बॉम्बे हाईकोर्ट ने 'स्कैम 1992' सीरीज को लेकर सोनी पिक्चर्स के खिलाफ दर्ज एफआईआर में जांच पर रोक लगाई
बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को पुणे पुलिस की उस प्राथमिकी में जांच पर रोक लगा दी, जिसमें कराड अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक (KUCB) ने SonyLIV ऐप पर प्रसारित वेब सीरीज़ 'स्कैम 1992: द हर्षद मेहता स्टोरी' से बदनाम होने का दावा किया था।
जस्टिस एसएस शिंदे और जस्टिस एनजे जमादार की खंडपीठ ने सोनी पिक्चर्स नेटवर्क इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और निर्माता अप्लॉज एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड द्वारा एफआईआर के खारिज करने की मांग वाली याचिकाओं पर 17 सितंबर तक अंतरिम राहत दी।
एफआईआर 4 जुलाई, 2021 को आईपीसी की धारा 500 (मानहानि), ट्रेडमार्क अधिनियम की धारा 102, 107 (गलत तरीके से ट्रेडमार्क लागू करने) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 सी और 43 (बी) के तहत दर्ज की गई थी।
सोनी के खिलाफ अपनी एफआईआर में बैंक ने आरोप लगाया कि वेब सीरीज के तीसरे एपिसोड में पृष्ठभूमि में एक लोगो प्रदर्शित किया गया है, जो बैंक के ट्रेडमार्क जैसा दिखता है। इस लोगो (Logo) के कारण बैंक की वित्तीय, वाणिज्यिक और सामाजिक प्रतिष्ठा को गंभीर नुकसान हो रहा है।
याचिकाकर्ताओं ने तीन आधारों पर रोक लगाने की मांग की; ट्रेडमार्क अधिनियम के तहत पुलिस उपाधीक्षक के पद से नीचे के अधिकारी द्वारा जांच नहीं की जा सकती है और मानहानि एक गैर-संज्ञेय अपराध नहीं है। इसके अलावा, प्रतीक गोयल बनाम महाराष्ट्र राज्य में उच्च न्यायालय के आदेश को देखते हुए मामले में ट्रेडमार्क अधिनियम लागू नहीं होता है।
पूछताछ पर अभियोजन पक्ष ने माना कि एक इंस्पेक्टर स्तर का अधिकारी जांच कर रहा है।
अदालत ने तब कहा कि जब तक जांच के उपायों को ठीक नहीं किया जाता है, तब तक कार्यवाही जारी रखने का कोई मतलब नहीं है।
पृष्ठभूमि
सोनी पिक्चर्स ने आरोपों का खंडन करते हुए दावा किया कि विवादास्पद लोगो के साथ 'बैंक ऑफ कारज' कुछ सेकंड के लिए पृष्ठभूमि में एक कैलेंडर पर दिखाई देता है और इसका इस्तेमाल इस घोटाले में उनकी व्यापक रूप से ज्ञात भागीदारी को देखते हुए 'बैंक ऑफ कराड' को दिखाने के लिए किया गया था। बैंक को परिसमापन के तहत रखा गया था और बाद में 1994 में बैंक ऑफ इंडिया में विलय कर दिया गया था।
सोनी ने अपनी याचिका में कहा कि
"एफआईआर बिना किसी आधार के है और इसे कानून या तत्काल मामले के तथ्यों पर कायम नहीं रखा जा सकता है। इसे प्रतिवादी नंबर दो (बैंक) के इशारे पर दायर किया गया है ताकि याचिकाकर्ता (सोनी) को अनारक्षित बंदोबस्त का किसी तरह का मोड़ दिया जा सके।"
याचिका में सोनी ने आगे दावा किया कि यह सीरीजी 'द स्कैम: हू वन, हू लॉस्ट, हू गॉट अवे' नामक पुस्तक का एक रूपांतरण है। इसका निर्माण अप्लॉज एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड द्वारा किया गया है और केवल उनके द्वारा ही प्रसारित की गई है। इसमें कहा गया कि हर एपिसोड की शुरुआत में एक डिस्क्लेमर होता है।
सोनी ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि एफआईआर दर्ज होने के बाद जांच कैसे की जा रही है। उन्होंने कहा कि उनके अधिकृत प्रतिनिधि का बयान दर्ज किया गया था। इसके बावजूद उन्हें पुलिस द्वारा बार-बार बुलाया गया और सीरीज को वापस लेने में विफल रहने पर गिरफ्तारी की धमकी दी गई।
याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता इस अदालत से सुरक्षा की मांग करता है, क्योंकि वास्तविक और ईमानदार व्यवसायों और उनके जैसे पेशेवरों को परेशान नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही उन्हें आपराधिक मुकदमा चलाने की धमकियां नहीं देनी चाहिए।
याचिका में कहा गया है कि कंपनी पर गैर-संज्ञेय अपराधों के लिए मामला दर्ज किया गया है।
सोनी पिक्चर्स नेटवर्क इंडिया प्राइवेट लिमिटेड की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शिरीष गुप्ते पेश हुए और अप्लॉज एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड की ओर से वकील वैभव भूरे आई/बी एएनएम लीगल के साथ वरिष्ठ अधिवक्ता अमित देसाई पेश हुए।
केस का शीर्षक: सोनी पिक्चर्स नेटवर्क इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम महाराष्ट्र राज्य