जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान बलात्कार के आरोपी की पीड़िता से शादी करने की इच्छा पर संज्ञान नहीं ले सकतेः इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2021-07-01 07:30 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए बलात्कार के एक आरोपी के उस बयान पर विचार करने से इनकार कर दिया,जिसमें उसने कहा था कि वह बलात्कार पीड़िता से शादी करने का इच्छुक है।

महत्वपूर्ण रूप से, न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने कहा कि दण्ड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 164 के तहत दर्ज पीड़िता के बयान को पढ़ने के बाद कोर्ट को इस तरह के किसी भी समझौते (बलात्कार के आरोपी और पीड़िता के बीच) पर संज्ञान लेने से रोक दिया गया है।

संक्षेप में मामला

अदालत आवेदक-कामिल द्वारा दायर नियमित जमानत आवेदन पर सुनवाई कर रही थी, जो विशेष न्यायाधीश, पॉक्सो एक्ट, इलाहाबाद द्वारा पारित एक आदेश से व्यथित था क्योंकि विशेष न्यायाधीश ने उसकी जमानत याचिका को खारिज कर दिया था।

आवेदक के वकील ने कहा कि पीड़िता बालिग है और उसने इस आशय का एक आवेदन दायर किया है कि वह आरोपी से शादी करने को तैयार है।

इसके अलावा, ऐसे दस्तावेजों पर भरोसा करते हुए, यह प्रस्तुत किया गया था कि चूंकि पीड़िता आवेदक से शादी करने के लिए तैयार थी,इसलिए यह आवेदक को जमानत देने का एक अच्छा मामला है।

अंत में, यह भी प्रस्तुत किया गया कि प्रथम दृष्टया, यह सहमति का मामला प्रतीत होता है, विशेष रूप से, जब यह रिकॉर्ड में आता है कि घटना के समय आयु के चिकित्सा निर्धारण के अनुसार पीड़िता की आयु 18 वर्ष थी।

दूसरी ओर, एजीए ने कहा कि पीड़िता ने आवेदक के मामले का समर्थन नहीं किया था और सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपने बयान में उसने अभियोजन पक्ष का समर्थन किया था।

एजीए ने यह भी प्रस्तुत किया कि गोल्ड क्वेस्ट इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड बनाम तमिलनाडु राज्य व अन्य (2014) 15 एससीसी 235 के मामले में निर्धारित कानून के आलोक में आईपीसी की धारा 376 के तहत किए गए इस तरह के जघन्य अपराध को कंपाउन्डिड नहीं किया जा सकता है या कार्यवाही को केवल इसलिए रद्द नहीं किया जा सकता है क्योंकि पीड़िता ने आरोपी से शादी करने का फैसला किया है।

महत्वपूर्ण रूप से, कोर्ट ने कहा कि आदेश-पत्र में यह भी आया था कि हालांकि पीड़िता ने कहा था कि वह आवेदक से शादी करना चाहती है, लेकिन इस संबंध में दायर हलफनामे में केवल पीड़िता के अंगूठे का निशान है और इसमें आरोपी की पारस्परिक भावनाएं शामिल नहीं है।

कोर्ट का आदेश

शुरुआत में कोर्ट ने कहा किः

''पीड़ित की भावनाओं के बावजूद, जैसा कि अपर्णा भट व अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य व अन्य,2021 सीआरआई.एल.जे 2281 के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आयोजित किया गया है,उसे देखते हुए न्यायालय को इस तरह के किसी भी समझौते पर संज्ञान लेने से रोक दिया जाता है,विशेषतौर पर जब सीआरपीसी की धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष पीड़िता का बयान दर्ज हो चुका हो और उसे पढ़ा जा चुका हो। इसलिए जमानत आवेदन विफल हो जाता है और उसे खारिज कर दिया जाता है।''

इसके अलावा, अदालत ने आरोपी के इस बयान को भी ध्यान में रखने से इनकार कर दिया कि वह पीड़िता से शादी करने को तैयार था।

कोर्ट ने कहा, ''यह अदालत जमानत अर्जी पर विचार करते समय ऐसे बयानों पर संज्ञान नहीं ले सकती है।''

एक महत्वपूर्ण अवलोकन में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा था कि एक महिला के खिलाफ यौन अपराधों में जमानत देते समय, जमानत की ऐसी शर्तें नहीं लगाई जानी चाहिए, जो पीड़ित के ''निष्पक्ष न्याय'' के आदेश के खिलाफ हों, जैसे कि आरोपी के साथ समझौता या शादी करना।

न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की खंडपीठ ने यह भी फैसला सुनाया था कि अदालत को ऐसे मामलों में जमानत देते समय, सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपर्णा भट व अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य व अन्य,2021 सीआरआई.एल.जे 2281 मामले में पारित निर्देशों को ध्यान में रखना चाहिए।

महत्वपूर्ण रूप से, अपर्णा भट मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था किः

''ऐसी (जमानत) शर्ते लगाना जो परोक्ष रूप से अभियुक्त द्वारा किए गए नुकसान को माफ करने या कम करने के लिए प्रवृत्त हों और जो पीड़ित को द्वितीयक आघात के लिए संभावित रूप से उजागर करने का प्रभाव डालती हों, जैसे कि नाॅन-कंपाउंडेबल अपराधों में मध्यस्थता प्रक्रियाओं को अनिवार्य करना, जमानत की शर्तों के हिस्से के रूप में अनिवार्य रूप से सामुदायिक सेवा (यौन अपराध के अपराधी के प्रति तथाकथित सुधारात्मक दृष्टिकोण अपनाने के संबंध में) या एक बार या बार-बार माफी मांगने की आवश्यकता, या किसी भी तरह से पीड़ित के संपर्क में रहना या होना, विशेष रूप से निषिद्ध है।''

केस का शीर्षक - कामिल बनाम यू.पी. राज्य व अन्य

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