'बार और बेंच, कोर्ट फंक्शनल रखने के लिए अपना जीवन दांव पर लगा रहे हैं': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एफआईआर रद्द करने के लिए दायर याचिका लागत के साथ खारिज की
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक याचिका खारिज कर दी जिसके अंतर्गत, एक पति द्वारा, अपनी पत्नी की गर्दन दबाकर उसे चोट पहुँचाने के चलते आईपीसी की धारा 307 के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की गयी थी।
न्यायमूर्ति पंकज नकवी और न्यायमूर्ति संजय कुमार पचोरी की खंडपीठ ने इस याचिका को दायर करने पर अपनी नाराज़गी जताई और नोट किया कि अदालत असाधारण परिस्थितियों में काम कर रही है, जिसमें बार और बेंच दोनों अपना जीवन दांव पर लगा रहे हैं।
न्यायालय ने आगे कहा,
"यह याचिका न्यायालय की प्रक्रिया का सरासर दुरुपयोग है, जिसे लागत के साथ खारिज किया जाना होगा।"
इस प्रकार, रिट याचिका को खारिज कर दिया गया, लेकिन 10,000 / - की लागत के साथ, जिसे कलेक्टर, बुलंदशहर द्वारा याचिकाकर्ता से भू-राजस्व के रूप में एकत्र किया जाएगा, आदेश की तारीख से एक महीने के भीतर।
एक अनुपालन रिपोर्ट 2 महीने के भीतर कलेक्टर द्वारा न्यायालय की रजिस्ट्री को प्रस्तुत करने का निर्देश भी दिया गया है।
यह ध्यान दिया जा सकता है कि COVID-19 के कारण, 25 मार्च को एक राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन लगाया गया था, और इसके तुरंत बाद, सुप्रीम कोर्ट, उच्च न्यायालयों और अधीनस्थ अदालतों को वर्चुअल सुनवाई शुरू करनी पड़ी थी।
तब से, देश भर में, सभी स्तरों पर अदालतों ने खुदको केवल अत्यावश्यक और महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई तक ही सीमित रखा है।
हाल ही में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने COVID -19 संक्रमण के "उच्च जोखिम" का हवाला देते हुए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई के लिए एक वकील को विकल्प देने से इनकार कर दिया था।
न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की पीठ ने एएसजीआई संजय कुमार ओम से कहा कि वर्चुअल सुनवाई के लिए उनके अनुरोध को अनुमति नहीं दी जा सकती है क्योंकि उच्च न्यायालय का कंप्यूटर अनुभाग COVID -19 संक्रमण के लिए "उच्च जोखिम क्षेत्र" है और इसलिए वहां किसी भी व्यक्ति को जाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
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