बॉम्बे हाईकोर्ट ने उस पुलिस अधिकारी को तलब किया जिसने कथित तौर पर अस्पताल के रिकॉर्ड की अनदेखी की और जालसाजी मामले में 'दुर्भावनापूर्ण' तरीके से एनडीए प्रोफेसर पर आरोपपत्र दायर किया
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एक पुलिस अधिकारी को अवमानना नोटिस जारी किया, जिसने कथित तौर पर दुर्भावनापूर्ण रूप से राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के एक प्रोफेसर पर जालसाजी का मुकदमा चलाया और जब अदालत ने उसके आचरण के लिए स्पष्टीकरण मांगा तो उसने अपने हलफनामे में इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की।
जस्टिस नितिन डब्ल्यू साम्ब्रे और जस्टिस आरएन लड्ढा की खंडपीठ ने कहा कि संबंधित जांच अधिकारी आनंद पगारे ने प्रथम दृष्टया दुर्भावनापूर्ण तरीके से आरोप पत्र दायर किया, जबकि अस्पताल ने उन्हें सूचित किया था कि विकलांगता प्रमाणपत्र के रिकॉर्ड मिल गए हैं।
अदालत ने कहा,
“ जांच अधिकारी की ओर से उपरोक्त कृत्य 8 फरवरी, 2019 के आदेश की अवमानना है। न केवल उपरोक्त अवमाननापूर्ण कृत्य जिसका प्रथम दृष्टया अनुमान लगाया जा सकता है, बल्कि प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि उक्त अधिकारी ने दुर्भावनापूर्वक आरोप पत्र दायर किया है। हम आनंद एम. पगारे को अवमानना नोटिस जारी करना उचित समझते हैं, जो प्रासंगिक समय पर शपथ पत्र भरने की तारीख 4 अप्रैल, 2019, पर पुणे के हिंजेवाड़ी पुलिस स्टेशन में सहायक पुलिस निरीक्षक के रूप में तैनात थे।"
एनडीए, पुणे के प्रोफेसर कमल चंद्र तिवारी ने 1 दिसंबर, 2012 को ससून अस्पताल, पुणे द्वारा जारी विकलांगता प्रमाण पत्र जमा किया था, जिसमें 41% विकलांगता प्रमाणित की गई थी। हालांकि, जब प्रमाणपत्र को सत्यापन के लिए भेजा गया, तो इसका मूल रिकॉर्ड ससून अस्पताल में नहीं मिल सका।
इस प्रकार एनडीए ने एक शिकायत दर्ज की जिसमें आरोप लगाया गया कि तिवारी द्वारा प्रस्तुत प्रमाण पत्र जाली है और खडकवासला पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धारा 420 (धोखाधड़ी), 467 (जालसाजी), 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी) और धारा 471 (जाली दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को असली के रूप में उपयोग करना) के तहत अपराध के लिए मामला दर्ज किया गया था।
9 सितंबर, 2016 को ससून अस्पताल ने जांच अधिकारी (आईओ) को सूचित किया कि प्रमाणपत्र के मूल रिकॉर्ड का पता लगा लिया गया है। हालांकि, आईओ ने कथित तौर पर इसे नजरअंदाज कर दिया और 27 जुलाई, 2017 को न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी के समक्ष आरोप पत्र दायर किया।
इस प्रकार याचिकाकर्ता ने अदालत का दरवाजा खटखटाया और आरोप लगाया कि उस पर दुर्भावनापूर्ण तरीके से मुकदमा चलाया गया।
अदालत ने 8 फरवरी, 2019 को पुणे के हिंजेवाड़ी पुलिस स्टेशन में सहायक पुलिस निरीक्षक संबंधित आईओ आनंद एम पगारे को नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा। हालांकि, 4 अप्रैल, 2019 के अपने हलफनामे में पगारे ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की कि क्या उन्होंने आरोप-पत्र दाखिल करने से पहले विकलांगता प्रमाण पत्र के संबंध में ससून अस्पताल के रिकॉर्ड को देखा था।
कोर्ट ने इसे गंभीरता से लेते हुए कहा कि पगारे प्रथम दृष्टया 8 फरवरी, 2019 के आदेश की अवमानना कर रहे हैं। कोर्ट ने आगे कहा कि प्रथम दृष्टया, उन्होंने याचिकाकर्ता के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण तरीके से आरोप पत्र दायर किया है, इसलिए अदालत ने पगारे को यह बताने के लिए अदालत में शारीरिक रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिया कि सीआरपीसी के तहत वैधानिक दायित्वों की अनदेखी करते हुए, तिवारी पर दुर्भावनापूर्ण तरीके से मुकदमा चलाने के लिए उनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही क्यों नहीं शुरू की जानी चाहिए।
अदालत ने पगारे को कारण बताओ नोटिस जारी किया कि उन्हें अपने कर्तव्यों में गंभीर चूक के लिए तिवारी को 10,00,000/- रुपये का मुआवजा क्यों नहीं दिया जाना चाहिए।
अदालत ने निर्देश दिया,
“ उपरोक्त नोटिस पुलिस आयुक्त, पुणे के माध्यम से जारी किया जाए, जिसमें उन्हें (आनंद पगारे) इस अदालत के समक्ष पेश होने के लिए कहा जाए ताकि यह अदालत उनके खिलाफ अवमाननापूर्ण कृत्य के लिए आरोप तय कर सके और यह भी बताए कि उन्हें ऐसा क्यों करना चाहिए। उन्हें यह भी बताया जाना चाहिए कि उपरोक्त गंभीर डिफ़ॉल्ट के मद्देनजर उन्हें याचिकाकर्ता को 10,00,000/- रुपये का मुआवजा देने का निर्देश क्यों नहीं दिया जाना चाहिए।”
अदालत ने पुणे के पुलिस आयुक्त को पगारे को अवमानना नोटिस देने और 13 जुलाई, 2023 तक एक अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया।
अदालत ने अवमानना का मामला सुलझने तक तिवारी के खिलाफ आगे की आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगा दी और मामले की अगली सुनवाई 13 जुलाई, 2023 को तय की।
केस टाइटल - कमल चंद्र तिवारी बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य।
केस नंबर- आपराधिक रिट याचिका नंबर 1124/2018
ऑर्डर पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें