किसी राष्ट्रीयकृत बैंक का प्रबंधक सरकारी नौकर होने के बावजूद सीआरपीसी की धारा 197 के तहत संरक्षण का दावा नहीं कर सकता : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

Update: 2019-05-07 04:26 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक राष्ट्रीयकृत बैंक में काम करने वाला सरकारी मुलाजिम सीआरपीसी की धारा 197 के तहत अनुमति का संरक्षण प्राप्त नहीं कर सकता।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति केएम जोसफ़ ने इस मामले में अपने फ़ैसले के लिए K.CH. Prasad Vs. J. Vanalatha Devi मामले में 1987 में आए फैसले पर भरोसा किया। इस मामले में कहा गया कि सरकारी कर्मचारी वह है जिसे सरकार की अनुमति के बिना अपने पद से हटाया नहीं जा सकता है।

यह कहा गया कि सीआरपीसी की धारा 197 का प्रयोग तभी होता है जब सरकारी नौकर ऐसा है जिसे अपने ऑफ़िस द्वारा हटाया नहीं जा सकता और सिर्फ़ सरकार या सरकार की अनुमति ही उसे हटा सकती है। चूँकि यह व्यक्ति ऐसे किसी पद पर तैनात नहीं था कि उसे हटाया नहीं जा सकता है, कोर्ट ने कहा कि उस पर यह प्रावधान नहीं लागू हो सकता।

वर्तमान मामले में (SK Miglani vs. State NCT of Delhi), आरोपी बैंक ऑफ़ बड़ोदा की फ़रीदाबाद शाखा में प्रबंधक के रूप में काम कर रहा था। हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेट के आदेश को सही ठहराया कि उसके मामले में सीआरपीसी की धारा 197 लागू नहीं होता है क्योंकि वह कोर्ट को यह नहीं बता पाए कि वे एक सरकारी मुलाजिम हैं जिसे सरकार या सरकार के आदेश के बिना नहीं हटाया जा सकता।

हाईकोर्ट ने कहा था, "…अपीलकर्ता सीआरपीसी की धारा 197 के तहत संरक्षण का दावा नहीं कर सकता। हमारा मानना है कि इस बात की जाँच की ज़रूरत नहीं है कि जब अपीलकर्ता सीआरपीसी की धारा 197(1) के तहत संरक्षण प्राप्त ही नहीं कर सकता तो फिर इस बात की जाँच करने का कोई मतलब नहीं है कि वह उस समय अपने आधिकारिक कर्तव्य का निर्वहन कर रहा था या नहीं।"


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