उपभोक्ता फोरम ने रेलवे अधिकारियों को ट्रेन के लेट होने के कारण के बारे में प्रति दिन यात्रा करने वाले यात्रियों को सूचित करने में असफल माना, मुआवजा देने के आदेश
त्रिशूर जिला उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम ने तीन रेलवे यात्रियों को मुआवजे की अनुमित दी क्योंकि वडक्कान्चेरी से पय्यनूर तक जाने वाली ट्रेन के देर से चलने की सूचना या उपलब्ध विकल्पों के बारे में कोई अतिरिक्त जानकारी रेलवे स्टेशन के अधिकारियों द्वारा इन रेलवे यात्रियों को नहीं दी गई थी।
यात्रियों के पक्ष में आदेश इस साल जनवरी में पारित किया गयाऔर पिछले सप्ताह मुआवजे की अनुमति दी गई। बेंच में फोरम के अध्यक्ष सीटी साबू, के राधाकृष्णन नायर और श्रीजा एस शामिल थे।
तीन सदस्यीय पीठ ने वडक्कान्चेरी रेलवे स्टेशन के वरिष्ठ अधीक्षक और सीनियर डिवीजल वाणिज्यिक प्रबंधक के समक्ष टिप्पणी की कि,
"ट्रेन के देरी से चलने का उचित कारण बताना प्रतिवादी का प्रमुख कर्तव्य है।"
शिकायतकर्ता एमएम बाबू, पीएस जॉर्ज और केएम जॉय ने 2013 में एडवोकेट बेनी एडी के माध्यम से ट्रेन के तय समय से देरी से चलने के कारण उपभोक्ता फोरम का दरवाजा खटखटाया। प्रतिवादी यात्रियों को ट्रेन के देरी से चलने के पीछे का कारण या सूचना देने में या उनके लिए उपलब्ध विकल्पों के बारे में कोई अतिरिक्त जानकारी देने में असमर्थ थे।
शिकायतकर्ताओं को बाद में किसी और ने सूचित किया कि वह पय्यनूर जाने के लिए शोरनूर रेलवे स्टेशन से ट्रेन पकड़ सकता है। इसके बाद शिकायतकर्ताओं ने शोरनूर स्टेशन से पय्यनूर के लिए ट्रेन पकड़ी।
वडक्कान्चेरी स्टेशन पर टिकीट की वापसी / रद्द करने के उनके अनुरोधों को यह कहते हुए मना कर दिया गया कि टिकट को टिकट जमा रसीद को सौंप दिया जाए और ट्रेन को कम से कम तीन घंटे देर से आएगी।
पीड़ित का कहना था कि प्रतिवादी रेलवे के अधिकारियों को ट्रेनों के आगमन और प्रस्थान के बारे में जानकारी देने में असमर्थ थे। शिकायतकर्ताओं ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत जिला उपभोक्ता फोरम से संपर्क किया।
फोरम के पास जाने से पहले वकील के नोटिस का जवाब तक नहीं दिया गया था।
शिकायतकर्ताओं ने यह कहते हुए कि सर्विस की कमी थी इसलिए टिकट शुल्क की वापसी और प्रत्येक शिकायतकर्ता को अदालत खर्च के साथ 10,000 रुपये मुआवजे के रूप में देने की मांग की थी।
प्रतिवादी ने कहा था कि शिकायत सुनवाई योग्य नहीं है क्योंकि रेलवे भारतीय रेलवे शुल्क नियमों में मुआवजे का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं है। नियम नबंर 306 में रेलवे ने आरक्षित सीट, बर्थ, डिब्बा, कोच या गाड़ी के सही समय पर नहीं आने पर किसी भी तरह के नुकसान या अतिरिक्त खर्चों के लिए रेलवे जिम्मेदार नहीं है।
रेलवे ने आगे कहा था कि,
"रेलवे का स्वामित्व और प्रबंधन भारत सरकार द्वारा किया जाता है और अगर इस तरह के दावों को माना जाएगा तो इससे राष्ट्रीय राजकोष खाली हो जाएगा।"
यह भी प्रस्तुत किया गया था कि दक्षिणी रेलवे के महाप्रबंधक एक आवश्यक पक्ष हैं और उन्हें प्रत्यारोपित किया जाना चाहिए। फोरम ने दो सवाल किए कि क्या सेवा की कमी थी और यदि हां तो क्या शिकायतकर्ताओं को राहत मिलेगी।
