इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 19 वर्षीय लड़की का बलपूर्वक धर्म परिवर्तन करवाने के मामले में आरोपी महिला को जमानत दी

Update: 2021-03-26 15:00 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में उस महिला को जमानत दे दी है,जिस पर एक 19 साल की लड़की का अपहरण करने और उसे धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया गया है।

महिला पर यूपी पुलिस ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020 के तहत केस दर्ज किया था।

अध्यादेश के प्रावधान, जो अब एक अधिनियम के रूप में लागू हो चुके हैं, गैर-कानूनी धर्म परिवर्तन को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध घोषित करते हैं।

इसके तहत-कोई व्यक्ति दुर्व्यपदेशन, बल, असम्यक असर, प्रपीड़न, प्रलोभन के प्रयोग या पद्धति द्वारा या किसी कपटपूर्ण साधन द्वारा या विवाह द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को प्रत्यक्ष या अन्यथा रूप में एक धर्म से दूसरे धर्म में संपरिवर्तित नहीं करेगा/करेगी या संपरिवर्तित करने का प्रयास नहीं करेगा/करेगी और न ही किसी ऐसे व्यक्ति को ऐसे धर्म संपरिवर्तन के लिए उत्प्रेरित करेगा/करेगी, विश्वास दिलाएगा/दिलाएगी या षडयंत्र करेगा/करेगी।

एक्ट की धारा 5 के अनुसार इस तरह के गैर-कानूनी धर्म परिवर्तन के मामले में कम से कम एक वर्ष के कारावास की सजा होगी, जो पांच वर्ष तक बढ़ सकेगी और कम से कम 15 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया जाएगा।

वर्तमान मामले में, आवेदक चांदबीबी ने सीतापुर जिले के तम्बौर पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धारा 364, 366, 368 व 120 बी और अध्यादेश की धारा 3/5 के तहत कथित अपराध के लिए दर्ज एफआईआर में जमानत दिए जाने की मांग की थी।

चांदबीबी ने दावा किया कि उसका नाम एफआईआर में नाम नहीं था और उसे मामले में झूठा फंसाया गया है।

यह भी प्रस्तुत किया गया था कि पीड़िता को उसकी कस्टडी से बरामद नहीं किया गया था और अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, अपहरण के तुरंत बाद पीड़िता अपने पिता के साथ पुलिस थाने में पेश हुई थी।

उन्होंने आगे कहा कि जब सीआरपीसी की धारा 161 के तहत पीड़िता का बयान जांच अधिकारी द्वारा दर्ज किया गया था, तो उसके खिलाफ किसी भी प्रकार का कोई आरोप नहीं लगाया गया था।

अतिरिक्त सरकारी अधिवक्ता ने हालांकि इस आधार पर जमानत की प्रार्थना का विरोध किया कि पीड़िता के अतिरिक्त बयान में, यह विशेष रूप से कहा गया था कि जिन-जिन लोगों ने उस पर धर्म परिवर्तन के लिए दबाव बनाया था,उनमें तत्काल आवेदक भी शामिल थी।

न्यायमूर्ति मोहम्मद फैज आलम खान की एकल पीठ ने हालांकि उल्लेख किया कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपने बयान में पीड़िता ने आवेदक के खिलाफ कोई आरोप नहीं लगाया था।

खंडपीठ को सूचित किया गया कि धारा 164 के तहत अपने बयान में पीड़िता ने आवेदक के खिलाफ अपहरण के बारे में या किसी भी तरह के उकसाने का कोई आरोप नहीं लगाया था। वास्तव में, उसने स्पष्ट रूप से कहा था कि वह सह-अभियुक्त जिबरेल के साथ अपनी मर्जी और स्वतंत्र इच्छा से गई थी और वह उससे प्यार करती है और उसने अपनी इच्छा से धर्म परिवर्तन किया है।

तथ्यों की समग्रता को देखते हुए, और यह कि चार्जशीट पहले ही दायर की जा चुकी है, खंडपीठ ने कहा कि आवेदक को जमानत पर रिहा किया जा सकता है।

धर्म परिवर्तन पर अन्य आदेश

पिछले साल, हाईकोर्ट ने अध्यादेश के तहत आरोपित एक नदीम की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। उस पर आरोप था कि उसने शिकायतकर्ता की पत्नी के साथ अवैध संबंध विकसित किए ताकि वह उसका धर्म परिवर्तन करवा सके।

जस्टिस पंकज नकवी और जस्टिस विवेक अग्रवाल खंडपीठ ने कहा, ''विक्टिम वास्तव में एक बालिग है जो अपने बारे में सब अच्छी तरह से समझती है। उसके साथ-साथ याचिकाकर्ता का भी निजता का मौलिक अधिकार है और वयस्क होने के नाते उन्हें अपने कथित संबंधों के परिणामों के बारे में पता है।''

इस महीने की शुरुआत में, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक कैथोलिक नन को अग्रिम जमानत दे दी थी। उस पर आरोप था कि उसने एक हिंदू महिला को ईसाई बनाने का प्रयास किया था। उस पर एमपी धर्म-विरोधी धर्मांतरण कानून (MP's anti-religious conversion law) के तहत केस दर्ज किया गया था।

शिकायतकर्ता द्वारा यह आरोप लगाया गया था कि उसका पति, जो एक मानसिक विकार से पीड़ित था, को आवेदक ने अपने यहाँ ठीक करने का वादा किया गया था। परंतु उनसे कहा गया था कि इसके लिए शिकायतकर्ता और उसके परिवार को ईसाई धर्म अपनाना होगा। प्राथमिकी में यह भी कहा गया था कि उसने (आवेदक) कहा था कि ईसाई भगवान हिंदू भगवान से बड़ा है।

दूसरी ओर, आवेदक के वकील ने कहा था कि शिकायत झूठी है और यह शिकायत इसलिए दायर की गई थी क्योंकि शिकायतकर्ता को कॉन्वेंट की नौकरी से निकाल दिया गया था।

दोनों पक्षों को सुनने के बाद, न्यायालय ने आदेश दिया था कि सुनवाई की अगली तारीख तक, आवेदक को अस्थायी जमानत दी जाती है।

केस का शीर्षकः चांदबीबी बना यूपी राज्य

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