निजी गैर सहायता प्राप्त स्कूल के खिलाफ टीचर को बर्खास्त करने के मामले मेें दायर रिट याचिका है सुनवाई योग्य या अनुरक्षणीय-सुप्रीम कोर्ट [आर्डर पढ़े]
सुप्रीम कोर्ट ने यह माना है कि एक टीचर की सेवाएं खत्म करने के मामले को चुनौती देते हुए निजी गैर सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थान के खिलाफ दायर रिट याचिका सुनवाई योग्य या अनुरक्षणीय है।
दरअसल अनुशासनहीनता के आरोप में इस शिक्षिका को बर्खास्त कर दिया गया था। जिसके बाद उसने हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की थी और उसकी नियुक्ति के अनुमोदन या समर्थन पर शीघ्र कार्यवाही की मांग की थी।
इस अपील को खारिज करते हुए पीठ ने राज कुमार बनाम डायरेक्टर ऑफ एजुकेशन एंड अदर्स के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का हवाला दिया। इस फैसले में यह माना गया था कि एक निजी स्कूल के कर्मचारी को बर्खास्त करते समय भी सरकारी शिक्षा अधिकारियों से अनुमोदन या समर्थन लेना जरूरी है। परंतु इस मामले में टीचर को हटाते समय स्कूल ने ऐसा कोई अनुमोदन नहीं लिया था।
इस मामले में अपील दायर करने वाले स्कूल ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा ''कमेटी आॅफ मैनेजमेंट,दिल्ली पब्लिक स्कूल एंड अदर्स बनाम एम.के.गांधी एंड अन्य (2015) 17 एससीसी 353'' में दिए फैसले का हवाला दिया। इस फैसले में एक टीचर की उस रिट याचिका को खारिज कर दिया गया था, जिसमें उसने फिर से नौकरी पर रखने की मांग की थी।
फैसले में यह कहा गया था कि रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। हालांकि इस फैसले को प्रतिष्ठित किया गया था क्योंकि इसमें शिक्षक को बर्खास्त करने से पहले सरकारी अधिकारियों से पूर्व अनुमति लेने के सवाल को शामिल नहीं किया गया था।
वहीं सतींबला शर्मा एंड अदर्स बनाम सेंट.पाॅल सीनियर सैकेंड्ररी स्कूल एंड अदर्स के फैसले का हवाला भी अपीलार्थी स्कूल ने दिया था। इस मामले में सरकारी शिक्षकों के समान वेतन मांगने का मामला शामिल था। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने मांग को खारिज करते हुए कहा था कि अनुच्छेद 14 के तहत दी गई समानता एक निजी ईकाई के खिलाफ लागू नहीं हो सकती है।
इसके अलावा अपीलार्थी स्कूल ने सुष्मिता बासु बनाम बाल्लगंज शिक्षा समिति में दिए फैसले का भी हवाला दिया। इसमें निजी स्कूल के शिक्षकों को भी सरकारी शिक्षकों के समान भत्ते या डीए देने की मांग की गई थी। परंतु इस फैसले में भी सुप्रीम कोर्ट ने इस मांग को खारिज कर दिया था और कहा था कि अगर कोई पब्लिक लाॅ का तत्व शामिल नहीं है तो निजी संस्थान के खिलाफ रिट का दावा नहीं किया जा सकता है।
दरअसल पीठ ने इन सभी फैसले को यह कहते हुए दरनिकार या एक तरफ कर दिया कि इन मामलों के तथ्य अलग थे।
''उपरोक्त चर्चा के मद्देनजर हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि रिट अप्लीकेशन सुनवाई योग्य या अनुरक्षणीय है ओर हाईकोर्ट की डिविजन बेंच ने यह मानकर ठीक किया है। वहीं शिक्षिका को उसका पुराना वेतन देने का आदेश देकर भी सही किया गया है क्योंकि शिक्षिका को स्कूल के आदेश के कारण काफी परेशानी उठानी पड़ी है।"
जस्टिस वी.चिताम्बरेश और नारायण पिशारदाई की पीठ ने एक सदस्यीय खंडपीठ के 2 फैसलों को खारिज कर दिया था। यह फैसले, बिनसी राज बनाम सीबीएसई और चित्रा बनाम केरल राज्य नामक मामलों में दिए गए थे। इनमें यह माना गया था कि रिट कोर्ट सीबीएसई के शिक्षक के खिलाफ की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई पर विचार कर सकती है। इनमें कहा गया था कि रिट सुनवाई योग्य है क्योंकि शिक्षा एक -पब्लिक या सार्वजनिक कार्य' करने के समान है।
''किसी पार्टी द्वारा चुनौती दी गई कार्रवाई की न्यायिक समीक्षा रिट अधिकार क्षेत्र का सहारा लेकर तभी की जा सकती है,जब उसमें कोई सार्वजनिक कानून तत्व हो और व्यक्तिगत सेवा का अनुबंध को लागू न करना हो''
हाईकोर्ट ने संदर्भ का जवाब देते हुए "मारवाड़ी बालिका विद्यालय" मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का हवाला नहीं दिया है।