इलाहाबाद हाईकोर्ट ने धोखाधड़ी मामले में यूपी में एकमात्र बसपा विधायक के खिलाफ 'अभियोजन वापस लेने' के लोक अभियोजक के आवेदन की अनुमति दी
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के एकमात्र विधायक उमाशंकर सिंह के खिलाफ धोखाधड़ी के मामले में धारा 321 सीआरपीसी के तहत 'अभियोजन वापस लेने' के लोक अभियोजक के आवेदन को स्वीकार कर लिया।
जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की खंडपीठ ने कहा कि संबंधित लोक अभियोजक ने न केवल मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार किया बल्कि निष्पक्ष विस्तृत तरीके से सबूतों पर भी विचार किया।
पीठ ने यह भी कहा कि पीपी ने इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए अपने स्वतंत्र दिमाग का इस्तेमाल किया था कि याचिकाकर्ताओं (उमाशंकर सिंह सहित) के खिलाफ कार्यवाही जारी रखना जनहित में नहीं होगा और अभियोजन से हटने से आगे न्याय होगा।
इसके साथ ही कोर्ट ने अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, बलिया के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें सिंह और 10 अन्य के खिलाफ आईपीसी की धारा 406, 409, 419, 420, 467, 468 और 471 और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1) (सी) और 13(2) के तहत दर्ज मामले के संबंध में सीआरपीसी की धारा 321 के तहत दायर लोक अभियोजक के आवेदन को खारिज कर दिया गया था।
दरअसल, बैंक खाते से पैसे की कथित धोखाधड़ी के लिए सिंह और अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। सीबीसीआईडी ने अपराध की जांच के बाद चार्जशीट दायर की, जिस पर संज्ञान लिया गया और याचिकाकर्ताओं को मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाया गया। याचिकाकर्ता को निचली अदालत से ही जमानत मिल गई थी।
हालांकि, इसके बाद, शिकायतकर्ता और प्राथमिकी में नामित अभियुक्तों ने विवाद को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया और शिकायतकर्ता ने निचली अदालत में एक हलफनामा दिया कि अगर सीआरपीसी की धारा 321 के तहत आवेदन किया जाता है तो उसे कोई आपत्ति नहीं होगी। याचिकाकर्ताओं के अभियोजन से वापसी के लिए अनुमति दी जाती है।
इसके अनुसरण में, लोक अभियोजक ने दिनांक 9.6.2020 को विशेष न्यायाधीश, एमपी/एमएलए, इलाहाबाद की अदालत में धारा 321 के तहत एक आवेदन दायर किया जिसमें उक्त मामले में याचिकाकर्ताओं के अभियोजन से वापस लेने की प्रार्थना की गई थी।
अपने आदेश में, ट्रायल कोर्ट ने कहा कि मामला गंभीर प्रकृति का प्रतीत होता है, और लोक अभियोजक ने आवेदन दायर करते समय अपने स्वतंत्र दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया था और आवेदन में केवल यह कहा था कि सरकार ने मामले को वापस लेने का निर्णय लिया है। इस आदेश को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता हाईकोर्ट चले गए।
शुरुआत में, अदालत ने कहा कि पक्षों के बीच विवाद व्यक्तिगत प्रकृति का था और अपराध कथित रूप से वर्ष 2008 में किया गया था और आज तक आरोप तय नहीं किया गया है।
न्यायालय ने यह भी नोट किया कि शिकायतकर्ता ने स्वयं अभियोजन से वापसी के आवेदन के समर्थन में निचली अदालत के समक्ष एक हलफनामा दिया था।
इसके अलावा, न्यायालय ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न मामलों में माना है कि आपराधिक कार्यवाही जो व्यक्तिगत / निजी विवादों का परिणाम है, को हाईकोर्ट द्वारा सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए रद्द किया जा सकता है, अगर पक्ष एक समझौता पर पहुंचे हैं।
इसके साथ ही अदालत ने अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, बलिया के आदेश को रद्द कर दिया और सीआरपीसी की धारा 321 के तहत लोक अभियोजक द्वारा अभियोजन से वापस लेने के लिए दायर आवेदन को स्वीकार कर लिया।
आवेदक का वकील : अशोक कुमार पाण्डेय
विरोधी पक्ष का वकील: जी.ए.
केस टाइटल - उमा शंकर सिंह और 10 अन्य बनाम यूपी राज्य [आवेदन यू/एस 482 संख्या – 2704 ऑफ 2023]
केस साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (एबी) 52
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