सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से कहा, रिटायर जजों और उनके परिवारवालों को चिकित्सा ख़र्च का रीइमबर्समेंट दे [आर्डर पढ़े]
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से कहा है कि वह हाईकोर्ट के जजों, मुख्य न्यायाधीशों और उनके परिवार के आश्रित सदस्यों को पूर्व आदेश के अनुरूप चिकित्सा ख़र्च की अदायगी करें।
पिछले साल दिसंबर में दिए गए एक आदेश में पीठ ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से कहा था कि वे वर्तमान जजों के अनुरूप निजी अस्पतालों में चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराएँ और इसके लिए सरकार की पूर्व अनुमति की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए। इस तरह की अनुमति हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार के स्तर से दी जानी चाहिए। किसी भी राज्य के अस्पतालों में इलाज कराने की हो अनुमति हो और यह सुविधा कैशलेस होनी चाहिए।
मंगलवार को हुई सुनवाई में अमिकस क्यूरी पीएच पारेख ने बताया कि अधिकांश राज्य और केंद्र्शासित प्रदेशों ने कोर्ट के इस आदेशों को नहीं माना है।
एक बार फिर इस बारे में आदेश जारी करते हुए मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ जिसमें दीपक गुप्ता और संजीव खन्ना भी शामिल हैं, ने कहा कि अगर चिकित्सा सुविधा देने में कोई इस आदेश का उल्लंघन करता है तो इसे कोर्ट के आदेश का उल्लंघन माना जाएगा और राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाएगा।
कोर्ट ने कहा,
"हम संबंधित राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के रजिस्ट्रार जनरलों को आदेश देते हैं रिटायर हुए जजों और मुख्य न्यायाधीशों और उनके आश्रितों को चिकित्सा सुविधा प्राप्त करने के लिए आवश्यक फ़ंड की अनुमति हमारे आदेशों के अनुरूप दें। हाइकोर्टों के रजिस्ट्रार जनरल भले ही राज्य अथॉरिटीज़ कोई कार्रवाई करे या नहीं करे, जब भी चिकित्सा अदायगी का दावा किया जाएगा, इसकी अनुमति दी जाएगी और यह 24.10.2018 को दिए गए कोर्ट के आदेश के अनुरूप होगा।"