बिना यह पता लगाए कि हथियार का दुरुपयोग हुआ है, उसका लाइसेंस रद्द करना तर्कसंगत नहीं : इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि बिना यह पता लगाए कि हथियार का दुरुपयोग हुआ है, उसका लाइसेंस रद्द करना तर्कसंगत नहीं है।
जस्टिस गौतम चौधरी की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता सुधाकर मिश्रा के बन्दूक लाइसेंस को रद्द करने के कलेक्टर द्वारा पारित मई 1989 के एक आदेश के खिलाफ दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए उक्त टिप्पणी की। अक्टूबर 1995 में आयुक्त, वाराणसी मंडल, वाराणसी द्वारा पारित उनकी अपील को भी खारिज कर दिया गया था।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि अधिकारियों ने इस आधार पर आक्षेपित आदेश पारित किए कि याचिकाकर्ता और विजय बाली शंकर और उसके परिवार के परिवार में एक लंबी दुश्मनी है।
आक्षेपित आदेशों में यह कहा गया कि चूंकि झगड़े के परिणामस्वरूप दोनों पक्षों के कई व्यक्तियों की हत्या हुई है, इसलिए याचिकाकर्ता की आपराधिक पृष्ठभूमि के आधार पर लाइसेंस रद्द करना पड़ा।
आगे यह प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता के भाई का लाइसेंस भी इसी आधार पर रद्द कर किया गया था। हालांकि, उक्त अस्वीकृति आदेशों को 2019 में हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था।
आखिर में प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता का जीवन यथोचित और वास्तव में खतरे में है। इसलिए, याचिकाकर्ता की ओर से किसी भी आपराधिक गतिविधि के अभाव में आग्नेयास्त्र का दुरुपयोग स्थापित किया गया।
यह भी बताया गया कि पिछले 22 वर्षों से अधिक समय से जब से आक्षेपित आदेशों पर रोक लगाई गई थी, याचिकाकर्ता के पास बन्दूक है।
इसे ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने कहा कि उस याचिकाकर्ता के बंदूक रखने के संबंध में अधिकारियों द्वारा दर्ज किए गए किसी भी निष्कर्ष के अभाव मेरे विचार में याचिकाकर्ता की बन्दूक का लाइसेंस रद्द करने में प्रतिवादियों द्वारा शक्ति का प्रयोग उचित नहीं है।
इस अवलोकन के परिणामस्वरूप, रिट याचिका की अनुमति दी जाती है। आक्षेपित आदेश दिनांक 18.05.1989 एवं 12.10.1995 द्वारा लागू किया जाता है।
केस टाइटल - सुधाकर मिश्रा बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. और अन्य।
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