फोरम ने प्रतिवादी के हलफनामों का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने अपने द्वारा जारी किए जा रहे टिकटों के साथ-साथ ट्रेन के देरी से चलने की बात स्वीकार की है।
फोरम से पहले यह अनुमान लगाया गया था कि ट्रेन को छह घंटे से अधिक की देरी हो गई थी और ट्रेन कुछ अपरिहार्य और सुरक्षा उपायों की वजह से विलंबित थी।
फोरम ने निष्कर्ष निकाला कि मुआवजे का भुगतान करने के लिए प्रतिवादी उत्तरदायी हैं।
फोरम ने कहा कि,
"प्रतिवादी के पास ट्रेन के देरी से चलने का कोई ठोस सबूत नहीं होने पर और ऐसे कोई भी सबूत नहीं है कि जो यह साबित करे कि यह दक्षिण रेलवे अधिकारियों या उनके अधीनस्थों के नियंत्रण से परे था और उसके पास एक पक्ष को जिम्मेदार ठहराने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।"
वैकल्पिक यात्रा व्यवस्था या निवारण के रूप में शिकायतकर्ता बिना किसी सूचना के अंधेरे में रखा गया था, यह कहते हुए कि फोरम ने तर्क दिया कि इस तरह की कार्रवाई से उपभोक्ताओं को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत एक प्रभावी उपाय मिल सकता है।
फोरम ने कहा कि,
"आईसीआरए कोचिंग टैरिफ भाग I वॉल्यूम I के नियम नबंर 306 के तहत उपभोक्ता के अधिकार क्षेत्र की कमी और उपभोक्ता की ओर से किए गए प्रश्नों के उत्तर सही से नहीं दिए गए हैं। प्रतिवादी की ओर से सेवा की कमी साबित होने के बाद शिकायतकर्ता राहत के हकदार होते हैं और प्रतिवादी शिकायतकर्ताओं के कठिनाइयों और मानसिक पीड़ा को देखते हुए राहत का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होता है।"
फोरम ने कहा कि यह स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि सेवा प्रदाता के रूप में प्रतिपक्ष ने अपनी भूमिका का कुशलतापूर्वक निर्वहन किया है।
फोरम ने अपने आदेश में भारतीय रेलवे और इसके कामकाज पर टिप्पणी करते हुए बिबेक देबरॉय, संजय चड्ढा और विजय कृष्णमूर्ति द्वारा लिखित पुस्तक 'इंडियन रेलवे - द वीविंग ऑफ ए नेशनल टेपेस्ट्री' के बारे में गुरुचरण दास की राय और विधान सभा के 1924 में बनी एकवर्थ कमेटी के निष्कर्षो पर विचार किया।
फोरम ने दास के बयान का उल्लेख किया कि रॉय का कहना है कि भारतीय रेलवे अक्षम है, कभी-कभी राजनीतिक रूप से भ्रष्ट है और घटिया सेवा प्रदान करता है।
फोरम ने इस संबंध में टिप्पणी की कि,
"उपरोक्त उद्धरण सिर्फ इस बात पर प्रकाश डालने के लिए लिया गया है कि इस तरह की टिप्पणियां भी हैं, जिन पर यह टिप्पणी करने के लिए तैयार नहीं है।
बेंच ने अपने आदेश में यह भी कहा कि ,
"आज भारतीय रेलवे लघु रूप में भारत सरकार है। मात्रा में अधिक है पर गुणवत्ता में खराब है। हर दिन वह एक साथ राष्ट्र के निर्माण में भूमिका निभाता है। 2015-16 में रेलवे ने 806 बिलियन टिकट बेचे हैं। इसका मतलब यह हुआ कि हर व्यक्ति प्रति वर्ष लगभग सात यात्रा करता है। राष्ट्र आगे बढ़ रहा है और रेलवे का भी अहम योगदान है और पूरे विश्व की तुलना में भारत में रेलवे टिकीट सबसे सस्ती है यह अच्छी खबर है।"
इन टिप्पणियों के साथ शिकायत की अनुमति दी गई थी।
इसी खंडपीठ ने दिसंबर में धथरी खिलाफ पीड़ित को शिकायत की अनुमति दी थी। इस मामले में धथरी और अभिनेता अनूप मेनन ने एक व्यक्ति को इस तेल के इस्तेमाल से छह सप्ताह के भीतर बाल आने का दावा किया था।