अगर शिकायतकर्ता का सम्पत्ति पर क़ब्ज़ा नहीं है तो आईपीसी की धारा 447 के तहत उस पर कोई अभियोग नहीं लगाया जा सकता : दिल्ली हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]

Update: 2019-05-28 08:30 GMT

न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा ने जगदीश कपिला बनाम राज कुमार एवं अन्य मामले में कहा कि जब इस बात के सबूत नहीं हैं कि याचिकाकर्ता ने जो क़ब्ज़ा छोड़ा उसे शिकायतकर्ता को सौंप दिया गया, तो उस स्थिति में शिकायतकर्ता के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 447 के तहत मामला नहीं बन सकता।

अदालत ने निचली अदाल द्वारा दिए गए आदेश के ख़िलाफ़ चुनौती पर दिए गए आदेश को यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि निचली अदालत ने अभियोग यह समझकर लगाया था कि शिकायतकर्ता के पास उस समय दुकान का क़ब्ज़ा है जो कि सही नहीं है।

जिस दुकान पर विवाद है वह नई दिल्ली के आरके पुरम स्थित पालिका भवन में है जो कि एनडीएमसी मार्केट में है। एनडीएमसी ने याचिकाकर्ता इस दुकान का आवंटी है। प्रतिवादी ने धारा 200 के तहत एक शिकायत दायर की थी कि याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी को यह दुकान किराए पर देने को सहमत हो गया था और इसके लिए ₹50,000/- के एडवांस की माँग की थी। यह आरोप लगाया गया कि ₹50,000/- का एडवांस चुकाया गया और दुकान की चाबी 18.01.2011 को सुपुर्द कर दिया गया और याचिकाकर्ता ने आश्वासन दिया था कि वह इसकी रसीद देगा और दुकान से अपने सामान हटा लेगा।

कोर्ट के सामने जो तथ्य उभरा वह यह था कि याचिकाकर्ता को एनडीएमसी से दुकान आवंटित हुआ था और शिकायतकर्ता के ख़िलाफ़ उसके पक्ष में एक आदेश था जिसमें शिकायतकर्ता को याचिकाकर्ता से इस दुकान का क़ब्ज़ा ज़बरन लेने से रोका गया था। आगे स्थिति यह थी कि इस बात का कोई दस्तावेज़ी सबूत नहीं था जिससे पता चल सके कि याचिकाकर्ता ने दुकान को किराए पर लगाने की बात की हो, प्रतिवादी द्वारा पैसे के भुगतान की बात का पता चलता हो, दुकान को ख़ाली करने और इस ख़ाली दुकान को प्रतिवादी को सौंपने की बात हो।

इस बात के भी कोई सबूत नहीं थे कि दुकान को प्रतिवादी को किराए पर देने को लेकर कोई टेनेंसी अग्रीमेंट किया गया था जिसमें प्रतिवादी को इसका क़ब्ज़ा देने की बात कही गई थी। इसके उलट, शिकायतकर्ता ने ख़ुद आरोप लगाया कि दुकान में याचिकाकर्ता के कुछ सामान - एक टेबल और कुर्सी और कुछ साइड रैक पड़े हुए हैं जिनको उसने वहाँ से एक दिन के भीतर हटा लेने का आश्वासन दिया था।

याचिकाकर्ता के वक़ील ने कहा कि निचली अदालत ने उसके ख़िलाफ़ चार्ज फ़्रेम करके ग़लती की और इस बात पर ग़ौर नहीं किया कि याचिकाकर्ता दुकान का आवंटी है और दुकान पर उसका क़ब्ज़ा है और इस बात का कोई दस्तावेज़ी सबूत नहीं है कि दुकान पर प्रतिवादी/शिकायतकर्ता का कभी क़ब्ज़ा रहा।

कोर्ट ने पाया कि निचली अदालत का आईपीसी की धारा 447 के तहत चार्ज फ़्रेम करना सही नहीं था और उसने निचली अदालत के फ़ैसले को यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि याचिकाकर्ता के ख़िलाफ़ फ़्रेम किए गए चार्ज अदालत में टिकने लायक़ नहीं हैं। इस तरह उसने याचिकाकर्ता को बरी कर दिया। 


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