'ट्रायल के लायक नहीं': कलकत्ता हाईकोर्ट ने हत्या के मामले में 5 साल से अधिक समय से जेल में बंद स्किज़ोफ्रेनिया रोगी को ज़मानत दी
Calcutta High Court
कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल ही में सिज़ोफ्रेनिया के रोगी को जमानत दे दी, जो हत्या के मामले में पांच साल से अधिक समय से हिरासत में था।
जस्टिस अजय कुमार गुप्ता और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ तक मामला तब पहुंचा जब याचिकाकर्ता ने सीआरपीसी की धारा 439 सपठित धारा 330 के तहत नियमित जमानत के लिए अपने पिता के माध्यम से हाईकोर्ट का रुख किया।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता को जमानत की रियायत देते हुए कहा,
"राज्य की ओर से पेश होने वाले वकील द्वारा दायर मेडिकल रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर रखा गया। यह दिखाता है कि याचिकाकर्ता ट्रायल का सामना करने के लिए फिट नहीं है। याचिकाकर्ता चार साल से अधिक समय से हिरासत में है। उसे मेडिकल ट्रीटमेंट की आवश्यकता है। ऐसी परिस्थितियों में हम निर्देश देते हैं कि याचिकाकर्ता को उसके पिता द्वारा निष्पादित 10,000 रुपये के बांड को प्रस्तुत करने पर जमानत पर रिहा किया जाएगा, जिसमें प्रत्येक राशि के दो जमानतीं होंगे।"
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील फिरोज एडुल्जी और राजनंदिनी दास ने कहा कि इससे पहले दो मौकों पर याचिकाकर्ता की जमानत याचिका हाईकोर्ट द्वारा दिनांक 06.09.2017 और 17.09.2018 के आदेशों के तहत खारिज कर दी गई और एक अवसर पर जमानत याचिका खारिज कर दी गई।
इसके बाद अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, फास्ट ट्रैक कोर्ट, चंद्रनगर, हुगली द्वारा पारित अन्य आदेश में उसकी जमानत याचिका 07.10.2021 को फिर से खारिज कर दी गई।
यह प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता 2014 से सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित है। वह 24.01.2017 से पांच साल से अधिक समय तक हिरासत में रहा।
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने तर्क दिया कि चूंकि याचिकाकर्ता 2014 से मानसिक बीमारी से पीड़ित है और चूंकि उसका इलाज चल रहा है, इसलिए वह ट्रायल का सामना करने के लिए अयोग्य है। इसके अलावा, यह प्रस्तुत किया गया कि चूंकि जांच पूरी हो चुकी है, इसलिए उसे हिरासत में रखना आवश्यक नहीं है।
याचिकाकर्ता के अनुसार, पहले मौके पर ट्रायल कोर्ट के आदेश पर मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया, ताकि ट्रायल के लिए याचिकाकर्ता की फिटनेस का पता लगाया जा सके। बोर्ड ने तब निष्कर्ष निकाला कि उसकी "मानसिक स्थिति की जांच नहीं की जा सकती, क्योंकि वह सहयोग नहीं कर रहा है।"
हालांकि, बोर्ड ने यह भी कहा था कि "वह ट्रायल के लिए फिट नहीं है।"
याचिकाकर्ता को जमानत देने के लिए कलकत्ता हाईकोर्ट का 15 दिसंबर का आदेश तब आया जब याचिकाकर्ता के मानसिक स्वास्थ्य और मुकदमे का सामना करने की उनकी क्षमता का आकलन करने के लिए मनोचिकित्सा में एक्सपर्ट एडवाइजर मेडिकल बोर्ड ने उसे अयोग्य करार दिया।
केस टाइटल: इन रे: सौरव कोले
साइटेशन: सीआरएम (डीबी) नंबर 3990/2022
कोरम: जस्टिस अजय कुमार गुप्ता और जस्टिस जॉयमाल्या बागची
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