यदि आरोपी पीड़िता से शादी कर लेता है तो क्या POCSO अधिनियम के तहत अपराध रद्द किया जा सकता है? हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने मामले को बड़ी पीठ को सौंपा

Update: 2023-11-08 11:10 GMT

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने पक्षों के बीच समझौते के आधार पर पॉक्सो अधिनियम के तहत मामलों को रद्द करने की व्यवहार्यता पर सवाल उठाया है। समान परिस्थितियों में अधिनियम के तहत एफआईआर को रद्द करने वाली अदालत की समन्वय पीठ द्वारा अपनाए गए विचारों से असहमति जताते हुए, जस्टिस वीरेंद्र सिंह ने मामले को एक बड़ी पीठ को भेज दिया है।

पीठ ने कहा,

"चूंकि, माननीय सुप्रीम कोर्ट ने वर्तमान अपराध जैसे जघन्य अपराधों में समझौते के आधार पर एफआईआर को रद्द करने की प्रथा की निंदा की है, इसलिए इस मामले को बड़ी बेंच को संदर्भित करने के लिए माननीय मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखा जाना चाहिए।”

मामले में रणजीत कुमार की ओर ये एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें भारतीय दंड संहिता और पॉक्सो अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई थी। जिसके बाद कोर्ट ने ये निर्देश जारी किए।

एफआईआर पर सवाल उठाते हुए याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसने दोनों परिवारों की सहमति से पीड़ित बच्ची से शादी की थी और समझौता हो गया था, अब पीड़ित बच्ची और उसके माता-पिता को मामले को आगे बढ़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। याचिकाकर्ता ने अदालत से आग्रह किया कि इसमें शामिल पक्षों के बीच आपसी समझौते और उनके वैवाहिक जीवन के संरक्षण को ध्यान में रखते हुए एफआईआर और उसके बाद की कार्यवाही को रद्द कर दिया जाए।

जस्टिस वीरेंद्र सिंह ने मामले की जटिलताओं पर गौर करते हुए पॉक्सो अधिनियम के तहत अपराधों की गंभीरता और ऐसे अपराधों के सामाजिक प्रभाव पर ध्यान दिया।

अलख आलोक श्रीवास्तव बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य (2018) का संदर्भ देते हुए अदालत ने कहा, "विधायिका ने अपने विवेक से, बाल दुर्व्यवहार को कम करने और यौन अपराध से बच्चों की सुरक्षा के उद्देश्य से POCSO अधिनियम लागू किया है"

अदालत ने अपराध की गंभीर प्रकृति को ध्यान में रखते हुए पक्षों के बीच समझौते को महत्वहीन बताते हुए खारिज कर दिया। बेंच ने कहा कि जघन्य अपराधों के मामलों में समझौते की अनुमति देने से अपराधियों को कानूनी प्रणाली में हेरफेर करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है, जिससे POCSO अधिनियम जैसे कानून का उद्देश्य विफल हो सकता है।

समन्वय पीठों द्वारा इस मुद्दे पर विरोधाभासी फैसलों को देखते हुए, न्यायमूर्ति सिंह ने मामले को एक बड़ी पीठ के पास भेज दिया।

केस टाइटल: रणजीत कुमार बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य

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