क्रमिक या लगातार दायर जमानत के आवेदनों को रखा जाना चाहिए उसी जज के समक्ष,जिसने सुनवाई की थी पहले आवेदन पर-सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर दोहराते हुए कहा है कि क्रमिक या लगातार दायर जमानत के आवेदनों को उसी जज के समक्ष रखा जाना चाहिए,जिसने पहले आवेदन के समय जमानत देने से इंकार किया था। बशर्ते वह जज इस आवेदन पर सुनवाई के लिए उपलब्ध न हो या छुट्टी पर हो।
इस मामले में आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420,465,467,468 व 472 के तहत मामला दर्ज हुआ था। उसने मद्रास हाईकोर्ट के समक्ष अग्रिम जमानत अर्जी दायर की,जिसे मदुरई बेंच के जज ने खारिज कर दिया। इस आदेश के खिलाफ दायर एसएलपी को शीर्ष कोर्ट ने खारिज कर दिया और हाईकोर्ट के आदेश को सही ठहराया। 13 दिन बाद आरोपी ने फिर से अग्रिम जमानत अर्जी दायर कर दी। जिस पर किसी अन्य जज ने सुनवाई की। जबकि जिस जज ने पहली अर्जी पर सुनवाई की थी,वह कोर्ट में उपलब्ध थे।
शीर्ष कोर्ट के समक्ष दायर अपील पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एन.वी रमाना और जस्टिस मोहन एम शांतनागौड़र की पीठ ने शहजाद हसन खान बनाम इश्तिक हसन खान व अन्य फैसलों का हवाला देते हुए देते हुए कहा कि इन फैसलों में माना गया है कि क्रमिक या लगातार दायर जमानत की अर्जियां उसी जज के समक्ष रखी जानी चाहिए,जिसने पहले जमानत की अर्जी पर सुनवाई करने के बाद जमानत देने से इंकार कर दिया था। बशर्ते वह जज मामले की सुनवाई के लिए उपलब्ध न हो।
पीठ ने कहा कि-
"यह स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसलों में वर्णित कानून के अच्छी तरह से तय सिद्धांतों का पालन नहीं किया गया,क्योंकि अग्रिम जमानत के लिए दायर दूसरे आवेदन पर सुनवाई एक अलग जज ने की,जबकि वह जज उपलब्ध था,जिसने इस मामले में पहली बार दायर जमानत के आवेदन का निपटारा किया था।''
अदालत ने यह भी माना कि उस समय जमानत मंजूर नहीं की जानी चाहिए,जब पहले आवेदन के निस्तारण के बाद से दूसरे आवेदन में अग्रिम जमानत देने के लिए परिस्थितियों में कोई बदलाव न हुआ हो ।