को छोड़कर मानव भ्रूण के आयात को 'प्रतिबंधित श्रेणी से 'निषिद्ध' श्रेणी में स्थानांतरित कर दिया था।
युगल ने अपनी याचिका में कहा कि 2015 की अधिसूचना में उक्त वर्गीकरण मनमाना, तर्कहीन और संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
याचिका में कहा गया है कि
"नागरिकों के अपने जैविक बच्चे को उनकी इच्छा के अनुसार रखने का अधिकार है और एक कार्यकारी कानूनी के माध्यम से इस अधिकार में कटौती या इसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता। ऐसी उचित अपेक्षा अवैध या अनैतिक नहीं है, इसलिए नागरिक रिप्रोटेक लिमिटेड, ए मिनेसोटा कॉर्पोरेशन, यूएसए में संरक्षित अपने भ्रूण को लाने के हकदार हैं।"
गर्भावस्था के कई असफल प्रयासों के बाद विदेश में इंट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) और भारत में एक गर्भपात, पत्नी की मिर्गी की समस्या के मद्देनज़र दंपति ने कहा कि वे गर्भ धारण करने के लिए उपयुक्त नहीं हैं। उन्होंने कहा कि उनके पांच संरक्षित भ्रूण सरोगेसी के जरिए बच्चे की एकमात्र उम्मीद हैं।
याचिकाकर्ता 2000 के दशक की शुरुआत में अमेरिका गए थे और 2010 में उनकी शादी हुई और 2019 में भारत लौट आए। उन्होंने 2014 में पहली बार आईवीएफ का प्रयास किया और 2016 में भ्रूण को संरक्षित किया गया। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि वे साल 2018 से अधिकारियों के साथ भ्रूण वापसी के लिए बात कर रहे हैं, किंतु अब तक कोई नतीजा नहीं निकला।
अधिवक्ता नितिन प्रधान के माध्यम से दायर याचिका में युगल ने कहा कि भ्रूण, जो उनका है, निजी संपत्ति हैं, उनकी सहमति के बिना किसी और द्वारा उपयोग नहीं किया जा सकता, इसलिए उन्होंने प्रतिवादियों को अपने भ्रूण के आयात के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करने और उनके प्रतिनिधित्व पर निर्णय लेने के लिए निर्देश देने की मांग की है।
ICMR ने उन्हें सूचित किया था कि अनापत्ति प्रमाण पत्र केवल भ्रूण के निर्यात के लिए जारी किए जा रहे हैं और आयात के लिए दिशानिर्देशों को अंतिम रूप नहीं दिया गया है।
याचिका में तर्क दिया गया है कि भ्रूण के आयात और निर्यात के लिए दोहरी नीति नहीं हो सकती, जहां विदेशी जोड़ों के लिए उनके उपयोग का ध्यान रखा जाता है; हालांकि, बांझ भारतीय जोड़ों द्वारा आयात प्रतिबंधित है।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि दोनों विधेयकों का अवलोकन किया गया है। सरोगेसी (विनियमन) विधेयक 2019 और सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) विधेयक 2020, सरोगेसी को प्रतिबंधित नहीं करते हैं।
दंपति का तर्क है कि अपने बच्चे पैदा करने का अधिकार एक सार्थक जीवन जीने के मौलिक अधिकार का एक हिस्सा है। हालांकि, अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी न करके विभिन्न सरकारी अधिकारियों द्वारा उनके मौलिक अधिकारों को "रौंदा" जा रहा है।
याचिका में कहा गया है कि
"हर महिला को स्वाभाविक रूप से या आईवीएफ के माध्यम से या सरोगेसी के माध्यम से अपना बच्चा पैदा करने का अधिकार है। बच्चा होने पर प्रतिबंध लगाकर याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों और संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन है।"
अब इस मामले की सुनवाई 13 सितंबर को होगी।