भारतीय महिलाएँ किसी को बलात्कार के मामले में झूठा फँसाने की बजाय चुपचाप पीड़ा सह लेंगी : त्रिपुरा हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]
भारतीय संस्कृति जिस तरह की है उसको देखते हुए, यौन हिंसा की शिकार महिला चुपचाप अपनी पीड़ा सह लेगी पर किसी पर झूठा इल्ज़ाम नहीं लगाएगी, यह कहना है त्रिपुरा हाईकोर्ट का। हाईकोर्ट ने एक नाबालिग़ लड़की का यौन उत्पीड़न करने के लिए एक व्यक्ति को सज़ा सुनाई।
प्रामाणिक डे को पोकसो अदालत ने पोकसो अधिनियम की धारा 4 और आईपीसी की धारा 363 के तहत दोषी माना।
हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय करोल ने कहा कि पीड़ित लड़की का बयान पूरी तरह स्पष्ट है और जो घटना हुई उससे उसका बयान पूरी तरह मेल खाता है।
कोर्ट ने राधाकृष्ण नागेश बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में आए फ़ैसले का ज़िक्र किया और कहा कि पीड़ित लड़की के बयान को ध्यान में रखते हुए, अदालत को इस बात का भी अवश्य ही ख़याल रखना चाहिए कि हमारे देश में जिस तरह के मूल्यों का चलन है, ख़ासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, उसमें किसी महिला का किसी व्यक्ति को फँसाने के लिए उस पर यौन उत्पीड़न का झूठा इल्ज़ाम लगाना अस्वाभाविक है।कोर्ट ने कहा,
"इस मामले में, दोनों ही पक्षकार त्रिपुरा के दूर-दराज़ के इलाक़े के हैं। भारतीय संस्कृति जिस तरह की है, उसमें कोई महिला भले ही अपने पीड़ा चुपचाप सह ले पर वह किसी पर यौन उत्पीड़न का झूठा आरोप नहीं लगा सकती है…बलात्कार से गुज़रना किसी महिला के लिए बहुत ही अपमानजनक अनुभव है और जब तक वह इस अपराध का शिकार नहीं हुई है, सामान्य रूप से वह इस तरह का आरोप किसी पर नहीं लगाएगी।"
सीआरपीसी की धारा 313 के तहत आरोपी ने अदालत में कहा कि पीडिता ने उसके साथ शादी करने का दबाव उस पर डाला। इस बारे में कोर्ट ने कहा कि यह आरोपी का कर्तव्य है कि वह जो कह रहा है इसके बारे में सबूत पेश करे। कोर्ट ने आगे कहा,
"पीडिता आरोपी के साथ शादी की बात क्यों करेगी? वे दोनों एक ही गाँव के नहीं हैं और ना ही उनके परिवारों के बीच कोई जान-पहचान है और न ही आरोपी और पीडिता एक ही कक्षा में पढ़ रहे थे, न तो वे एक ही परिश्थ्भूमि से आते हैं और न ही पहले दोनों में कोई मुलाक़ात हुई है। अगर किसी दूर-दराज़ की लड़की को धमकी दी जाती है और उसे ज़बरन गाड़ी में बैठाकर उठा लिया जाता है तो वह बेचारी क्या कर सकती है?"