सुप्रीम कोर्ट ने बताया 'रेट्रॉस्पेक्टिव' और 'रेट्रोऐक्टिव' के बीच अंतर [निर्णय पढ़े]
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लघु और सहायक औद्योगिक उपक्रम अधिनियम, 1993 के तहत देरी से चुकायी जाने वाली राशि पर ब्याज का भुगतान प्रस्पेक्टिव (प्रत्याशित) है पर कोर्ट ने क़ानून के रेट्रॉस्पेक्टिव (पिछले प्रभाव) और रेट्रोऐक्टिव (अगले प्रभाव) से लागू होने के बीच अंतर को स्पष्ट किया है।
न्यायमूर्ति एके सीकरी, अशोक भूषण और एस अब्दुल नज़ीर की पीठ ने एक अपील पर सुनवाई करते हुए यह फ़ैसला दिया। पीठ के समक्ष यह याचिका तब आइ जब न्यायमूर्ति वी गोपाल गौडा और अरुण मिश्रा की पीठ ने इस मामले में अलग अलग फ़ैसला दिया। न्यायमूर्ति गौडा ने कहा कि इस अधिनियम के प्रावधान पिछले प्रभाव से लागू होने वाले हैं जबकि न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि यह ना तो पिछले प्रभाव से है और ना ही अगले प्रभाव से बल्कि प्रत्याशित (prospective) है।
पीठ इस बात पर ग़ौर कर रहा था कि क्या जब पक्षों के बीच आपूर्ति के लिए क़रार हुआ उस समय यह अधिनियम लागू हो सकता है या नहीं। यह अधिनियम 23.09.1992 को लागू हुआ। कहा गया कि यह अधिनियम का ऑपरेशन प्रत्याशित है और इसको पीछे से लागू होने वाला कहने की ज़रूरत नहीं है।
पीठ ने कहा कि जब किसी क़ानून के नियम को पिछले प्रभाव से होने की बात की जाती है तो इसका मतलब यह है कि यह उन सौदों पर भी लागू होगा जिन्हें इस नियम के लागू होने से पहले पूरा किया जा चुका है।
पीठ ने जय महाकाली रोलिंग मिल्ज़ बनाम भारत संघ के मामले में आए फ़ैसले का इस संदर्भ में ज़िक्र किया। इस फ़ैसले में कहा गया था कि 'रेट्रोसपेक्टिव' का मतलब है पिछले प्रभाव से… रेट्रोसपेक्टिव क़ानून का मतलब एक ऐसा क़ानून जो पीछे देखता है या विगत की बात करता है। 'रेट्रोऐक्टिव' प्रावधान का मतलब है ऐसे प्रावधान जो सौदों के बारे में एक नई देनदारी बनाता है और निहित अधिकार को समाप्त करता है।