किसी गवाही का अगर एक हिस्सा झूठा है तो इस वजह से पूरी गवाही को नकारा नहीं जा सकता : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]
क्या भारत के संदर्भ में यह उक्ति लागू हो सकता है कि 'अगर कोई बात एक जगह झूठा है तो वह हर जगह झूठा होगा'?
वृहस्पतिवार को अपने एक फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को दुहराया कि यह उक्ति भारत के संदर्भ में लागू नहीं होता है।
आरोपी अपीलकर्ता की याचिका पर एक बार फिर ग़ौर करते हुए इस मुद्दे पर विचार किया कि अगर किसी गवाह के बयान का कोई हिस्सा अविश्वसनीय पाया जाता है तो इस बयान के दूसरे हिस्से का प्रयोग किसी आरोपी को सज़ा दिलाने के लिए नहीं हो सकता।
कसी गवाही का अगर एक हिस्सा झूठा है तो पूरे गवाही को नकारा नहीं जा सकता, इस बात के लिए पीठ ने वर्ष 2002 में Gangadhar Behera vs. State of Orissa मामले में आए फ़ैसले पर भरोसा किया। इस मामले में आम सिद्धांत यह है कि अगर किसी गवाही के बयान का कुछ हिस्सा ग़लत भी है तो भी उसकी पूरी गवाही को नकारा नहीं जा सकता है, पीठ ने कहा।
पीठ ने कहा, "यह उक्ति कि अगर किसी बात का एक हिस्सा झूठा है तो पूरी बात झूठी है को भारत में आम तौर पर स्वीकार नहीं किया गया है और ना ही इस उक्ति को क़ानून के नियम का दर्जा दिया गया है। यह सिर्फ़ सतर्कता बरतने भर के लिए है।
गंगाधर बेहरा मामले में आए फ़ैसले में कहा गया :
"अगर किसी गवाही का बड़ा हिंसा अपूर्ण पाया जाता है पर उसका शेष हिस्सा अगर किसी आरोपी को दोषी ठहराए जाने के लिए पर्याप्त है तो …उसकी गवाही मान्य होगी। दाने को भूसे से अलग करने का काम अदालत का है। जहाँ भूसे को दाने से अलग किया जा सकता है …किसी गवाही के एक हिस्से का झूठा होना उस पूरी गवाही को झूठा नहीं बना देता है…"