क्या राज्य अल्पसंख्यक स्व-वित्तपोषित शिक्षा संस्थानों में सीट-बंटवारे पर जोर दे सकता है ? मद्रास हाईकोर्ट ने मुद्दे को पूर्ण पीठ के पास भेजा

Update: 2023-12-19 05:08 GMT

मद्रास हाईकोर्ट ने इस मुद्दे को पूर्ण पीठ के पास भेज दिया है कि क्या सरकारी आदेश में अल्पसंख्यक स्व-वित्तपोषित शिक्षा संस्थानों को टीएमए पाई फाउंडेशन मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आलोक में सक्षम प्राधिकारी द्वारा तैयार की गई योग्यता सूची के आधार पर 50% सीटें भरने का आग्रह किया गया है ।

जस्टिस आनंद वेंकटेश ने कहा कि मद्रास हाईकोर्ट की एक डिवीजन बेंच के हालिया फैसले, जिसने राज्य की सीट-बंटवारे की शक्ति को बरकरार रखा था, ने पीए इनामधर के मामले में फैसले पर पूरी तरह से विचार नहीं किया था, जिसने टीएमए पाई में फैसले को ध्यान में रखते हुए, शीर्ष अदालत ने सीट बंटवारे के लिए कोटा तय करने की राज्य की शक्ति छीन ली थी।

जस्टिस वेंकटेश ने कहा,

"न्यायाधीश बशीर अहमद सईद के मामले में डिवीजन बेंच ने पैराग्राफ संख्या 123 से 130 के प्रभाव पर विचार नहीं किया है, जो वस्तुतः सीट साझा करने के लिए कोटा तय करने की राज्य की शक्ति को छीन लेता है और इस प्रकार, जीओ ( एमएस).संख्या. 270, उच्च शिक्षा (जे1) विभाग, दिनांक 17.06.1998, को कभी भी अल्पसंख्यक और गैर-सहायता प्राप्त व्यावसायिक संस्थानों के खिलाफ लागू नहीं किया जा सकता है।"

इस प्रकार अदालत ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह मामले को पूर्ण पीठ के पास भेजने के लिए मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखे।

पृष्ठभूमि

राज्य ने 17 जून, 1998 के एक सरकारी आदेश के जरिए जोर देकर कहा था कि किसी भी अल्पसंख्यक द्वारा प्रशासित व्यावसायिक पाठ्यक्रम प्रदान करने वाले स्व-वित्तपोषित शिक्षण संस्थान सक्षम प्राधिकारी द्वारा तैयार की गई योग्यता सूची के आधार पर 50% सीटें भरें।

इस साल सितंबर में, हाईकोर्ट की एक डिवीजन बेंच ने पाया था कि सरकारी आदेश (जीओ) मनमाना या अनुचित नहीं था, या किसी क़ानून, नियम या विनियम के प्रावधानों के विरुद्ध नहीं था।

जब वर्तमान याचिका में सीट बंटवारे को इसी तरह की चुनौती दी गई, तो याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि पीए इनामधर के मामले में शीर्ष अदालत के फैसले के बाद जीओ ने अपना महत्व खो दिया है। यह तर्क दिया गया कि राज्य द्वारा सीट-बंटवारे पर जोर देने से सीटों का राष्ट्रीयकरण हो जाएगा, जिसे पहले सुप्रीम कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया था।

दूसरी ओर, राज्य ने कहा कि चूंकि डिवीजन बेंच ने पहले ही जीओ को बरकरार रखा था, इसलिए एकल न्यायाधीश इस विचार से असहमत नहीं हो सकते कि आदेश बाध्यकारी था।

एकल न्यायाधीश ने पाया कि डिवीजन बेंच मद्रास हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीशों द्वारा दिए गए दो अन्य आदेशों पर विचार करने में विफल रही, जिसमें अदालतों ने माना था कि जीओ को लागू नहीं किया जा सकता है। एकल न्यायाधीशों ने यह भी नोट किया था कि टीएमए पाई के मामले में फैसला सुनाए जाने तक विवादित जीओ केवल एक अंतरिम व्यवस्था है और इस प्रकार उसके बाद अस्तित्व समाप्त हो गया।

हालांकि इस मामले को बड़ी पीठ के पास भेजने के एकल न्यायाधीश के अधिकार क्षेत्र के बारे में आपत्ति उठाई गई थी, लेकिन अदालत ने कहा कि एकल न्यायाधीश जिसे बड़ी पीठ के फैसले पर संदेह है, वह मुख्य न्यायाधीश के पास मद्रास हाईकोर्ट अपीलीय पक्ष नियम, 1965 के आदेश 1 नियम 6 के अनुसार निहित शक्तियों के अनुरूप संदर्भ मांग सकता है।

इस प्रकार, निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर देने के लिए मामले को एक बड़ी पीठ के पास भेज दिया गया है:

• क्या टीएमए पाई के मामले में बड़ी पीठ का फैसला सुनाए जाने तक जीओ एक स्टॉप-गैप व्यवस्था की तरह था?

• क्या टीएमए पाई के मामले और पीए इनामधर के मामले में निर्णयों के आलोक में जीओ लागू किया जाएगा?

• क्या डिविजन बेंच का फैसला टीएमए पई के मामले और पीए इनामधर के मामले के फैसले के अनुरूप है और क्या इस पर पुनर्विचार की जरूरत है?

याचिकाकर्ता के वकील: सीनियर एडवोकेट एम अजमल खान

प्रतिवादी के वकील: एडिशनल एडवोकेट जनरल वीरकतिरावन

साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (Mad) 396

केस: सीएसआई कॉलेज ऑफ डेंटल साइंसेज एंड रिसर्च बनाम तमिलनाडु राज्य

केस नंबर: डब्ल्यू पी ( एमडी) 16339 / 2021

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