कोर्ट के किसी आदेश के उल्लंघन से अगर किसी व्यक्ति को नुक़सान होता है तो वह अवमानना का मामला दायर कर सकता है : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

Update: 2019-04-30 04:33 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब किसी मामल में कोई फ़ैसला दिया जाता है जो आम प्रकृति का है तो फ़ैसले के पक्षकार सहित इससे प्रभावित होने वाला कोई भी पक्ष कोर्ट के इस आदेश के उल्लंघन होने पर अवमानना की याचिका दायर कर सकता है।

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने अवमानना की एक याचिका पर सुनवाई के दौरान रिज़र्व बैंक को ख़ुलासे की ऐसी नीति को वापस लेने को कहा गया जो Reserve Bank of India v. Jayantilal N. Mistry मामले में दिए गए फ़ैसले के ख़िलाफ़ है।

इस फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि रिज़र्व बैंक का वित्तीय संस्थानों के साथ न्यासीय संबंध नहीं है क्योंकि जाँच, बैंक के स्टेट्मेंट्स, व्यवसाय के बारे में रिज़र्व बैंक द्वारा प्राप्त की गई सूचनाएँ विश्वास या गोपनीयता के आधार पर नहीं हासिल की जाती हैं।

वर्तमान मामले में एक व्यक्ति जो कि इस मामले में पक्षकार नहीं है, ने आरटीआई आवेदन दायर कर आईसीआईसीआई बैंक, एक्सिस बैंक, एचडीएफसी बैंक और स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया की 01.04.2011 से आवेदन की तिथि तक की जाँच रिपोर्ट का विवरण माँगा था।
चूँकि माँगी गई सूचना नहीं दी गई, उसने इस मामले में पक्षकार नहीं होने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट में अवमानना का मामला दायर कर दिया।

पीठ को यह दलील दी गई कि अवमानना की याचिका पर ग़ौर तभी हो सकता है जब फ़ैसले के पक्षकार की ओर से या दायर किया जाए और इसलिए दायर कि गई इस याचिका को तत्काल निरस्त कर देना चाहिए। इस पर पीठ ने कहा -

"…हम इस बात से सहमत नहीं हैं कि फ़ैसले के पक्षकार की ओर से ही अवमानना की याचिका दायर की जा सकती है। इस अदालत ने जो आदेश दिए हैं वे आम प्रकृति के हैं इन आदेशों का किसी भी तरह उल्लंघन से परेशान कोई भी व्यक्ति अवमानना की याचिका दायर कर सकता है।"

पीठ ने कहा कि 30.11.2016 को जारी ख़ुलासे की नीति का स्थान लेने वाली नई नीति में विभिन्न विभागों को निर्देश दिया गया कि वे ऐसी कोई सूचना नहीं दें जिसे Reserve Bank of India v. Jayantilal N. Mistry के फ़ैसले में देने की बात कही गई है। इस तरह आरबीआई ने इन सूचनाओं का ख़ुलासा करने से मना करके न्यायालय की अवमानना की है।

अदालत ने यह कहते हुए अवमानना के इस मामले को निपटा दिया कि -

"प्रतिवादी जिस तरह लगातार कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना कर रहा है उसके बारे में हम सख़्त रूख अपना सकते थे पर हम उनको एक अंतिम मौक़ा और दे रहे हैं कि वे ख़ुलासे की इस नीति को वापस ले लेप्रतिवादी का यह दायित्व है कि वह इस फ़ैसले के पैरा 77 में जिसकी चर्चा की गई है उसको छोड़कर जाँच रिपोर्ट से संबंधित सारी सूचना उपलब्धकराए। इस बारे में आगे अगर और उल्लंघन होता है तो कोर्ट इसको काफ़ी गंभीरता से लेगा।


Tags:    

Similar News