आरोपी को सुनवाई का अवसर दिए बिना या कोर्ट मित्र (Amicus Curiae) नियुक्त किए बिना,हाईकोर्ट नहीं उलट सकती है दोषमुक्ति को-सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

Update: 2019-07-14 08:57 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक आपराधिक अपील में हाईकोर्ट बिना आरोपी को सुनवाई या उसका पक्ष रखने का मौका दिए या कोर्ट मित्र नियुक्त किए,जो आरोपी के पेश न होने पर उसकी तरफ से जिरह कर सके,दोषमुक्ति या बरी किए जाने के आदेश को उलट नहीं सकती है।

जस्टिस आर.भानुमथि और जस्टिस ए.एस बोपन्ना की पीठ ने यह दलीलें समर्थन में पाई कि आरोपी के वकील की अनुपस्थिति में हाईकोर्ट को अपील पर मैरिट या गुणवत्ता के आधार पर निर्णय नहीं लेना चाहिए था।
इस मामले में (चरिस्टोफर राज बनाम के.विजयकुमार) ने हाईकोर्ट ने आरोपी के दोषमुक्ति को उलटते हुए उसे एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत दोषी करार दे दिया और उस पर साठ हजार रुपए का जुर्माना लगा दिया। जुर्माना न देने की सूरत में उसे छह माह की साधारण सजा काटनी होगी।
इस आदेश को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मामले को वापिस हाईकोर्ट के पास भेज दिया है। पीठ ने कहा कि-
''जब आरोपी हाईकोर्ट के समक्ष पेश ही नहीं हुआ,तो हमारा मानना है कि हाईकोर्ट को आरोपी या याचिकाकर्ता को दूसरा नोटिस जारी करना चाहिए था या हाईकोर्ट विधिक सेवा कमेटी को एक वकील नियुक्त करना चाहिए था या फिर हाईकोर्ट को कोर्टमित्र की सहायता लेनी चाहिए थी। जब आरोपी की तरफ से कोई पेश नहीं हुआ,न ही किसी वकील को कोटमित्र नियुक्त किया गया,ऐसे में हाईकोर्ट को अपने आप से आपराधिक अपील पर गुणवत्ता या मैरिट के आधार पर फैसला नहीं देना चाहिए था,वह भी तब,जब आरोपी या याचिकाकर्ता को दोषमुक्ति का लाभ मिला हो। ऐसे में हाईकोर्ट ने दोषमुक्ति को उलट कर गलती की है क्योंकि आरोपी को सुनवाई का मौका नहीं दिया गया या उसकी तरफ से दलील पेश करने के लिए कोर्टमित्र नियुक्त नहीं किया गया।''

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