बांद्रा मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट ने विशाल झा, श्वेता सिंह और मयंक रावत को जमानत देने से इनकार करते हुए विस्तृत आदेश में कहा कि बुली बाई ऐप मामले में आरोपी तीन छात्रों ने प्रथम दृष्टया "नारीत्व को बदनाम" किया है।
मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट कोमलसिंह राजपूत ने गुरुवार को उनकी जमानत अर्जी खारिज कर दी। अदालत के आदेश की एक प्रति शुक्रवार को उपलब्ध कराई गई।
आदेश में कहा गया,
"निःसंदेह आरोपी व्यक्ति कम उम्र के छात्र हैं और उनके पास जीवन और स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार है। लेकिन उन अधिकारों पर उचित प्रतिबंध हैं ... उन्होंने नारीत्व को बदनाम करने वाले गंभीर कृत्य किए हैं। समाज का बड़ा हित दांव पर है, इसलिए, उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता को कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना कम किया जा सकता है।"
आरोपियों ने तर्क दिया कि वे सिर्फ [बुली बाई ऐप के] यूजर्स हैं और इसके लिंक वाली जानकारी का प्रसार करते थे। इस पर अदालत ने कहा कि वे बेगुनाही का दावा नहीं कर सकते।
अदालत ने कहा,
"भले ही यह मान लिया जाए कि आवेदक/आरोपी व्यक्ति केवल एप के यूजर्स/सब्सक्राइबर हैं। इस स्तर पर उनके द्वारा यह नहीं कहा जा सकता है कि वे निर्दोष हैं। रिकॉर्ड पर रखे दस्तावेज इसके प्रचार और प्रसार में उनकी सक्रिय भागीदारी को दर्शाता है।"
तीनों को इस महीने की शुरुआत में गिरफ्तार किया गया था और यौन उत्पीड़न और धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने से संबंधित धाराओं के तहत आईटी अधिनियम की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था।
जमानत खारिज करने के अन्य आधारों में शामिल हैं -
अपराध की गंभीरता
अदालत ने पाया कि बुली बाई ऐप व्यापक रूप से प्रसारित किया गया। इसे एक विशेष समुदाय के लोगों द्वारा बनाया गया और इस उपयोग करते किया गया। इसमें अन्य समुदाय की विभिन्न महिलाओं को बदनाम करने वाले डेटा शामिल हैं। अदालत ने कहा कि ऐप के डेवलेपर्स और यूजर्स एक अलग धर्म से संबंधित हैं, जो उनके द्वारा चित्रित किया गया है।
अदालत ने कहा,
"इस प्रकार, ऐप के डेवलेपर्स और और यूजर्स का इसे प्रचारित करने और विशेष धर्म की महिलाओं के बारे में जानकारी प्रसारित करने के लिए गलत इरादे रखते हैं।"
साक्ष्य से छेड़छाड़
कोर्ट ने कहा कि सबूतों के साथ छेड़छाड़ की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। आरोपी दूसरे राज्यों के रहने वाले हैं। उन्हें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से संबंधित कंप्यूटर और तकनीकी पहलुओं का पर्याप्त ज्ञान है। अगर वे आगे की जांच या मुकदमे के लिए कभी नहीं आए तो इससे जांच एजेंसी और पीड़ितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।