यूथ बार एसोसिएशन ने गंगा में तैरते शवों को हटाने और किसी भी नदी में शवों को फेंकने से रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रूख किया

Update: 2021-06-02 05:58 GMT

यूथ बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर कर गंगा नदी में तैरते शवों को हटाने के लिए उचित कदम उठाने और यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश देने की मांग की है कि किसी को भी किसी भी नदी में शव फेंकने की अनुमति नहीं है क्योंकि इससे पर्यावरण को नुकसान हो सकता है।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ की मंगलवार को उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में हुई घटना से संबंधित टिप्पणी के बाद याचिका दायर की गई, जिसमें नदी में तैरते शवों पर COVID-19 स्वत: संज्ञान मामले के दौरान दो व्यक्तियों द्वारा एक शव को नदी में फेंक दिया गया था। याचिका में प्रार्थना की गई है कि अनुष्ठानों के अनुसार शवों के उचित और सम्मानजनक दाह संस्कार के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार की जाए।

एडवोकेट मंजू जेटली द्वारा याचिका दायर की गई और एडवोकेट सनप्रीत सिंह अजमानी, एडवोकेट बबली सिंह, एडवोकेट परांशु कौशल और एडवोकेट भव्य प्रताप सिंह द्वारा तैयार की गई। याचिका में कहा गया है कि गंगा में तैरते हुए शवों की रिपोर्ट वायरल हो गई क्योंकि भारत महामारी की दूसरी लहर से गुजर रहा था।

याचिका में आगे कहा गया है कि भारत एक कल्याणकारी राज्य है जो लोक कल्याण हासिल करने और अपने सभी नागरिकों के हितों की सेवा करने के लिए अपने दायित्व को स्वीकार करने में विश्वास रखता है और इसलिए यह राज्य का कर्तव्य है कि वह मृतक के अधिकारों की रक्षा करें, जिसमें उचित दफन/दाह संस्कार का अधिकार शामिल है।

याचिका में कहा गया है कि,

"हालांकि भारत में कोई विशिष्ट कानून नहीं है जो मृत व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करता हो, लेकिन इस न्यायालय ने परमानंद कटारा बनाम भारत संघ के मामले में जीवन के अधिकार, उचित उपचार और गरिमा को मान्यता दी है और भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 न केवल जीवित व्यक्ति पर बल्कि शवों पर भी लागू है।"

याचिकाकर्ता ने आश्रय अभियान बनाम भारत संघ के मामले पर भरोसा जताया है। इसमें कहा गया था कि एक मृत व्यक्ति की गरिमा को बनाए रखा जाना चाहिए और उसका सम्मान किया जाना चाहिए और यह अधिकार बेघर मृत व्यक्तियों को उनके धार्मिक रीति-रिवाज अनुसार एक सभ्य दाह संस्कार के लिए भी है।

याचिका में कहा गया है कि,

"प्राकृतिक और अप्राकृतिक दोनों मौतों में यानी आत्महत्या, दुर्घटना, हत्या, आदि मामलों में राज्य मृतक के अधिकारों की रक्षा करने और शवों पर अपराध को रोकने के लिए कर्तव्य के साथ निहित है। यह भी आवश्यक है कि राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को सभी हितधारकों के परामर्श से एक एसओपी तैयार करनी चाहिए ताकि मृतक की गरिमा की रक्षा की जा सकें।"

याचिका में 14 मई, 2021 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का भी उल्लेख किया गया है जो शवों को संभालने से संबंधित हैं और उसी दिशा-निर्देशों की स्थापना की मांग किया गया है। यह गंगा नदी की पवित्र प्रकृति पर भी प्रकाश डालता है और यह प्रस्तुत करता है कि शवों के कारण विभिन्न पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संबंधी खतरे अनिवार्य रूप से पैदा होंगे।

याचिका में केंद्र और राज्य सरकारों को नदी में से शवों को हटाने के लिए उचित उपाय करने और यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है कि किसी को भी शवों को नदी में फेंकने की अनुमति नहीं है। इसके अलावा याचिका में अनुष्ठानों के अनुसार शवों के उचित और सम्मानजनक दाह संस्कार के लिए एक एसओपी की मांग की गई है।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष हाल ही में एक और याचिका दायर की गई थी जिसमें केंद्र, राज्य और पंचायत स्तर पर एक त्रिस्तरीय समिति के गठन के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी ताकि शवों का उचित और सम्मानजनक तरीके से दाह संस्कार किया जा सके और गंगा नदी के तल को पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र घोषित करके संरक्षित किया जाए।

याचिका की कॉपी यहां पढ़ें:



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