ट्रायल कोर्ट को डाइंग डेक्लरेशन’ के मनगढ़ंत दस्तावेज तुरंत खारिज कर देने चाहिए थे : बॉम्बे हाईकोर्ट ने पत्नी की हत्या के दोषी व्यक्ति को बरी किया

Update: 2023-01-01 11:45 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महिला के मृत्यु-पूर्व बयान (डाइंग डेक्लरेशन) पर परिस्थितियों की वजह से विश्वास न करते हुए पत्नी की हत्या के आरोपी पति की दोषसिद्धि को निरस्त कर दिया। उस व्यक्ति को मार्च 2015 में दोषी ठहराया गया था।

कोर्ट ने इस बात का संज्ञान लिया कि मृत्यु-पूर्व बयान पर सामान्यतया बाएं अंगूठे के निशान के बजाय दाहिने अंगूठे का निशान था, जिसे लेकर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया था और इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि बयान से पहले उसे कोई सीडेटिव (दर्द निवारक) दिया गया था या नहीं। इसके अलावा, मेडिकल ऑफिसर के अनुमोदन को भी केस पेपर द्वारा समर्थित नहीं किया गया था।

जस्टिस विभा कंकनवाड़ी और जस्टिस राजेश पाटिल की डिविजन बेंच ने कहा:

"अभियोजन साक्ष्य (पीडब्ल्यू).-5 पुलिस हेड कांस्टेबल सरदार ने यह स्पष्ट नहीं किया कि उसने दस्तावेज-31 (मृत्यु-पूर्व बयान) पर कविता (मृतक) के दाहिने हाथ के अंगूठे का निशान क्यों लिया था। वास्तव में किसी भी दस्तावेज पर हमेशा बाएं हाथ के अंगूठे का निशान लेने की प्रथा है। यह (मृत्यु-पूर्व बयान) सत्य प्रतीत नहीं होता है और यह केस पेपर्स द्वारा भी समर्थित नहीं है, जिनमें विवरण आवश्यक थे, जैसे कि क्या सीडेटिव का इस्तेमाल शुरू हो गया था, कविता के बाएं हाथ की स्थिति क्या थी।”

अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया गया था, लेकिन आईपीसी की धारा 498-ए के तहत पत्नी के खिलाफ क्रूरता के मामले में अपीलकर्ता को उसके रिश्तेदारों के साथ बरी कर दिया गया था।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, अपीलकर्ता के साथ-साथ उसके रिश्तेदार भी मृतका के चरित्र पर सवाल उठाते थे और उसके साथ दुर्व्यवहार करते थे। एक दिन जब वह सो रही थी, अपीलकर्ता ने पूर्वाह्न लगभग 11 बजे कथित रूप से उस पर मिट्टी का तेल उड़ेल दिया। इससे वह नाराज हो गई और पति के साथ गाली-गलौज की, जिसके बाद पति ने माचिस की तीली जलाकर उसे आग लगा दी। इलाज के दौरान पत्नी ने ''मृत्यु-पूर्व बयान'' दिया।

ट्रायल के दौरान मृतका के सभी रिश्तेदार मुकर गए। कोर्ट ने कहा कि मृतका के मृत्यु-पूर्व बयान के अलावा अभियोजन की कहानी का कोई समर्थन नहीं है। चूंकि सभी अभियुक्तों को आईपीसी की धारा 498ए के अपराध से बरी कर दिया गया था, इसलिए कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष इस बात का जवाब नहीं दे सका था कि पत्नी की हत्या करने का अपीलकर्ता का मकसद क्या था। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि शादी के नौ साल बाद अभियुक्तों के चरित्र पर संदेह होने की आखिर वजह क्या है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि अपीलकर्ता द्वारा (मृतका के ऊपर) मिट्टी का तेल डालने का कोई कारण नहीं बताया गया है।

