वादी को उन पक्षकारों को जोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता जिनके खिलाफ वो लड़ना नहीं चाहता : SC [निर्णय पढ़े]
सुप्रीम कोर्ट ने यह दोहराया है कि किसी वादी को एक वाद में उन पक्षकारों को जोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता जिनके खिलाफ वो लड़ना ही नहीं चाहता जब तक कि ऐसा करना कानून के शासन की मजबूरी न हो।
Specific performance से जुड़ा क्या था यह पूरा मामला१
विशिष्ट प्रदर्शन (specific performance) के लिए दायर सूट में, सूट की लंबितता के दौरान सूट की संपत्ति खरीदने वाले खरीदार ने मुकदमे में प्रतिवादी के रूप में निहितार्थ के लिए सीपीसी के आदेश 1 नियम 10 के तहत लंबित मुकदमे में एक आवेदन दायर किया। आवेदक का मामला यह था कि उसने सूट की संपत्ति खरीदी है और सूट के लिए ये एक आवश्यक और उचित पक्ष है क्योंकि उसे सूट की संपत्ति में प्रत्यक्ष रुचि है। यद्यपि ट्रायल कोर्ट ने आवेदन की अनुमति दी थी लेकिन छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के उक्त आदेश को रद्द कर दिया था।
(1) कार्यवाही में शामिल विवादों के संबंध में ऐसे पक्षकार के खिलाफ कुछ राहत का अधिकार होना चाहिए; (2) ऐसे पक्षकार की अनुपस्थिति में कोई प्रभावी डिक्री पारित नहीं की जा सकती।
अदालत ने आगे कहा :
"उपर्युक्त अवलोकन इस न्यायालय द्वारा इस सिद्धांत पर विचार किया गया है जो कि वादी एक प्रमुख वादी है और उन पक्षकारों को जोड़ने के लिए उसे मजबूर नहीं किया जा सकता जिनके खिलाफ वह नहीं लड़ना चाहता जब तक कि कानून के शासन की मजबूरी न हो। इसलिए, कस्तूरी मामले में फैसले पर विचार करते हुए अदालत का यह मानना है कि अपीलकर्ता को मूल अभियोगी और मूल प्रतिवादी नंबर 1 के बीच अनुबंध के विशिष्ट प्रदर्शन के लिए मूल अभियोगी द्वारा दायर मुकदमे में प्रतिवादी के रूप में प्रत्यारोपित नहीं किया जा सकता और विशिष्ट प्रदर्शन के लिए एक सूट में जिस अनुबंध के लिए अपीलकर्ता एक पक्षकार नहीं है और वह भी वादी की इच्छा के खिलाफ है। अभियोगी को उस पक्षकार को जोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता जिसके खिलाफ वह लड़ना नहीं चाहता है। यदि वह ऐसा करता है, तो उस स्थिति में यह अभियोगी के जोखिम पर होगा।"
अपीलकर्ताओं द्वारा जिन 2 अन्य फैसलों पर भरोसा किया गया वो रॉबिन रामजीभाई पटेल बनाम आनंदीबाई राम @ राजाराम पवार और श्री स्वस्तिक डेवलपर्स बनाम साकेत कुमार जैन के मामले थे।