बॉम्बे हाईकोर्ट के जज ने पक्षपात का आरोप लगाने वाला पत्र मिलने के बाद खुद को सुनवाई से अलग किया, सीबीआई को पत्र भेजने वाले की जांच करने का आदेश दिया

Update: 2023-09-16 06:25 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट की जस्टिस भारती डांगरे ने पक्षपात का आरोप लगाने वाला एक पत्र मिलने के बाद आपराधिक पुनर्विचार आवेदन पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया, लेकिन उन्होंने खुद को अलग करने के लिए कारण बताए हैं। इसके साथ ही कड़े शब्दों में दिए गए आदेश में सीबीआई से कार्रवाई करने का आग्रह किया।

हाईकोर्ट ने कहा,

“कारण का खुलासा किए बिना मेरे लिए पीछे हटने का विकल्प खुला है, लेकिन अब समय आ गया है कि असंतुष्ट तत्वों को कुछ जवाब दिया जाए, जो अपने बेईमान कृत्यों से सिस्टम को परेशान करना जारी रखते हैं। साथ ही एक बार जब न्यायाधीश मामले की सुनवाई से हट जाता तो वे अपने डराने-धमकाने के परिणामों की प्रतीक्षा किए बिना ऐसी कार्रवाई करते चले जाते हैं। मगर अब यह दिखाने का समय आ गया है कि सिस्टम को 'न्याय' के प्रति अपनी अटूट निष्ठा जारी रखनी होगी।''

न्यायाधीश ने पत्र को रिकॉर्ड पर लिया, एक प्रति रजिस्ट्रार को भेजने का आदेश दिया। इसके अलावा, सीबीआई से इस न्यायिक अनुचितता और आचरण का संज्ञान लेने और घटना की जांच करने का आग्रह किया।

न्यायाधीश ने कहा कि यह पहली बार नहीं है कि आरोप लगाने वाले पत्र द्वारा न्याय करने वालों को संबोधित किया गया है। हालांकि, ऐसी डराने-धमकाने वाली रणनीति का उपयोग करने वाले लोगों को यह दिखाना आवश्यक है कि सिस्टम 'न्याय' के प्रति अपनी अडिग निष्ठा जारी रखता है।

न्यायाधीश ने कहा,

"निश्चित रूप से इनकार को न्याय को पैंतरेबाज़ी करने के उपकरण के रूप में बेंच हंटिंग या फोरम शॉपिंग के साधन के रूप में या न्यायिक कार्य से बचने के साधन के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।"

जस्टिस डांगरे को कथित उत्पाद शुल्क धोखाधड़ी के लिए सीबीआई मामले में आरोपी सुरेश खेमानी द्वारा दायर आपराधिक पुनर्विचार आवेदन पर सुनवाई करने के लिए कहा गया था। पहले न्यायाधीश के मामले से अलग होने के बाद यह मामला अगस्त में पहली बार जस्टिस डांगरे के समक्ष रखा गया था।

जस्टिस डांगरे ने कहा कि उन्होंने याचिकाकर्ता को अंतरिम राहत जारी रखी है और मामले को 14 सितंबर, 2023 को सुनवाई के लिए रखा है। सुनवाई से चार दिन पहले न्यायाधीश को विले पार्ले से हितेन ठक्कर नामक व्यक्ति द्वारा उनके आवास पर एक पत्र मिला।

पत्र में कहा गया कि कैसे पिछली पीठ ने मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था और कैसे जस्टिस डांगरे ने अवैध रूप से मौद्रिक लाभ का संकेत देते हुए अंतरिम राहत जारी रखी।

जस्टिस डांगरे ने कहा कि दी गई स्थिति में वह या तो खुद को इस मामले से अलग कर सकती हैं, या पूर्वाग्रह के आरोपों को नजरअंदाज करते हुए इसे जारी रख सकती हैं।

उन्होंने कहा,

"एक न्यायाधीश निष्पक्ष हो सकता है, लेकिन अगर एक पक्षकार को यह संदेह हो कि वह निष्पक्ष नहीं है तो सुनवाई से हटना ही एकमात्र विकल्प है।"

आगे कहा गया,

"पत्र पढ़ने के बाद मुझे अब स्पष्ट रूप से स्वतंत्र निर्णय लेने की प्रक्रिया का हिस्सा बनने की अनिवार्य आवश्यकता का अभाव हो सकता है, क्योंकि न्याय न केवल किया जाना चाहिए, बल्कि ऐसा प्रतीत भी होना चाहिए कि न्याय किया गया है। मुझे स्पष्ट विवेक होना चाहिए कि मैं अभी भी 'स्वतंत्र' हूं और संबोधित संचार से प्रभावित हुए बिना मामले का निर्णय लेने में अपने कर्तव्य का निर्वहन करने में सक्षम हूं।

…..फिर भी मैं खुद को मामले की सुनवाई से अलग करना उचित समझती हूं, इसलिए नहीं कि मुझे एक तरह से निर्णय लेने के लिए कहा गया है, बल्कि इसलिए कि मुझे लगता है कि ऐसा करना आवश्यक है, जिससे आगे से पक्षपात करने के आरोपों से बचा जा सके, या यदि मुझे आरोपों को खारिज करना है तो आवश्यक रूप से मुझे दूसरे तरीके से निर्णय लेने के लिए मजबूर किया जा सकता है। इसका मतलब किसी एक पक्षकार के साथ अन्याय भी हो सकता है।

सीनियर वकील आबाद पोंडा के साथ-साथ आरोपी की ओर से पेश हुए वकील नीलेश त्रिभुवन ने कहा कि पत्र भेजने वाले के खिलाफ अदालत की अवमानना ​​की कार्यवाही शुरू की जानी चाहिए।

जस्टिस डांगरे ने कहा कि वह किसी भी तरह का निर्णय लेने से पहले पहले सीबीआई जांच रिपोर्ट का इंतजार करेंगी।

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