“कविता का मायका, पिंपरखेड़ा एक छोटा सा गांव प्रतीत होता है और यह विश्वास करना कठिन है कि उसे सुबह 11.00 बजे तक सोने की अनुमति होती होगी…. गांव की पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए वह उस विषम समय में भी क्यों सो रही थी, यह स्पष्ट नहीं हो सका है… अभियोजन पक्ष द्वारा यह रिकॉर्ड में नहीं लाया गया कि सुबह कुछ हुआ था और इसलिए वह सो रही थी, जिससे अपीलकर्ता नाराज था। अपीलकर्ता द्वारा उसके शरीर पर मिट्टी का तेल डालने का क्या कारण था, यह प्रश्न अनुत्तरित है।’’

मृतका को पहले सरकारी अस्पताल ले जाया गया और फिर सिविल अस्पताल, जालना रेफर कर दिया गया। कोर्ट ने कहा कि जिस समय मृतका को वहां ले जाया गया था या जो वृत्तांत आदि दर्ज किया गया था, उसे लेकर भी अभियोजन पक्ष द्वारा अंधेरे में रखा गया है। मृतका को जिस समय सिविल अस्पताल, जालना में भर्ती कराया गया था, वह भी दर्ज नहीं किया गया था।

कोर्ट ने आगे कहा कि चिकित्सा अधिकारी यह नहीं बता पाए कि मृत्यु-पूर्व बयान दर्ज करने से पहले मृतका को क्या उपचार दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन ने मृतका की चोटों के आकलन और इस बारे में भी अंधेरे में रखा है कि क्या मृतका को सीडेटिव दिया गया था।

कोर्ट ने आगे कहा कि यह भी रिकॉर्ड में नहीं लाया गया था कि क्या मृतका होश में थी।

चिकित्सा अधिकारी की गवाही कोर्ट के विश्वास को जगाने में नाकाम रही, क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने मृत्यु-पूर्व बयान पर सिर्फ इसलिए हस्ताक्षर किये क्योंकि पुलिस अधिकारी ऐसा करने को कह रहा था। कोर्ट ने आगे कहा कि मरने से पहले दिये गये बयान में ओवरराइटिंग और सुधार थे।

कोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 498-ए के तहत मृत्यु-पूर्व बयान को खारिज करते और अपीलकर्ता को बरी करते वक्त धारा 302 के तहत मृत्यु-पूर्व बयान की आंशिक स्वीकृति की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

कोर्ट ने कहा, ‘‘इसके अलावा, वर्तमान अभियुक्त के साथ-साथ अन्य अभियुक्तों को भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के तहत दंडनीय अपराध के लिए बरी करते हुए इसका (मृत्यु-पूर्व बयान का) एक हिस्सा ट्रायल कोर्ट द्वारा खारिज कर दिया गया है। इस तरह के दोहरे रवैये या केवल आंशिक स्वीकृति की अनुमति नहीं दी जा सकती। मृत्यु-पूर्व बयान को सम्पूर्णता में पढ़ना होगा।"

कोर्ट ने निष्कर्ष  निकाला कि मृत्यू-पूर्व बयान बयान एक मनगढ़ंत दस्तावेज है और इसे ट्रायल कोर्ट द्वारा तत्काल खारिज कर दिया जाना चाहिए था।

बेंच ने कहा, "यह कहा जा सकता है कि चूंकि ओवरराइटिंग भी है और उपरोक्त अस्पष्टीकृत तथ्य हमें इस निष्कर्ष पर ले जाते हैं कि दस्तावेज-31, मृत्यु-पूर्व बयान एक मनगढ़ंत या तैयार किया गया दस्तावेज है और इसे विद्वान एडिशनल सेशन जज द्वारा तुरंत खारिज कर दिया जाना चाहिए था। गलत निष्कर्षों के आधार पर दोषसिद्धि को बनाए रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती है और इसलिए, अपील को यह मानते हुए अनुमति दी जानी चाहिए कि अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे अभियुक्तों के अपराध को साबित करने में विफल रहा है।’’

केस नं. – क्रिमिनल अपील नं. 286/2015

केस टाइटल – संदीप प्रकाश राठौड़ बनाम महाराष्ट्र सरकार

जजमेंट की कॉपी डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करे




Tags:    

Similar News