किसी गवाह को हितपरायण या पक्षपातपूर्ण तभी कहा जा सकता है,जब आरोपी व्यक्ति को सजा होने से उसको कुछ लाभ होता हो: सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]
किसी गवाह को तभी ''हितपरायण या पक्षपातपूर्ण'' कहा जा सकता है,जब उसको सिविल केस में हुए फैसले के परिणाम से या आरोपी को सजा होने से कुछ लाभ होना हो। यह टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक आपराधिक अपील में बचाव पक्ष की तरफ से दिए गए तर्क को खारिज कर दिया है।
सदयाप्पन उर्फ गणेशन बनाम राज्य मामले में बचाव पक्ष ने दलील दी थी कि मृतक के रिश्तेदारों के बयानों पर निचली अदालत को विश्वास नहीं करना चाहिए था क्योंकि उन सभी गवाहों का इस मामले से हित जुड़ा था। सदयाप्पन को उसके पड़ोसी सेलवम उर्फ थानगरज की हत्या के मामले में दोषी करार दिया गया था।
हालांकि जस्टिस एन.वी रमाना व जस्टिस मोहन एम शांतनागौडर की पीठ ने कहा कि उन सभी गवाहों के बयान बचाव पक्ष की जिरह के दौरान भी स्थिर रहे। इसलिए यह हो सकता है िकवह मामले से संबंधित हो परंतु उनको हितपरायण या पक्षपातवपूर्ण गवाह नहीं कहा जा सकता है। पीठ ने कहा कि-
'' आपराधिक कानून के विधिशास्त्र में एक संबंधित व हितपरायण गवाह में क्या अंतर है,इस बारे में साफ तौर पर बताया गया है। किसी गवाह को सिर्फ इसलिए ''हितपरायण'' नहीं कहा जा सकता है क्योंकि वह पीड़ित या मृतक का रिश्तेदार था। किसी गवाह को तभी ''हितपरायण या पक्षपातपूर्ण'' कहा जा सकता है,जब उसको सिविल केस में हुए फैसले के परिणाम से या आरोपी को सजा होने से कुछ लाभ होना हो।''
इन गवाहों के बयानों का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि इनका बयान अभियोजन पक्ष की कहानी से मेल खाता है। इसलिए इस मामले में दायर अपील को खारिज किया जाता है। कोर्ट ने अपील को खारिज करते हुए कहा कि-
'' भले ही वह आपस में संबंधित थे और मृतक के रिश्तेदार थे। परंतु सिर्फ इस आधार पर उनके ''हितपरायण'' गवाह बताते हुए उनके बयानों को नकारा नहीं जा सकता है। इनके बयानों को अच्छे से देखने के बाद कोई ऐसा तथ्य नहीं मिला,जिससे यह कहा जा सके कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर इन गवाहों को आरोपी को इस मामले में झूठा फंसाने और उसे सजा दिलाने से कोई लाभ होने वाला था।''