प्रेगनंसी के मेडिकल टर्मिनेशन के प्रयास के बाद भी पैदा हुए उस बच्चे की पेरेंटल जिम्मेदारी लेनी चाहिए राज्य को,जिसे त्याग दिया गया है या छोड़ दिया गया है-बाॅम्बे हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]
जिंदा पैदा हुए बच्चे को है एक व्यक्ति जैसे अधिकार,मिलना चाहिए पूरा इलाज,ताकि विकसित हो सके एक स्वस्थ बच्चा-हाईकोर्ट
बाॅम्बे हाईकोर्ट ने निर्देश दिया है कि राज्य को उन बच्चों की पेरेंटल जिम्मेदारी लेनी चाहिए,जो हाईकोर्ट के आदेश के बाद प्रेगनंसी के मेडिकल टर्मिनेशन के प्रयास के दौरान जिंदा पैदा हो जाते है।
सबसे पहले तो रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर और अस्पताल या क्लीनिक को इस बात को सुनिश्चित करना होगा की इस तरह पैदा हुए बच्चे की पूरी जिम्मेदारी ले और उसे बेस्ट इलाज उपलब्ध कराएं। ताकि वह एक स्वस्थ बच्चा विकसित हो सके। यह आदेश जस्टिस ए.एस ओका व जस्टिस एम.एस सोनक की खंडपीठ ने दिया है।
खंडपीठ ने कहा कि जो बच्चा जिंदा पैदा हो जाता है,वह एक व्यक्ति है। जिसे जीने का अधिकार व पर्सनल लिबर्टी मिल जाती है। इसलिए इस बात को सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि किसी भी परिस्थिति में उस बच्चे की उपेक्षा न की जाए।विशेषतौर पर जब उसके माता-पिता उसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार न हो या इस स्थिति में न हो कि उसकी जिम्मेदारी उठा सकें।
इसलिए अगर प्रेगनंसी के मेडिकल टर्मिनेशन के प्रयास के बाद भी बच्चा जिंदा पैदा हो जाता है तो माता-पिता व साथ में डाक्टर की यह ड्यूटी बनती है कि उस बच्चे की देखभाल करे। बच्चे के हित को देखते हुए यह निर्णय लिया जाए कि उसे कौन सा इलाज दिया जाए।इस तरह पैदा हुए बच्चों की नाजुक स्थिति अपने आप में एक कारण है कि उनको अच्छा इलाज दिया जाए ताकि वह एक स्वस्थ बच्चे के तौर पर विकसित हो सके।
खंडपीठ ने यह भी कहा कि अगर ऐसे बच्चे के माता-पिता उसकी जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार नहीं है या वह इस स्थिति में नहीं है तो 'पेरेंस पैटरई'डाक्टरीन के तहत बच्चे की पेरेंटल जिम्मेदारी राज्य को लेनी होगी।
'पेरेंस पैटरई'डाक्टरीन के अलावा ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण मामलों में जेजे एक्ट 2015 के प्रावधान भी लागू होते है। कोर्ट ने कहा कि ज्यूवनाईल जस्टिस एक्ट 2015 के सेक्शन 2(1) के तहत विस्तृत प्रावधान है जो 'अबैन्डन्ड चाइल्ड' के मामलों से संबंधित है। वहीं जेजे एक्ट के सेक्शन 2(14) के तहत उन बच्चों के बारे में बताया गया है जिनको केयर व प्रोटेक्शन की जरूरत है। अस्पताल या क्लीनिक अधिकारियों को इस तरह की दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों में जेजे एक्ट के प्रावधानों के तहत उचित कदम उठाने चाहिए। ऐसे मामलों में बच्चे का हित प्राथमिक होना चाहिए। हमारे अनुसार 'पेरेंस पैटरई'डाक्टरीन व जेजे एक्ट के प्रावधानों के तहत यह राज्य की जिम्मेदारी बनती है कि ऐसे मामलों में वह पेरेंटल जिम्मेदारी ले।इसलिए जेजे एक्ट के प्रावधानों के तहत राज्य को बच्चे की जिम्मेदारी लेते हुए उसकी सुरक्षा व देखभाल करनी चाहिए।
खंडपीठ ने इस मामले में राज्य व उसकी एजेंसी जैसी सीडब्ल्यूसी आदि की दलीलें भी रिकार्ड की। साथ ही कहा कि अगर जांच करने के बाद यह पाया जाता है कि उस बच्चे की देखभाल करने वाला कोई नहीं है या उसे छोड़ दिया गाहै तो निर्धारित प्रक्रिया का पालन करने के बाद कोई भी कानूनी तौर पर इस तरह के बच्चे को गोद लेने के लिए फ्री है।