विकास कार्यों के लिए अस्थायी परमिट जारी करते समय टीका लगने और नहीं लगने के आधार पर लोगों का वर्गीकरण करना आर्टिकल 14, 19 और 21 का उल्लंघनः गुवाहाटी हाईकोर्ट

Update: 2021-07-20 07:15 GMT

गुवाहाटी हाईकोर्ट की ईटानगर बेंच ने सोमवार को कहा है कि अरुणाचल प्रदेश राज्य में सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में विकास कार्यों के लिए अस्थायी परमिट जारी करने के लिए टीका लगने और नहीं लगने के आधार पर व्यक्तियों के बीच वर्गीकरण करना आर्टिकल 14, 19 (1) (डी) और 21 का उल्लंघन करता है।

न्यायमूर्ति नानी तगिया की एकल न्यायाधीश की पीठ ने अरुणाचल प्रदेश सरकार द्वारा जारी उस आदेश के संचालन पर रोक लगा दी है, जिसमें कहा गया था कि राज्य में सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में विकास कार्यों के लिए अस्थायी परमिट इस शर्त पर ही जारी किए जा सकते हैं कि ऐसे परमिट मांगने वाले व्यक्ति वैक्सीनेशन करवा चुके हों।

याचिका में नोटिस जारी करते हुए अदालत ने यह कहते हुए अंतरिम राहत जारी कर दी कि,

''इस न्यायालय को प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता है कि आदेश दिनांक 30.06.2021 का खंड 11..अरुणाचल प्रदेश राज्य में सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में विकास कार्यों के लिए परमिट जारी करने क उद्देश्य से उन व्यक्तियों का वर्गीकरण करता है जिन्होंने अब तक COVID19 के लिए वैक्सीनेशन करवा लिया है और जिन्होंने अभी तक ऐसा नहीं किया है। जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19 (1) (डी) और 21 का उल्लंघन करता है और मामले में अंतरिम आदेश की मांग करता है।''

इसके अलावा, यह भी कहा कि,

'' अरुणाचल प्रदेश राज्य में सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में विकास कार्यों के लिए अस्थायी परमिट जारी करने के लिए टीका लगने और नहीं लगने के आधार पर व्यक्तियों के बीच भेदभाव करने वाले इस आदेश पर अभी रोक रहेगी।''

अदालत एक जनहित याचिका पर विचार कर रही थी जिसमें याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा आरटीआई के तहत दी गई सूचना के अनुसार, COVID19 टीकाकरण अनिवार्य नहीं है, बल्कि स्वैच्छिक है।

ऐसा कहते हुए, यह प्रस्तुत किया गया था कि सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में विकास कार्यों के लिए अस्थायी परमिट जारी करने की अनुमति देने वाला यह खंड (केवल उन व्यक्तियों को जिन्होंने वैक्सीनेशन करवाया है) नागरिकों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (डी) के तहत प्रदान उन अधिकारों का उल्लंघन करता है,जिनके तहत उन्हें पूरे भारत के क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से घूमने की अनुमति मिली है।

दूसरी ओर, राज्य सरकार की ओर से यह प्रस्तुत किया गया कि आदेश के खंड 11 के तहत प्रदान किए गए प्रतिबंध राज्य में बढ़ते कोरोना के मामलों के कारण थे और इस प्रकार, यह प्रतिबंध वायरस के प्रसार को रोकने के उद्देश्य के साथ जारी किए गए 'उचित प्रतिबंध' की श्रेणी में आता है।

अंतरिम राहत की प्रार्थना पर विचार करने के लिए उक्त खंड का विश्लेषण करने के बाद न्यायालय का विचार था कि रिकॉर्ड में या सार्वजनिक डोमेन में कोई ऐसा सबूत उपलब्ध नहीं है कि वैक्सीनेशन करवाने वाला व्यक्ति कोरोना वायरस से संक्रमित नहीं हो सकता है या /वह एक कोरोना वायरस का वाहक नहीं हो सकता है और फलस्वरूप, वह भी कोरोना का प्रसारक हो सकता है।

कोर्ट ने शुरुआत में कहा कि,

''जहां तक कोरोना वायरस के प्रसार का संबंध है तो उसके लिए वैक्सीनेशन करवा चुका और वैक्सीनेशन न करवाने वाला व्यक्ति समान हैं। यदि वे कोरोना वायरस से संक्रमित हैं तो दोनों समान रूप से संभावित प्रसारक हो सकते हैं।''

कोर्ट ने कहा कि,

''इस प्रकार, यदि आदेश जारी करने का एकमात्र उद्देश्य कोरोना महामारी की रोकथाम और अरुणाचल प्रदेश राज्य में इसके आगे के प्रसार पर रोक लगाना है, तो इस उद्देश्य के लिए खंड 11 के तहत,सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में विकास कार्यों के लिए अस्थायी परमिट जारी करने के लिए टीका लगने और नहीं लगने के आधार पर व्यक्तियों के बीच वर्गीकरण करना,प्रथम दृष्टया एक ऐसा वर्गीकरण प्रतीत होता है जो समझदार अंतर पर आधारित नहीं है। न ही इस तरह के वर्गीकरण से कोरोना महामारी की रोकथाम और आगे के प्रसार को रोके जाने वाले उद्देश्य के साथ इसका तर्कसंगत संबंध पाया गया है।''

उक्त अवलोकन करते हुए और आक्षेपित खंड के संचालन पर रोक लगाकर अंतरिम राहत प्रदान करते हुए, न्यायालय ने इस मामले में 28 जुलाई के लिए नोटिस जारी किया है।

केस का शीर्षकः मदन मिली बनाम भारत संघ व 2 अन्य

आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें



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