क्या राज्य एनडीआरएफ के फंड का उपयोग प्रवासी मज़दूरों के रेल किराए के लिए कर सकता है? कर्नाटक हाईकोर्ट ने केंद्र से पूछा

Update: 2020-05-24 03:37 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट केंद्र सरकार से पूछा है कि क्या प्रवासी श्रमिकों के ट्रेन किराए के लिए नेशनल डिज़ास्टर रिस्पॉन्स फंड (एनडीआरएफ) का प्रयोग किया जा सकता है या नहीं?

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसएस ओका और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि

"अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल सरकार से इस विषय में दिशा निर्देश लेंगे कि क्या राज्य को ऐसे प्रवासी जो, कोई राशि का भुगतान करने की स्थिति में नहीं हैं, उनके ट्रेन किराया के भुगतान के लिए एनडीआरएफ द्वारा हस्तांतरित धन का उपयोग करने की अनुमति दी जा सकती है?"

पीठ ने एएसजी से यह भी कहा कि वह श्रमिकों से रेल किराया नहीं लेने के के बारे में भी वे केंद्र सरकार और रेलवे से निर्देश प्राप्त करें।

अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि रेलवे श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में यात्रियों से सिर्फ़ 15% ही किराया लेती है।

अदालत ने अन्य राज्यों के प्रवासी श्रमिकों के रेल किराए के बारे में कोई स्पष्ट नीति व्यक्त नहीं करने के लिए राज्य सरकार को आड़े हाथों लिया। पीठ ने राज्य के मुख्य सचिव और श्रम विभाग के सचिव से 26 मई को होने वाली सुनवाई के दौरान वीडियो कंफ्रेंसिंग के माध्यम से उपलब्ध रहने को कहा है।

अदालत ने राज्य सरकार से पूछा है कि वह कोर्ट को यह सप्रमाण बताए कि अगर कोई प्रवासी श्रमिक या उसका परिवार रेल किराया नहीं होने की वजह से अपने गांव को नहीं लौट पाता है तो वह उसका किस तरह से ख़याल रखेगा। अदालत ने राज्य सरकार से यह भी पूछा है कि वह कब तक ऐसे श्रमिक या उसके परिवार का ख़याल रखेगी

पिछले सप्ताह अदालत ने कहा था कि किसी भी श्रमिक को इस वजह से अपने घर वापस जाने के मौक़े से वंचित नहीं किया जा सकता है कि उसके पास टिकट के पैसे नहीं हैं।

कर्नाटक सरकार ने कहा कि वह कर्नाटक के मज़दूरों को कर्नाटक लाने के लिए उन्हें रेल का किराया से सकती है पर उसे दूसरे राजयों के ऐसे श्रमिकों का किराया देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता जो कर्नाटक में हैं। बाद में उसने इस बारे में एक लिखित बयान दाखिल कर अपनी बातों का सही और क़ानून सम्मत बताया और कहा कि संविधान उसे ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं करता।

अदालत ने कहा,

"हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि यह सिर्फ़ उन प्रवासी मज़दूरों के ज़िंदा रहने का मामला नहीं है जो अपने-अपने घर नहीं जा सकते क्योंकि उनके पास पैसे नहीं हैं उनकी और ज़रूरतें भी हैं जैसे स्वास्थ्य और उनका परिवार। प्रवासी श्रमिक अपने मूल राज्य में अपने घर परिवार को छोड़ उनसे दूर इस राज्य में मुश्किल की स्थिति में रह रहे हैं, क्योंकि वे अपने परिवार के पास पैसे नहीं भेज सकते। ये सब मानवीय मामले हैं और कल्याणकारी राज्य की परिकल्पना को देखते हुए इसका समाधान राज्य सरकार और केंद्र सरकार को करना चाहिए।"

अदालत ने कहा,

"आज जो स्थिति पैदा हुई है वह इसलिए क्योंकि लॉकडाउन की घोषणा के बाद प्रवासी मज़दूरों को उनके अपने-अपने घर वापस जाने का मौक़ा नहीं दिया गया। जब तक एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने पर लगे प्रतिबंध को ढीला किया गया, कई प्रवासी श्रमिकों की नौकरी और आजीविका का स्रोत उनसे छिन गया और इसलिए वे अपने ट्रेन का टिकट तक देने की स्थिति में नहीं हैं।"

इस मामले की अगली सुनवाई अब 26 मई को होगी। 


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