लीज़ पर ली गई ज़मीन पर बने स्कूलों की आरटीई अधिनियम के तहत मान्यता समाप्त करने के आदेश पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रोक लगाई
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के उस आदेश को स्थगित कर दिया है, जिसमें उसने कहा था कि मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत चलने वाले स्कूलों के पास अपनी ज़मीन होनी चाहिए नहीं तो अधिनियम की धारा 18 और 19 के तहत उन्हें मान्यता नहीं दी जाएगी।
राज्य के विशेष सचिव ने जनवरी 11, 2019 को एक आदेश जारी किया था कि जिन स्कूलों के पास अपने परिसर नहीं हैं, उन्हें आरटीई अधिनियम के तहत मान्यता देने पर विचार नहीं किया जाएगा। इसमें यह भी कहा गया कि जो स्कूल उपरोक्त शर्तों पर खड़ा नहीं उतरते हैं, लेकिन जिन्हें मान्यता दे दी गई है उन्हें इनको पूरा करने के लिए एक साल का समय दिया जाएगा।
राज्य को जवाब देने के लिए एक महीने का समय देते हुए जस्टिस राजीव जोशी की एकल जज की पीठ ने इस मामले की सुनवाई अगले महीने करने का आदेश दिया।
पीठ ने अपने आदेश में कहा,
"याचिकाकर्ताओं के संघ के ख़िलाफ़ स्कूल के भवन के स्वामित्व के बारे में किसी भी तरह की कार्रवाई नहीं की जाएगी।"
याचिकाकर्ता स्कूल ने अपनी दलील में कहा है कि आदेश न केवल आरटीई अधिनियम और उसके तहत बनाए गए नियमों के ख़िलाफ़ है बल्कि यह पूर्व में जारी किए गए सरकारी आदेश के भी ख़िलाफ़ है। 5 मई 2013 को एक आदेश में सरकार ने मान्यता देने के लिए स्कूलों से स्कूल भवन का 10 साल का पंजीकृत किराया/लीज़ अग्रीमेंट दने को कहा था।
यह कहा गया कि वर्तमान आदेश मनमाना और गैर कानूनी है, क्योंकि यह प्रशासनिक कार्रवाई द्वारा क़ानून और नियमों में बदलाव की कोशिश करता है।
"जब अधिनियम के तहत नियम बनाए जाते हैं और उसमें स्कूल भवन पर उस सोसाइटी के स्वामित्व की बात नहीं कही गई है जो स्कूल को चलाता है तो याचिकाकर्ताओं पर इस शर्त को किसी प्रशासनिक आदेश से नहीं लादा जा सकता," दलील में कहा गया।
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