एक देखभाल करने वाला/नौकर लंबे कब्जे के बावजूद संपत्ति में हित सृजित नहीं कर सकता: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2021-09-21 08:37 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक देखभाल करने वाला/नौकर लंबे कब्जे के बावजूद संपत्ति पर हित सृजित नहीं कर सकता है।

इस मामले में, वादी ने एक घोषणा की मांग की थी कि वह मुकदमे की संपत्ति के एकमात्र मालिक के देखभाल करने वाले/नौकर के रूप में एक वैध कब्जेदार है। उसने प्रतिवादी के खिलाफ मुकदमे की संपत्ति के शांतिपूर्ण कब्जे में विघ्न डालने या बेदखल करने से रोकने के लिए एक स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की थी।

मुकदमे में प्रतिवादी ने सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश VII नियम 11 के तहत एक आवेदन दायर किया था, जिसमें इस आधार पर वाद को खारिज करने की मांग की गई कि देखभाल करने वाले/नौकर के कहने पर वाद की कार्यवाही सुनवाई योग्य नहीं है क्योंकि उसने वाद की संपत्ति में लंबे समय से कब्जे के बावजूद किसी हित का सृजन नहीं किया है। निचली अदालत ने यह आवेदन को खारिज कर दिया। उच्च न्यायालय ने भी निचली अदालत के आदेश का बरकरार रखा।

अपील में जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस अभय एस ओका की पीठ ने इस दृष्टिकोण से असहमति जताई और कहा, पक्षकारों के वकील को सुनने और रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री को देखने के बाद हमारा विचार है कि ट्रायल कोर्ट ने प्रतिवादी संख्या एक-वादी की दलील की सराहना करने में एक स्पष्ट त्रुटि की है। चूंकि एक देखभाल कर्ता /नौकर लंबे कब्जे के बावजूद संपत्ति में हित का सृजन नहीं कर सकता है और देखभाल कर्ता /नौकर को मांग पर तुरंत कब्जा देना पड़ता है और जहां तक ​​प्रतिकूल कब्जे की दलील का संबंध है, इसमें भौतिक विवरणों का अभाव है और वादी के मुकदमा स्‍थाप‌ित करने लिए कार्रवाई के कारण का खुलासा नहीं करता है।

अपील की अनुमति देते हुए, अदालत ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि कानून के पहले सिद्धांतों पर तत्काल कार्यवाही टिकाऊ नहीं है।

Citation: LL 2021 SC 479

केस शीर्षक: हिमालय विनट्रेड प्रा लिमिटेड बनाम मोहम्मद जाहिद

Case no.| Date: CA 5779 OF 2021 | 16 September 2021

कोरम: जस्टिस अजय रस्तोगी और अभय एस. ओका

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