ट्रान्स्फ़र ऑफ़ प्रॉपर्टी ऐक्ट,1882 के तहत किरायेदार और मकान मालिक के बीच सम्पत्ति विवाद का फ़ैसला मध्यस्थता से हो सकता है या नहीं, बड़ी पीठ करेगी निर्णय [निर्णय पढ़े]

Update: 2019-03-15 14:46 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने हिमाँगनी एंटरप्राइज़ बनाम कमलजीत सिंह अहलूवालिया मामले में उसका फ़ैसला सही है कि नहीं यह जानने के लिए इस मामले को एक बड़ी बेंच को सौंप दिया है। इस फ़ैसले में कोर्ट ने कहा था कि मकान मालिक और किरायेदार के बीच जहाँ ट्रान्स्फ़र ऑफ़ प्रॉपर्टी ऐक्ट, 1882 लागू होगा उस मामले में मध्यस्थता नहीं हो सकती।

न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन और न्यायमूर्ति विनीत सरन की पीठ ने कलकत्ता हाईकोर्ट के एक फ़ैसले के ख़िलाफ़ याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। इस फ़ैसले में एक मकान मालिक और उसके किरायेदार के बीच विवाद को निपटाने के लिए एक मध्यस्थ की नियुक्ति की बात कही गई थी।

इसमें कहा गया कि ट्रान्स्फ़र ऑफ़ प्रॉपर्टी ऐक्ट मध्यस्थता के बारे में कुछ नहीं कहता और वह मध्यस्थता को ख़ारिज। भी नहीं करता।

"…ट्रान्स्फ़र ऑफ़ प्रॉपर्टी ऐक्ट के क़ानून में ऐसा कुछ नहीं है कि लीज़ के निर्धारण के बारे में अगर कोई विवाद है तो उसको मध्यस्थता से निपटाया नहीं जा सकता।"

कोर्ट ने कहा कि हिमाँगनी एंटरप्राइज़ मामले में जिन दो फ़ैसलों का ज़िक्र किया गया है उसमें सिर्फ़ यह कहा गया है कि टेनेंसी के बारे में सिर्फ़ वे मामले जो (i) विशेष क़ानूनों के तहत हैं (ii) जहाँ किरायेदार को बेदख़ली से सुरक्षा मिली हुई है और (iii) जहाँ सिर्फ़ कुछ अदालतों को ही यह अधिकार है कि वह बेदख़ली का आदेश दे या इस मामले की सुनवाई करे।

कोर्ट ने कहा कि ये सभी मुद्दे जिसका कि धारा 111 में ज़िक्र है, ऐसे आधार हैं जिन्हें किसी मध्यस्थ के समक्ष उठाया जा सकता है जो यह निर्धारित करेगा कि लीज़ निर्धारित हुआ है या नहीं हुआ है।


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