मृत किरायेदार के क़ानूनी प्रतिनिधि को ढहाई गई संरचना के बाद हुए निर्माण में दुबारा प्रवेश का अधिकार है : इलाहाबाद हाईकोर्ट [आर्डर पढ़े]
याचिकाकर्ता मकान मालिक की याचिका को ख़ारिज करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज़िला कलक्टर के उस आदेश को सही ठहराया जिसमें उन्होंने प्रतिवादी को मृत किरायेदार के क़ानूनी प्रतिनिधि से उत्तर प्रदेश अधिनियम नम्बर 13, 1972 की धारा 249(2) के तहत बदल दिया।
न्यायालय के समक्ष प्रश्न यह था कि क्या मृत किरायेदार के क़ानूनी प्रतिनिधि को यह अधिकार है कि "मूल किरायेदार" द्वारा दायर याचिका को वह आगे बढ़ाए जिसमें अधिनियम की धारा 24(2) के तहत उसने पुनः प्रवेश की अनुमति माँगी थी।
मूल किरायेदार को अधिनियम की धारा 21(1)(b) के तहत बेदख़ल कर दिया गया था ताकि उस पुराने भवन को तोड़कर नया निर्माण किया जा सके। मूल किरायेदार ने नई संरचना में प्रवेश के लिए कोर्ट में अर्ज़ी दाख़िल की थी जिसके लंबित रहने के दौरान उसकी मौत हो गई। इसके बाद उसके क़ानूनी प्रतिनिधि ने इस क़ानूनी प्रक्रिया में मूल किरायेदार की जगह लने का आवेदन दिया। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि मूल किरायेदार का प्रवेश का अधिकार संबंधी याचिका निजी था और उसके मरने के साथ ही यह समाप्त हो गया। अधिनियम में इस बात का ज़िक्र नहीं है कि मूल किरायेदार के क़ानूनी प्रतिनिधि को इस याचिका को आगे बढ़ाने की अनुमति दी जाएगी।
दूसरी ओर, प्रतिवादी का कहना था कि शब्द "मूल किरायेदार" के तहत सीपीसी की धारा 3a, 2(11) और 146 के तहत क़ानूनी प्रतिनिधि भी आएगा। उन्होंने यह भी कहा कि अधिनियम में किरायेदार और उसके क़ानूनी उत्तराधिकारी को उतना ही अधिकार है। विधायिका ने किरायेदार को यह अधिकार दिया है कि नव-निर्मित भवन का आवंटन उसे किया जाए क्योंकि धारा 21(1)(b) के तहत बेदख़ली की वजह से उसको परेशानियाँ उठानी पड़ी है।
सभी मुद्दों पर ग़ौर करने के बाद न्यायमूर्ति डॉक्टर योगेन्द्र कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि गियान देवी आनंद बनाम जीवन कुमार एवं अन्य (1985) 2 SCC 683 मामले में यह निर्णय दिया गया कि उत्तराधिकार वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों के क़ानूनी टेनेंसी पर उतना ही लागू होता है जितना आवासीय परिसरों पर। जो भी व्यक्ति टेनेंसी का प्रतिनिधित्व करता है वह क़ानूनी प्रतिनिधि होगा और वह मृत-किरायेदार की जगह ले सकता है।
इसी तरह अदालत ने अनवर हसन खान बनाम मोहमद शफ़ी एवं अन्य, (2001) 8 SCC 540 मामले का भी इस संदर्भ में ज़िक्र जिसमें भी यही फ़ैसला आया है।
इस मामले में याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता राहुल सहाय ने किया जबकि प्रतिवादी की पैरवी अधिवक्ता क्षितिज शैलेंद्र ने किया।