पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण : " जाट सिख " भी OBC के तहत आरक्षण के हकदार : दिल्ली हाई कोर्ट [निर्णय पढ़े]

Update: 2019-06-22 08:45 GMT

सिविल सेवा के एक अभ्यर्थी को बड़ी राहत देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह कहा है कि राजस्थान राज्य (भरतपुर और धौलपुर जिलों को छोड़कर) में सिख जाति के लोग 'जाट' समुदाय से संबंधित हैं और पिछड़ा वर्ग प्रमाण पत्र प्राप्त करने के हकदार हैं।

व्यक्ति उस राज्य का स्थायी निवासी है या नहीं, पता लगाना जरूरी
हालांकि अदालत ने कहा कि इस तरह के प्रमाण पत्र जारी करने से पहले यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि संबंधित व्यक्ति उस राज्य का स्थायी निवासी है या नहीं।

कोर्ट ने यह कहा है कि प्रवासी ओबीसी, जो एक राज्य से दूसरे राज्य में चले गए हैं, के मामले में प्रमाण पत्र की वास्तविकता के बारे में संतुष्ट होने के बाद उनके पिता के मूल राज्य के निर्धारित प्राधिकारी द्वारा उनके पिता को जारी किए गए प्रमाण पत्र के प्रस्तुत करने पर ओबीसी प्रमाण पत्र जारी किया जा सकता है।

केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण प्रधान पीठ के आदेश के खिलाफ दाखिल हुई है याचिका
दरअसल न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर की पीठ केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण प्रधान पीठ द्वारा पारित 11.03.2019 के आदेश के खिलाफ भारत सरकार द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसने अनुराग बचन सिंह द्वारा दायर याचिका की अनुमति दी थी।

अनुराग बचन सिंह पहुँचे थे कैट
सिंह ने अपनी शिकायत के साथ कैट से संपर्क किया था कि वह ओबीसी श्रेणी/'जाट' समुदाय से हैं और वर्ष 2017 में आयोजित सिविल सेवा परीक्षा (सीएसई) में 673 की समग्र रैंक हासिल की थी लेकिन उन्हें यह सेवा आवंटित नहीं की गई।

ओबीसी श्रेणी से संबंधित एक अन्य उम्मीदवार जिसने 675 रैंक हासिल की थी, को भारतीय राजस्व सेवा आवंटित किया गया था।

सिंह को ओबीसी उम्मीदवार के रूप में नहीं चुनने का केंद्र का तर्क
सिंह को ओबीसी उम्मीदवार के रूप में नहीं चुनने का केंद्र द्वारा दिया गया कारण यह था कि उनके द्वारा प्रस्तुत प्रमाण पत्र, जोकि श्री गंगानगर (राजस्थान) के उप प्रभागीय मजिस्ट्रेट द्वारा जारी किया गया था, में उन्हें "जाट सिख" समुदाय से संबंधित बताया गया था।

भारत सरकार का रुख यह था कि "जाट सिख" राजस्थान राज्य की केंद्रीय सूची में एक पिछड़े समुदाय के रूप में सूचीबद्ध वर्ग में से नहीं है। दूसरी ओर सिंह का मामला यह था कि जाति "जाट" को एक पिछड़े वर्ग के रूप में सूचीबद्ध किया गया है और केवल इसलिए कि प्रमाण पत्र में उन्हें "जाट सिख" के रूप में वर्णित किया (क्योंकि वह सिख धर्म का पालन करते हैं), उन्हें इसका लाभ नहीं मिला जबकि तथ्य यह है कि वह जाट समुदाय से संबंधित हैं जो कि एक पिछड़ा वर्ग है।

अदालत की राय
कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई विवाद नहीं है कि "जाट समुदाय" को पिछड़े वर्ग के रूप में सूचीबद्ध किया गया है और अगर प्रतिवादी की उम्मीदवारी को ओबीसी श्रेणी में माना जाता है तो वह मेधावी है जिसे सीएसई 2017 में सेवा के लिए आवंटित किया जाना चाहिए।

पीठ ने उस अधिसूचना का उल्लेख किया जिस पर कैट ने मूल आवेदन की अनुमति देते समय भरोसा किया था और जिसमें कहा गया था कि ओबीसी की केंद्रीय सूची में किसी भी जाति/समुदाय को शामिल किए जाने के संबंध में धर्म का कोई बंधन नहीं है। इस तरह के किसी भी जाति/समुदाय के अपने धर्म के बावजूद ओबीसी की केंद्रीय सूचियों में शामिल किए जाने पर विचार किया जा सकता है बशर्ते वो समुदाय सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक पिछड़ेपन के मानदंडों को पूरा करे।

अदालत ने याचिका खारिज करते हुए कहा : 
"आरक्षण देने के प्रयोजनों के लिए पिछड़े वर्ग की भर्ती धर्म तटस्थ है। यह स्थिति होने के नाते, केवल इसलिए कि प्रतिवादी के धर्म अर्थात सिख धर्म का उल्लेख प्रतिवादी को जारी किए गए जाति प्रमाण पत्र में किया गया था, यह उस तथ्य को नहीं लेता जो मानता है कि वो "जाट समुदाय" से संबंधित है, जो कि एक आरक्षित वर्ग है। इसके अलावा एक ही प्राधिकरण अर्थात एसडीएम श्री गंगानगर (राजस्थान) ने बाद में भी वर्ग प्रमाण पत्र जारी किए हैं जो किसी भी तरह का संदेह नहीं छोड़ते कि प्रतिवादी "जाट समुदाय" से है जो राजस्थान राज्य के लिए केंद्रीय सूची में एक आरक्षित वर्ग है और ओबीसी की केंद्रीय सूची में आता है। "

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