बॉम्बे हाईकोर्ट ने विचाराधीन कैदियों की रिहाई न होने पर स्वत: संज्ञान लिया, राज्य को 31 मार्च से पहले वीसी सुविधाओं के लिए बजट का उपयोग करने का निर्देश दिया

Update: 2023-12-15 06:15 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को विचाराधीन कैदियों को विभिन्न चरणों में उचित अदालतों के समक्ष पेश न करने के मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लिया।

जस्टिस भारती डांगरे जालसाजी मामले के आरोपी त्रिभुवनसिंह रघुनाथ यादव की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थीं, जिसे अंधेरी में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट के समक्ष 23 तारीखों पर या तो भौतिक रूप से या वीसी के माध्यम से पेश नहीं किया गया था।

अदालत ने कहा,

“जहां तक आवेदक का सवाल है, 2023 की जमानत आवेदन नंबर 1836 का निपटारा किया जाता है। हालांकि, चूंकि मेरे द्वारा एमिक्स क्यूरी की नियुक्ति द्वारा पारित आदेश विभिन्न चरणों में उपयुक्त अदालतों के समक्ष विचाराधीन कैदियों को पेश करने के बड़े मुद्दे से संबंधित हैं, इसलिए आवेदन को अब 'स्वतः संज्ञान आवेदन' का शीर्षक दिया गया है और रजिस्ट्री उसे उसी के लिए एक नया नंबर आवंटित करेगी।”

बुधवार को सुनवाई के दौरान एपीपी एसआर अगरकर ने गृह विभाग द्वारा जारी 28 नवंबर 2023 का सरकारी प्रस्ताव पेश किया। प्रस्ताव में रु. 5,33,16,753/- वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधा स्थापित करने और कैमरे, एम्पलीफायर, ऑडियो इंटरफ़ेस, केबल इत्यादि सहित आवश्यक बुनियादी ढांचे की खरीद के लिए खर्च किए गए।

अदालत ने निर्देश दिया,

"जीआर को लोक अभियोजक के साथ-साथ एडवोकेट जनरल के ध्यान में लाया जाए, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि स्वीकृत राशि 31/03/2024 से पहले खर्च की जाती है।"

अदालत ने 10 नवंबर, 2023 को राज्य सरकार को राज्य भर की जेलों और अदालतों में वीसी सुविधाओं का विस्तार करने के लिए आवश्यक धन आवंटित करने का निर्देश दिया।

एमिक्स क्यूरी सत्यव्रत जोशी ने विभिन्न अदालतों में अभियुक्तों की पेशी के लिए अपने दौरे के दौरान ठाणे जेल में सुविधाओं से संतुष्टि की सूचना दी। एपीपी वाईएम नखवा के साथ संयुक्त रूप से तैयार की गई एक विस्तृत रिपोर्ट 20 दिसंबर, 2023 तक प्रस्तुत किए जाने की उम्मीद है।

सीआरपीसी की धारा 437(6) में कहा गया कि यदि मजिस्ट्रेट की अदालत में गैर-जमानती अपराध के आरोपी व्यक्ति का मुकदमा साक्ष्य लेने के लिए तय की गई पहली तारीख से 60 दिनों के भीतर समाप्त नहीं होता है तो आरोपी, यदि पूरी अवधि के दौरान हिरासत में है तो मजिस्ट्रेट की संतुष्टि के अनुसार जमानत पर रिहा किया जाएगा। यदि कारण लिखित में दर्ज किए जाएं तो मजिस्ट्रेट अन्यथा निर्णय ले सकता है।

28 अगस्त, 2023 को आरोप तय करने और उसके बाद साक्ष्य दर्ज करने के लिए मुकदमे की तारीख तय करने पर विचार करते हुए आवेदक के वकील विनोद काशिद ने तर्क दिया कि आरोपी सीआरपीसी की धारा 437(6) के तहत रिहाई की मांग कर सकता है। काशिद ने सीआरपीसी की धारा 437(6) के तहत जमानत लेने की छूट के साथ वर्तमान जमानत अर्जी वापस लेने की अनुमति मांगी।

जबकि अदालत ने आवेदक का अनुरोध स्वीकार कर लिया और वर्तमान जमानत आवेदन का निपटारा कर दिया। विचाराधीन कैदियों की पेशी से संबंधित बड़े मुद्दों पर विचार करते हुए अदालत ने आवेदन को 'स्वतः संज्ञान आवेदन' के रूप में पंजीकृत करने का निर्देश दिया।

केस टाइटल- त्रिभुवनसिंह रघुनाथ यादव बनाम महाराष्ट्र राज्य

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