सेना को राजनीति से अलग रखना ज़रूरी : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग के प्रतिबंधों को सही ठहराया [आर्डर पढ़े]

Update: 2019-05-08 07:58 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने रक्षा और सैन्यकर्मियों की तस्वीरों को किसी विज्ञापन, पोस्टर, चुनाव अभियान या इससे संबंधित किसी अन्य गतिविधियों में प्रयोग पर चुनाव आयोग के प्रतिबंध को सही ठहराया।

न्यायमूर्ति एसके सेठ और न्यायमूर्ति विजय कुमार शुक्ला ने इन प्रतिबंधों के ख़िलाफ़ दायर एक जनहित याचिका को ख़ारिज कर दिया।याचिका डॉक्टर मुमताज़ अहमद ने दायर किया था जिन्होंने इस बारे में चुनाव आयोग के अधिकारों को चुनौती दी थी जिसनेचुनावी आचार संहिता के तहत ये प्रतिबंध लगाए हैं। उन्होंने अपनी याचिका में कहा था कि अगर राजनीतिक पार्टियाँ राजनीतिकअभियानों के दौरान सार्वजनिक रूप से सैनिक अभियानों और सेना की भूमिका की चर्चा करती हैं तो इससे कोई नुक़सान नहींहोता है।

पीठ ने हालाँकि कहा कि चुनाव आयोग ने जो प्रतिबंध लगाए हैं वह देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए है और उसेऐसा करने का अधिकार है।

पीठ ने आगे कहा कि वर्तमान लोकतंत्र में सुरक्षा बल ग़ैर-राजनीतिक हैं और वे इसके निष्पक्ष साझीदार हैं, वे सबके हैं और किसीभी राजनीतिक धड़े से उनका कोई जुड़ाव नहीं होता है।

स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए यह याद रखना ज़रूरी है कि सेवा में मौजूद सैन्य और रक्षाकर्मी ऐसे मुद्दे नहीं हैंजिनके नाम पर वोट माँगी जाए इसलिए यह ज़रूरी है कि सेना को ग़ैर राजनीति बनाए रखा जाए। याचिका को ख़ारिज करते हुएकोर्ट ने कहा,

"…भारतीय सेना राजनीतिक सेना नहीं है और न ही देश की राजनीति और प्रशासन में उसकी कोई भूमिका है। अपनी सारीसमस्याओं और कमियों के बावजूद भारत में लोकतंत्र की जड़ें गहरी हैं और सेना पर कार्यपालिका का नियंत्रण दृढ़ता से स्थापितहै।"


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