धर्म ग्रंथों का उल्लेख करते हुए छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा, हमें अपने मां-बाप का आदर, उनकी सेवा और पूजा करनी चाहिए [आर्डर पढ़े]

Update: 2019-03-23 16:20 GMT

मां-बाप और वरिष्ठ नागरिक गुज़ारा और कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत गठित न्यायिक अधिकरण ने उसे आदेश दिया था कि वह अपने सौतेली माँ को हर महीने ₹10 हज़ार देगा। इस राशि को बहुत ही भारी बताते हुए पीड़ित व्यक्ति ने हाईकोर्ट में अपील की और कहा कि वह इतनी बड़ी राशि नहीं दे सकता।

कोर्ट ने ग़ौर किया कि यह व्यक्ति एक सरकारी शिक्षक के रूप में काम कर रहा है और और इतनी पर्याप्त राशि कमा रहा है कि यह अपने मां-बाप का भरण पोषण ठीक तरीक़े से कर सकता है। कोर्ट ने कहा कि अधिनियम में 'पेरेंट्स' को परिभाषित किया गया है और इसमें सौतेली मां और बाप भी शामिल हैं।

पीठ ने कहा कि जिस ₹10000 रुपए की राशि हर महीने देने को कहा गया है उसमें भोजन, कपड़ा, आवास, दवा-दारू और इलाज आदि सभी बातें शामिल हैं और इसलिए आज महँगाई का जो स्तर है उसको देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि यह अधिक है।

इस अपील को ख़ारिज करते हुए न्यायमूर्ति अग्रवाल ने धर्मग्रंथों का हवाला दिया और कहा कि माँ-बाप का पालन पोषण करना शास्त्रसम्मत कर्तव्य है। उन्होंने तैत्तरीय उपनिषद, रामायण और महाभारत के उद्धरणों को अपने आदेश में शामिल किया।

"कुल मिलाकर, विचार यह है कि हमें अपने माँ-बाप का आदर, उनकी सेवा और पूजा करनी चाहिए। यह हमारी परम्परा की एक विशिष्ट सीख है…भारतीय समाज के परम्परागत नियम और उसके मूल्य बड़ों की सेवा पर जोड़ डालता है और हमारे देश में माँ की तो घर की लक्ष्मी के रूप में पूजा होती है। श्रुति (तैत्तरीय उपनिषद) बहुत ही ज़ोर देकर कहता है : "मातृ देवो भव"।

जज ने इस बारे में रामायण का भी उल्लेख किया जिसमें कहा गया है कि बच्चों के लिए अपने माँ और बाप के ऋणों को चुकाना मुश्किल है क्योंकि माँ-बाप ने उनका लालन-पालन किया है।

याचिकाकर्ता को इन धर्मग्रंथों का हवाला देते हुए कोर्ट ने उस पर ₹2000 का मुक़दमा लागत लगाते हुए मामले को ख़ारिज कर दिया।


Similar News