पति के साथ हिसाब बराबर करने के लिए आईपीसी की धारा 498-ए को ससुराल वालों को सबक सिखाने के लिए हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकताः छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

Update: 2022-07-16 13:32 GMT
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि पति के साथ वैवाहिक हिसाब निपटाने के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के तहत दायर रिपोर्ट को पति के पूरे परिवार को सबक सिखाने के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस रजनी दुबे की खंडपीठ ने पति के पक्ष में तलाक का एक आदेश देते हुए कहा कि शादी पूरी तरह टूट चुकी है,जिसे अब ठीक नहीं किया जा सकता है।

संक्षेप में मामला

पति ने इस मामले में फैमिली कोर्ट, बिलासपुर द्वारा पारित निर्णय और डिक्री के खिलाफ हाईकोर्ट में एक अपील दायर की थी। फैमिली कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत उसकी तलाक की मांग को खारिज कर दिया था।

उसका मामला यह था कि उसकी पत्नी ने अपीलकर्ता-पति के साथ-साथ उसके वृद्ध माता-पिता, अविवाहित बहन और भाइयों के खिलाफ आईपीसी की धारा 498-ए के तहत एफआईआर दर्ज की थी, हालांकि, उन सभी को वर्ष 2006 में निचली अदालत ने आरोपों से बरी कर दिया था।

एफआईआर में, यह आरोप लगाया गया था कि 1 लाख रुपये की मांग करते हुए उसके साथ क्रूरता का व्यवहार किया गया। साथ ही यह भी आरोप लगाया था उसके पति (अपीलकर्ता) के एक महिला के साथ अवैध संबंध हैं। फैमिली कोर्ट के समक्ष उसने आरोप लगाया कि चूंकि उसके साथ क्रूरता का व्यवहार किया गया था, इसलिए पति तलाक का हकदार नहीं है।

हालांकि, यह पति का प्राथमिक तर्क था कि पत्नी द्वारा झूठे आरोप लगाए गए और झूठे आरोपों के साथ रिपोर्ट करने के बाद, अपीलकर्ता और उसके पूरे परिवार के सदस्यों को एक आपराधिक मुकदमे का सामना करने के लिए मजबूर किया गया, जिससे समाज में उनकी प्रतिष्ठा कम हो गई।

आगे यह भी प्रस्तुत किया गया कि ट्रायल कोर्ट ने एक निष्कर्ष में पति के इस तर्क को स्वीकार कर लिया था कि तलाक का नोटिस प्राप्त होने के बाद, पत्नी ने पति और परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ झूठा आरोप लगाया था, और अंततः, यह माना गया कि आईपीसी की धारा 498-ए के तहत कोई अपराध नहीं बनता है।

न्यायालय की टिप्पणियां

झूठे आरोपों के तहत आईपीसी की धारा 498-ए के तहत शिकायत दर्ज करने के लिए पत्नी के कृत्य पर टिप्पणी करते हुए, न्यायालय ने कहा कि,

''निश्चित रूप से इसका एक परिवार की सामाजिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा क्योंकि यह एक ऐसे व्यक्ति को अलग-थलग कर देता है, जिसे दूसरे पति या पत्नी द्वारा लगाए गए झूठे आरोपों के कारण आपराधिक मुकदमे का सामना करना पड़ता है। इसलिए, इस तरह के आरोप लगाने से पहले, सामाजिक स्थिति, पार्टियों के शैक्षिक स्तर और जिस समाज में वे रहते हैं,उस पर ध्यान दिया जाना चाहिए अन्यथा, ऐसे आरोप क्रूरता के समान होंगे।''

कोर्ट ने आगे कहा कि तत्काल मामले में, अपीलकर्ता-पति के अलावा, उसके पूरे परिवार के सदस्यों के खिलाफ आरोप लगाया गया था, हालांकि, उनको बरी करने के संबंध में कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले में, यह स्पष्ट रूप से पाया गया है कि आरोप झूठे थे।

जैसा कि, कोर्ट ने रेखांकित किया है कि जब प्रतिवादी के आचरण के बारे में निष्कर्ष निकाला गया है कि उसने अपीलकर्ता के खिलाफ झूठे आरोप लगाए हैं, तो यह उसकी ओर से ''क्रूरता'' को दिखाएगा।

अदालत ने पति के पक्ष में तलाक की डिक्री देते हुए कहा कि,''अपीलकर्ता एक डॉक्टर है और जैसा कि सुनवाई के दौरान कहा गया है, प्रतिवादी-पत्नी एक निजी शिक्षक है। इसलिए, एक आपराधिक मामले का सामना करना हमेशा समाज में एक कलंक होगा। आईपीसी की धारा 498-ए के तहत दायर रिपोर्ट को पति के परिवार के सदस्यों को सबक सिखाने के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह एक युवा पेशेवर की भविष्य की संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है और इस अंतराल को भरने में लंबा समय लग सकता है। इसलिए, हमारा मानना है कि धारा 498-ए के तहत पूरे परिवार के सदस्यों के खिलाफ पत्नी द्वारा लगाए गए झूठे आरोप मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आएंगे और प्रतिवादी-पत्नी का ऐसा आचरण जिसने अपीलकर्ता-पति को ऐसी मानसिक क्रूरता और पीड़ा दी है, उसके लिए अब अपीलकर्ता-पति के साथ रहना संभव नहीं होगा।''

हालांकि, अपीलकर्ता को निर्देश दिया गया है कि वह अपनी पत्नी को 15000 रुपये प्रति माह गुजारे भत्ते के रूप में दे।

केस टाइटल- डॉ. रामकेश्वर सिंह बनाम श्रीमती शीला सिंह उर्फ मधुसिंह, एफएएम नंबर 94/2013

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