आर्टिकल 21 के तहत दूसरे रिश्ते की मंजूरी के लिए अदालत का दरवाजा नहीं खटखटा सकते जब पहली पत्नी इक्विटी से वंचित होः पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि जो व्यक्ति अपनी जीवन साथी के साथ भी समानता का व्यवहार नहीं करता है, वह आर्टिकल 21 के तहत अपने दूसरे रिश्ते की मंजूरी के लिए अदालत का दरवाजा नहीं खटखटा सकता है। इसी के साथ कोर्ट ने एक मुस्लिम व्यक्ति और उसकी दूसरी पत्नी को सुरक्षा प्रदान करने के लिए निर्देश जारी करने से इनकार कर दिया।
जस्टिस संजय वशिष्ठ की बेंच ने कहा,
‘‘यह अदालत इस पहलू की अनदेखी नहीं कर सकती है कि इस तरह की याचिकाएं याचिकाकर्ताओं द्वारा उनके जीवन और स्वतंत्रता के लिए खतरे की धारणा को चित्रित करते हुए सुरक्षा मांगने के बहाने दायर की जाती हैं, लेकिन इनका वास्तविक उद्देश्य भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत निहित शक्ति का प्रयोग करते हुए पारित किए गए अदालत के आदेश की मुहर के तहत उनके अवैध संबंधों की स्वीकृति प्राप्त करना होता है।’’
अदालत ने कहा कि सुरक्षा ‘‘उनके जीवन या स्वतंत्रता के लिए वास्तविक खतरे के किसी भी उदाहरण के बिना’’ प्रदान नहीं की जा सकती है।
कोर्ट एक मुस्लिम कपल की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी,जिसने उनको मिल रही धमकियों के चलते पुलिस सुरक्षा की मांग की थी क्योंकि इस व्यक्ति ने दूसरी शादी कर ली थी। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि उनको निजी प्रतिवादियों से खतरा है। कोर्ट को बताया गया कि यह व्यक्ति पहले से ही शादीशुदा है और जिस महिला से उसने अभी शादी की उसका तलाक हो चुका है।
याचिकाकर्ता-पति के वकील ने तर्क दिया कि एक मुस्लिम पुरुष चार अलग-अलग महिलाओं के साथ चार बार शादी करने का हकदार है, अगर वह अपनी पहली पत्नियों को न्याय दिलाने में सक्षम है। राज्य ने तर्क दिया कि किसी भी मुस्लिम पुरुष को अपनी सनक और पसंद पर चार बार शादी करने का अधिकार या अनुमति नहीं है, और उक्त उद्देश्य के लिए ऐसे मुस्लिम पुरुष की मौजूदा पत्नी से स्पष्ट सहमति लेनी होगी।
पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि वह चार शादियों के विषय पर ‘‘किसी भी कानून, विधान, सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के निर्णयों का हवाला देते हुए, या कस्टम, यदि कोई हो, तो जिसका दुनिया भर के अन्य देशों में पालन किया जाता है, जहां मुसलमान रह रहे हैं’’ के जरिए अदालत की सहायता करे। परंतु वकील कोई जवाब देने में असमर्थ था, बल्कि इसके लिए उसने अपनी लाचारी व्यक्त की।
जस्टिस वशिष्ठ ने कहा, ‘‘इस प्रकार, यह न्यायालय कोई भी ऐसा सुरक्षा का आदेश पारित करने का इच्छुक नहीं है, जिसे इस देश के मौजूदा वैधानिक प्रावधानों के खिलाफ माना जा सकता है।’’
अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता-पति ‘‘अदालत को इस बात के लिए संतुष्ट करने में विफल रहा है कि वह अपनी पहली पत्नी को किस तरह का न्याय प्रदान कर रहा है।’’
यह नोट किया गया कि याचिकाकर्ता का वकील किसी विशिष्ट व्यक्ति द्वारा किसी विशेष दिन और समय और स्थान पर याचिकाकर्ता के जीवन के लिए वास्तविक खतरे के किसी भी विशिष्ट उदाहरण के बारे में अदालत को अवगत कराने में विफल रहा है।
अदालत ने कहा कि उसे ‘‘याचिका में कोई मैरिट नहीं मिली है’’ और याचिकाकर्ताओं के जीवन के लिए कोई वास्तविक खतरा होने के बिना ‘‘अनावश्यक रूप से पुलिस सुरक्षा प्रदान करने के लिए कोई प्रार्थना’’ नहीं की जा सकती है।
कोर्ट ने कहा,‘‘याचिका में उठाई गई दलीलें और प्रतिनिधित्व में की गई प्रार्थना अधूरी हैं, प्रकृति में औपचारिक है और ऐसा प्रतीत होता है कि यह केवल संबंध की मंजूरी लेने और भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दायर एक याचिका में संरक्षण आदेश के रूप में न्यायालय की मुहर लेने के उद्देश्य से की गई हैं।’’
केस टाइटल-एक्स बनाम राज्य
प्रतिनिधित्व-याचिकाकर्ताओं की ओर से तालीम हुसैन
विकास भारद्वाज, एएजी, हरियाणा